ज़माना बदल गया है – रश्मि सहाय : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शुभा, ओ शुभा!विनीता आवाज़ लगा रही थी, पता नही कहाँ जाकर मर गई है, उसका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।

क्या है माँ, क्यों चीख रही हो? अच्छा! ये माँ से बात करने का तरीका है। जैसे- जैसे बड़ी हो रही हो उद्दंड होती जा रही हो।

शुभा पलट कर वापस जा रही थी, बिना कोई उत्तर दिए कि विनीता ने खिसिया कर कहा, लो अब वापस चल दी। सुबह से काम में लगी हूँ, थोड़ी मदद करा देती। कम से कम भाई और पापा को नाश्ता ही पहुंचा दो।

तो ऐसे बोलो न, तुम तो चिल्लाने लगती हो। शुभा ने बर्तनों की रैक से 2 प्लेट निकाली और सब्ज़ी परांठे लेकर चल दी पापा और भाई को देने।

विनीता उसे जाते हुए देख रही थी। कभी उसे लगता वो ही गलत है पर अधिकांश समय उसे शुभा ही गलत लगती।

युवा बेटी का खुले कपड़े पहनना, उन्मुक्त विचार, उसे उत्तेजित कर जाते और बेफ़िक्री से पैसा उड़ाने की आदत?

वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में एक अच्छे पैकेज पर थी। घर में भी सभी के लिए कुछ न कुछ करती ही रहती थी कभी भाई के लिए जीन्स, तो कभी पापा के लिए शर्ट और कभी विनीत के लिए सलवार सूट–

विनीत समझ नही पा रही थी कि कमी कहाँ थी।

शुभा कभी लौट कर उसे बताती कि उसने पार्लर में

स्लिमिंग का कोर्स जॉइन कर लिया है वो पूछती कितने का?

तीस हजार हर महीने, क्या? तीस हजार रुपये तुमने

ऐसे ही लुटा दिए? विनीता का मूड ऑफ होने लगता

शुभा भी ओफ्फो माँ आपको तो कुछ भी बताना मुश्किल है। कौन सा आपसे मांग रही हूँ?अपने ही तो हैं जिन्हें खर्च कर रही हूँ, कह कर उठ जाती।

विनीता घुट कर रह जाती, इतनी बर्बादी पैसों की और कुछ न सुनना।

प्रशांत से कहती तो भी सुनने को मिलता, विनीता समय के साथ बदलना सीखो उसकी कमाई है, खर्च करने दो उसे, और विनीता का मुँह फूल जाता।

उसे लगता कोई उसे समझना ही नही चाहता।इधर कई दिनों से वो प्रशांत से कह रही थी कि शुभा के लिए वर देखना शुरू करें पर प्रशांत कहते उसे खुद ही देखने दो। वो बताएगी अपनी पसंद के लड़के के बारे में।

यूं तो विनीता भी प्रेम-विवाह की विरोधी नही थी और

इसी इंतज़ार में थी कि कब शुभा उसे अपनी पसंद के लड़के से मिलवाती है।

एक इतवार जब शुभा की छुट्टी थी दुलार दिखाते हुए उससे कहा, माँ एक बात कहूँ? और विनीता का दिल बल्लियों उछल गया, लगता है अब शुभा उसे अपनी पसंद के लड़के से मिलवायेगी।

मुस्कुरा कर विनीता ने कहा, हां, बताओ न—

माँ, मेरी अच्छी मां, आप पापा को भी तैयार कर लेंगी,

मुझे पता है। मेरी पसंद विशाल है मेरे ऑफिस में मेरे साथ ही काम करता है।

कब ला रही हो मिलवाने , विनीता ने उत्सुकता से पूछा?

माँ, मैं 6 महीने उस के साथ रहकर देखना चाहती हूं।

यानी लिव इन रिलेशनशिप में—

क्या?? विनीता को समझ में नही आ रहा था कि वो

क्या बोल रही थी।

मतलब तू शादी के बिना—

हां माँ!

पागल हो गई हो क्या? शारीरिक संबंध—

ओफ्फो माँ! ” किस ज़माने में जी रही हैं आप”?

अभी के अभी निकल जा तू मेरी आँखों के आगे से

विनीता ने क्रोध से आगबबूला होते हुए कहा।

उसके जाने के बाद विनीता सर पकड़ कर बैठ गई।

थोड़ी देर में गुस्सा शांत होने पर उसे फिर समझने को

उठी पर तब तक शुभा एक सूटकेस उठाकर जा चुकी थी।

प्रशांत को बताया तो वो उल्टे उसी पर गुस्सा होने लगे।

सब तुम्हारी शह देने की वजह से हुआ।

एक दिन बाद शुभा को फ़ोन किया तो उसने कहा वो विशाल के साथ है। उसे अपने अधिकारों का भी पता है, अगर कोई बच्चा होता भी है तो भी उसे पिता की संपत्ति में पूरा कानूनी अधिकार है।

ये कौन सी शुभा थी ? विनीता रोती जा रही थी और सोचती जा रही थी।

माँ-बाप से ऐसी बातें और कितना खुलकर–, कहाँ चूक हुई थी शुभा को पालने में?

धीरे-धीरे 6 महीने बीत चुके थे शुभा न लौटी थी।

प्रशांत भी चुप-चुप रहने लगे थे।

एक बार शुभा फिर घर लौटी थी, विशाल उसे छोड़कर जा चुका था। उसके मां बाप के घर भी एक मोटा से ताला शुभा को मुँह चिढ़ा रहा था।

शुभा प्रेग्नेंट थी। 2 महीने विशाल को ढूंढने के बाद घर आई थी। विशाल विदेश जा चुका है कहाँ ये पता नही चला।

किस पिता से अपने बच्चे का अधिकार लेगी शुभा?

अपनी सर्विस के गर्व से भरी शुभा एक बार फिर

अफ़सोस के साथ अपने घर में थी। अपने मम्मी पापा

ही याद आये थे उसे।

काफी डांट खाने के बाद मौन शुभा की बेचारगी का अहसास माँ और पिता को कैसे न पिघलाता?

रश्मि सहाय

ग्रेटर नोएडा

सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित

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