बेटे के साथ अनजान लड़की को दरवाजे पर खड़ा देख मेरे तो होश उड़े गए मन तमाम शंकाओं से भर गया फिर भी संयत रखते हुए औपचारिकता वश पूछा ही लिया ये कौन है ,इस पर बेटे ने कहा चलो भीतर तो चलो बताता हूं कि यही दरवाजे पर ही खड़े खड़े सब बता दूं।
कहता हुआ किनारे से उस लड़की का हाथ पकड़े भीतर उस कमरे में चला गया जहां पहले से ही वो रहता था।
ये देख मैं बोली तो कुछ नही पर अखबार पर नज़रे गडाये सोचने लगी। क्या जमाना आज गया है।एक हमारा जमाना था कि बढ़ती उम्र देख मां बाप की नींद उड़ जाती थी फिर आपस में दिन में दो चार बार तो कट कुट हो ही जाती।कि कैसे भी हो इस बरस ब्याह कर ही देना है वरना ज्यादा उमर हो जाये गी तो दुबाह करना पड़ेगा और हमारी फूल सी बच्ची इसे सह नही पायेगी।अब जब दिन में चार बार यही बात होती थी तो कान में पड़ लाज़िमी ही था।
फिर तो खुद के सयानेपन पर भी कोफ्त होने लगती। कि बेवजह हम सयाने हो गए न सयाने होते ना मां -बाप के बीच इतनी कट कुट होती। फिर भी वक़्त और नसीब जब दोनों टकराया तो लड़का मिल ही गया और जब लड़का मिल गया तो फिर क्या दोनों के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून दिखाई पड़ा । और झट मगनी पाट ब्याह कर डाला इस हिदायत के साथ कि अब वही तुम्हारा घर है सारे सुख दुख मिलके सहना और हां एक अहम बात ” कभी झगड़ के यहाँ मत आना , वरना उल्टे पांव वापस भेजा देंगे” सच कहूं ….. सब तो ठीक था पर कभी वापस न आने की बात दिल में चुभ गई ।”
फिर क्या था हम वैसे तो जाते पर हमें याद है कि कभी रुकने उनके घर कभी नही गए । यहाँ तक कि भाई बहनों की शादी में भी नहीं।पता नही क्यों सिंदूर पड़ते ही वो घर पराया लगने लगा।
उसके बाद से जितने उतार चढ़ाव जिंदगी में आये संग देखे ,सुख दुख सारे मिल कर सहे यहाँ तक कि परिवार के साथ रहकर उनको भी शिकायत का मौका नही दिये पर कभी मायके नहीं गए और हां बच्चों में संस्कार भी डाले।
दोनों बच्चे पढ़ लिख कर नौकरी करने लगे और तीसरा अभी पढ़ ही रहा ।पति देव वक़्त से पहले रिटायरमेंट लेकर घर में रहने लगे।हलाकि खला बहुत कि अभी जिम्मेदारियां बहुत हैं , दोनों बेटों की शादी घर दुआर तीसरे की नौकरी।
पर कर ही क्या सकते हैं निर्णय ले लिये तो ले लिया।धीरे धीरे हम भी अपने आप को संभाल लिये। और खुश रहने लगे। क्योंकि दोनों बेटे नौकरी में आ गए ।अब शादी ही तो करनी है पर ये क्या अचानक बड़े बेटे ने ये क्या किया बिना बताये शादी कर ली कुछ समझ नही आया माना कि थोड़ा ज़िद्दी,गुस्सेल और मन मौजी है पर हमने तो खुली छूट दे रखी हैं ना कि जिससे चाहोगे हम शादी कर देंगे बस बता भर देना फिर …….?
फिर मेरी छोड़ो अभी पापा सुनेंगे तो वो आग बुला हो जायेगे ऐसे में उन्हें कौन संभालेगा।इतने में बेटे ने आकर मेरे दोनों कंधों को झकझोरते हुए अपनी दुनिया से बाहर निकला।बोला कहां खोई हो कोई तुम्हारे घर आया है उसे चाय तक नही पूछी आखिर वो क्या सोचेगी अरे उससे बातें तो करो।जानों तो कौन है।
इस, पर मैंने कहा पूछना क्या जो समझ रहे वही है और क्या? इसमें पूछने जैसा क्या है जो पूंछू।
इस पर उसने शांत मन से कहा – मां तुम दोनों के सामने अपनी बात करना चाहता हूं यदि तुम्हें और पापा को सही लगे तभी आगे बात बढ़ेगी वरना कहानी यहीं खत्म हो जायेगी।
बेटे के मुंह से ऐसे शब्द सुन कर मेरी खिन्नता थोड़ी कम हुई और बात जानने की जिज्ञासा बढ़ गई। तब मैने अपने कमरे में जहां पति देव सो रहे थे उसे लेकर गई और बेड पर ही बैठते हुए उन्हें जगाती हुई बोली देखो राम कुछ कहना चाहता है सुनों
वे थोड़े अनमना से हुए पर मेरे दो तीन बार जागाने पर उठकर बैठ गए और बोले हां बोलो क्या है। तब राम ने बताया कि जिस लड़की से वो प्यार करता था उसके पापा किडनी के पेशेंट थे उनकी दोनों किडनी फेल हो गई थी आई सी यूं में वो कई दिनों ने जिंदगी की जंग लड़ रहे थे और कल रात वो ये जंग हार गए
मरने से पहले वो अपनी इकलौती बेटी की मांग में सिंदूर देखना चाहते थे सो पिंकी ने कल मुझे बताया कि पापा का ये सपना था अगर मरने से पहले हम उनकी इच्छा पूरी कर दे तो शायद वो चैन से मर पायें क्योंकि डा. के मुताबिक उनके पास वक़्त बहुत कम है।ऐसे में जब मैं वहां पहुचा तो उनकी उल्टी सांस चल रही थी और बार बार वो इसे ही देखे जा रहे थे।
फिर मुझसे रहा नहीं गया और इसके हाथ में माता रानी का प्रसाद था जिसमें सिंदूर भी था मैंने लिया और इसकी मांग में भर दिया और मां मेरे मांग भरते ही उनकी सांसे थम गई ।जैसे इसी का वो इंतज़ार ही कर रहे थे ।कहते कहते मां के सीने से चिपक गया। सच कहूं तो ये सुनकर हम दोनों की आंखें भी भर आई।
ये सुन कर कि एक बाप की आख़िरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए एक बेटे ने ऐसा किया तो कोई गलत नही किया । रिश्ते दो दिलों के साथ साथ दो घरों की मान मर्यादा जरूरतों को समझने के लिए होते हैं ना कि दिखावा करने के लिए।
मौलिक स्वरचित
कहानी
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज