ये बंधन तो प्यार का बंधन हैं – मीनाक्षी सिंह

मेरा नाम मीनाक्षी ! मेरे पति य़ा कहूँ मेरा सबसे सच्चा दोस्त ! हमारा विवाह जब तय हुआ तो ना इन्होने मुझे देखा ना मैने इन्हे ! क्यूंकी मेरे बी .एड के पेपर चल रहे थे ! और ये मेरे परिवार के देखे हुए थे ! तो देखने की औपचारिकता किसी ने नहीं निभायी !

विवाह की तैयारी चल रही थी !! चारो तरफ ख़ुशी का माहोल था !

पर नियति को कुछ और मंजूर था ! मेरे पिताजी का मेरे विवाह से पांच दिन पहले ट्रैन दुर्घटना  में देहांत हो गया ! किसी ने दूर दूर तक इस बात की कल्पना नहीं की थी !

मैं पागल सी हो गयी थी ! पांच दिन तक 24 घंटे सिर्फ पापा पापा ही बोलती रही ! यहाँ तक की कई बार बेहोश भी हुई ! सब घरवाले ससुराल वालों को भड़काने का काम कर रहे थे ! कहते ये शादी मत करो ! लड़की मनहूस हैं ! तुम्हारे घर को भी खा जायेगी !

मेरी माँ पर दुखों का पहाड़ टूट चुका था ! और अगर बेटी की शादी भी नहीं होती तो ये दुख और बड़ा हो जाता उनके लिए ! क्यूंकी हमारे समाज में लड़की की शादी टूट जाये तो उसे हीन भावना से देखने लग जाते हैं ! मेरी ऐसी हालत में मेरी सास ने मुझे पहली बार देखा ! उन्हे मैं बिल्कुल अच्छी नहीं लगी !

इनसे कहती सोनू ,एक बार सोच ले ,लड़की देखने में भी अच्छी नहीं हैं और अपने पिता को भी खा गयी ! ये तुरंत वहां से निकल कर मेरे घर आये और कहा शादी तय तारिख पर होगी ! अंकल जी का सपना था बड़ी बेटी के ब्याह का ! वो जरूर पूरा होगा ! अगर ये विवाह नहीं हुआ तो उन्हे ऊपर से दुख होगा!! आपकी बेटी जैसी भी हालत में हैं ,बेफिक्र होकर मुझे सौंप दिजिये ! मेरी अमानत हैं ये अब ! फूलों की तरह रखूँगा आपसे वादा करता हूँ !



मेरा विवाह हो गया ! मेरी छोटी बहन ने विदाई में जब सबने कहा कुछ मांग लो ! तो बस इतना बोली – जीजा जी ! पूरे जीवन साथ निभाना हमारा ! अब आप ही हमारे पिता समान हो ! और फूट फूट कर रोने लगी !  मंडप में भी मैं खोयी खोयी सी थी ! सारा  शादी का खर्चा  इन्होने ही दिया ! मैं ससुराल आ गयी ! रात में  बस दूर से बैठकर बात करते !! और मेरे बारे में ज्यादा से ज्यादा जान ने की कोशिश करते !

आत्मिक संबंध  बना रहे थे ! शारीरिक सबंध का तो दूर दूर तक ज़िक्र भी नहीं करते ! पूरे दिन मेरे साथ रहते और मेरे घमोरियां हो गयी थी ! उसके लिए नेट से पढ़के वही उपाय करते ! कहते अपने घर जाओ तो बिल्कुल ठीक और खुश होकर जाओ ! मैं रोती रहती ! और मेरे साथ खुद भी रोते फिर समझाते – मेरी सोना ,मैं तुम्हे रोता हुआ नहीं देख सकता ! तुम्हारे पापा को तो नहीं लौटा सकता पर तुम्हे आज के बाद कोई दुख छूकर भी नहीं जा सकता जब तक मैं ज़िन्दा हूँ !

मैं मन ही मन सोचती नई नई शादी होने पर सब ऐसे ही प्यार दिखाते हैं !

