बहुत दिनों बाद आज आभास का फोन आया। कुशल क्षेम के आदान प्रदान के पश्चात बोला “माँ आपको तो पता है कि रिया की डिलिवरी की डेट नज़दीक आ गई है, उसे आराम की और आपकी देखभाल की बहुत “ज़रूरत” है, आप अपना और पापा का ज़रुरी सामान पैक कर के रखना, मैं सन्डे को आपको लेने आऊँगा।”
फोन सुनकर विभा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसने खुशी से आवेशित स्वर से यह खब़र अपने पति अविनाश को सुनाई जिसे सुनकर उनके भी चेहरे पर खुशी की चमक दीप्त हो उठी।
दो साल से ज्यादा हो गए थे आभास और रिया की शादी को, दोनों बैंगलौर में पोस्टेड थे लेकिन अभी तक माता पिता को बेटे की गृहस्थी देखने का अवसर नहीं मिला था, उन दोनों ने कभी आग्रह से वहाँ बुलाया भी नहीं। साल में एक बार खुद ही आकर मिल जाता थे वो भी चार पाँच दिनों के लिए। अब तो स्वयं लेने आ रहा है, कुछ दिन मन भर के उनके साथ, उनके घर नये शहर में रहेंगें, इसकी सुखद कल्पना से ही वो आत्मविभोर हो उठी।
विभा का तो जैसे कायाकल्प ही हो गया था। अविनाश उसके चेहरे की चमक, मन में उत्साह और चाल में स्फूर्ति देखकर हैरान था। उसके जो घुटने बिना दवाई और तेल मालिश की सेवा के बगैर रसोई तक जाने में आनाकानी करते थे, वही घुटने आज बिना अकड़ दिखाए रसोई आँगन, गली बाजा़र के बीसियों चक्कर लगाने के बावजूद नहीं थक रहे थे। वो रोज़ सुबह उठकर पूरे मनोयोग से वहाँ ले जाने के लिए देशी घी के लड्डू, चूरमा, पापड़, मठरी और तरह तरह के अचार बनाती।
रिया के लिए उन्होंने खास घर के बने देसी घी में सौंठ, अजवायन, गोंद, गुड़ और सूखे मेवे डालकर आटे सूजी के पौष्टिक और स्वादिष्ट लड्डू बनाकर संभाल कर रख दिये।
शाम को अविनाश के साथ बाजार जाकर बेटे, बहू और होने वाले बच्चे के लिए गिफ्ट्स खरीदती। वह बच्चे के लिए छोटे-छोटे कपड़े, खिलौने, चाँदी के कंगन, कटोरी, गिलास और भी न जाने क्या-क्या खरीदती और उन्हें सूटकेस में सहेजती जाती। वो बहुत शौक से बच्चे के लिए नैपियाँ और बिछौने तैय्यार करती।
पहले तो वे आस पड़ोस में यदा कदा ही जाती थीं लेकिन अब वे संग साथ की महिलाओं के बीच जाकर उन्हें अपने लाए तोहफे दिखाती, उनसे बच्चे के लिए आजकल के फैशन और माडर्न उपहारों के बारे में जानकारी लेती रहतीं फिर उसी के अनुरूप बाज़ार से नई नई बच्चों की चीज़ें खरीद लातीं जैसे दिल की शेप वाला बेहद मुलायम तकिया, मिकी माऊस वाला नाइट सूट, जाॅनसन एंड जाॅनसन का बेबी पैक, नरम मुलायम कंबल, सू सू कर देने पर आगाह कर देने वाला सैंसर युक्त बिछौना। ऐसी न जाने कितनी ही चीजों का संग्रह समन्वय करती रहतीं।
एक खुशनुमा एहसास उसके अंतर्मन को हमेशा ऊर्जस्वित करता रहता। बच्चे को देखने और उसके साथ खेलने के बारे में सोचकर वह आत्ममुग्ध, आत्मविभोर होती रहती।
घर बाहर के इन सब कामों के बावजूद उसके चेहरे पर थकान की बोझिलता नहीं बल्कि मातृत्व की मिठास ही छलकती।
आजकल अक्सर ही वे मीठे स्वर में ये पंक्तियाँ गुनगुनाती रहतीं —
कब अपने ललना को देख पाऊँगी
कब उसको हिया से लगाऊँगी
कब उसको पालना झुलाऊँगी
कब उसको उबटन लगाऊँगी
कब उसके काजल सजाऊँगी
कब उस पर वारी वारी जाऊँगी
कब उसके नखरे उठाऊँगी
कब उसको गोदी सुलाऊँगी
कब उसको लोरी सुनाऊँगी
कब मीठी निंदिया सुलाऊँगी
और उसके ही साथ सो जाऊँगी
अविनाश जी भी उन्हें इस तरह खुश मुदित देखकर भावविभोर हो जाते। वे भी बहुत-बहुत खुश थे एक तो उन्हें उनकी बीमारी की चिन्ताओं से राहत मिल गई थी और दूसरा घर की नीरसता और नीरवता में एक अनदेखा माधुर्य व्याप्त होकर सकारात्मक ऊर्जा को उदीप्त मुखरित करता रहता था साथ ही उनके इस वात्सल्य पूर्ण संगीतमय गुंजन से घर झंकृत मधुरित रहता।
शनिवार तक विभा ने अपनी बनाई लिस्ट के सभी कामों को पूरा कर लिया था। उन्होंने अपने और अविनाश जी के सर्दियों व गर्मियों दोंनो तरह के कपड़े रख लिए थे कि वहाँ पता नहीं कैसा मौसम हो, कितने दिन तक रहना पड़े।
कुछ किताबें, भगवद् गीता और राम चरित मानस भी सूटकेस में रख लिए। रामचरितमानस को वे ज़रूर रिया को रोज़ सुबह पढ़ने के लिए कहेंगी कि इसे पढ़ने से बच्चे में सात्विक गुणवत्ता का उदय होता है, साथ ही आध्यात्मिक संस्कारों के बीज का कोख में ही अंकुरण हो जाता है।
उन्होंने दो बेहद खूबसूरत साड़ियाँ रिया के लिए और एक सूट का कपड़ा आभास के लिए भी ले लिया।
बस अब पूरी बेसब्री से वे दोनों आभास का इन्तज़ार करने लगे।
उसने सुबह जल्दी उठकर आभास की पसंद का सूजी का हलवा और पोहे बना लिए। बहुत देर उसकी इंतज़ार करने के बाद ही उन लोगों ने नाश्ता किया।
संडे दोपहर को आभास का फोन आया, “माँ खुशखबरी है, रिया बहुत दिनों से एक विश्वस्त और अनुभवी मेड तलाश कर रही थी और अब जाकर उसे ऐसी मेड मिली है जो माँ और बच्चे की देखभाल करने में विशेष निपुण है। वह अब बहुत खुश और निश्चिन्त हो गई है।”
अब आप को आने की तकलीफ करने की “ज़रूरत” नहीं पड़ेगी, वैसे भी आपको घुटनों में दर्द ही रहता है, इतने लम्बे सफर में परेशानी अलग होती। बच्चे के थोड़ा बड़े होते ही हम उसे आप लोगों से मिलाने लाएंगें। अपना ध्यान रखना, ओके सी यू सून” कहकर फोन रख दिया।
5वां_जन्मोत्सव
स्वरचित—-पूनम अरोड़ा