फिर दस दिन बाद मैं अपने मायके आ गयी ! बस इतने दिनों तक मेरे आंसू ही कम करने की कोशिश करते रहे ! और कहते अपनी माँ का पूरा ख्याल रखना ! उन्हे कोई दिक्कत हो तो यहाँ ले आना अपनी माँ ,छोटे ,भाई बहन को ! और छोटी की शादी की ज़िम्मेदारी अब मेरी हैं ! इन्होने तो मुझे बहुत प्यार दिया इतने अपने प्यारे प्यारे वादों और बातों से पर मैं अभी तक ज्यादा विश्वास कर नहीं पायी थी  इन पर ! मैं अपने घर चार महीने रही ! फिर ये मुझे लेने आये

तब पहली बार मैने इन्हे ध्यान से देखा जैसे लगा अब जाकर पापा के जाने के बाद होश में आयी हूँ ! बहुत ही सुन्दर से ,पतले से शरीर के ,सांवली सी सूरत ,चेहरे की बनावट ऐसी की कोई भी देखे तो मंत्र मुग्ध हो जाए ! कुल मिलाकर  मुझसे बहुत सुन्दर ! मैं इन्हे देखती ही रह गयी ! मन में सोचा तभी पापा कहते थे ,किस्मत वाली हैं मेरी बेटी इतना समझदार ,सुन्दर  कोई भी गंदी आदत नहीं ऐसा लड़का मिल रहा हैं इसे ! रास्ते भर मुझे ऐसे लेके आये जैसे कोई राजकुमारी चल रही हो

इनके साथ ! इतना ख्याल रखा जैसे कोई मुझे चुरा ले जायेगा ! मैं ससुराल आ गयी ! फिर भी मेरे पास नहीं आते ! सोचते पता नहीं क्या सोच लूँ मैं ! मैने ही एक दिन कहा – कैसे रह लिए इतने दिन दूर बीवी से ! मन नहीं करता उसे बाहों में भरने का ! उसके बालों में ऊंगली फेरने का ! बोलते इसके लिए जीवन पड़ा हैं सोना ,तुम ठीक हो जाओ ! तुम मेरी हो ! और ये सत्य हैं और ये बंधन  प्यार का बंधन हैं ! शारीरिक रिश्ते का मोहताज नहीं !  यही अहसास मुझे अंदर तक रोमांचित कर देता हैं कि कोई हैं जीवन में जो मेरा बुढढा होने तक साथ निभायेगा ! और हंसने लगे ! उस दिन से मेरी नजरों में इनकी इज्जत बहुत बढ़ गयी !



इनके ही सहयोग से मैं सरकारी  नौकरी में आ पायी ! उस सफर के बारे में आप मेरे जीवनसाथी कहानी में पढ़ ही चुके हैं! हमारे प्यारे से दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी ! मेरा हर काम में सहयोग करते हैं ! सुबह मेरे साथ उठकर किचेन के काम में हाथ बंटाते हैं ! संडे को मशीन में कपड़े धोना ,बच्चों को नहलाना ! रात में मेरे पैर दर्द होते हैं तो दबा भी देते हैं ! मैं कहती हूँ ये क्या कर रहे हो  ,मुझे पाप लगेगा ! बोलते कहाँ लिखा है ऐसा कि आदमी औरत के दर्द में साथ नहीं निभा सकता !

तुम हो तभी तो जीवन हैं ! तुम नौकरी के साथ सब कुछ करती हो ,ये कम हैं ! थोड़ा सहयोग कर  दूँ तो क्या बुराई हैं ! आखिर इस जीवनरूपी गाड़ी को हम दोनो को मिलकर चलाना हैं ! तुम बिमार हुई तो मैं अकेले क्या कर पाऊंगा ! और मैं प्यार से इन्हे गले लगा लेती हूँ !इस कभी ना टूट  ने वाले बंधन पर नाज करती हूँ !  कभी कभी अपनी पसंदीदा फिल्म का गाना सुनाती हूँ इन्हे

हम बने, तुम बने, एक दूजे के लिए

उसको क़सम लगे

जो बिछड़ के इक पल भी जिए

हम बने, तुम बने…!!

और ये मुझे अपनी बेसूरी पर भावनाओं से भरी हुई आवाज में जोर से गाते हैं

तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है

अंधेरो से भी मिल रही रोशनी है

कुछ भी नहीं है तो कोई गम नहीं है

हर एक बेबसी बन गयी चांदनी है!!

हर इक मुश्किल सरल लग रही है

मुझे झोपडी भी महल लग रही है

इन आँखों में माना नमी ही नमी है

मगर इस नमी पर ही दुनिया थमी है!!

 #बंधन 

स्वरचित

मीनाक्षी सिंह

 

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