सुनीता जी बड़ी खुश थी और उनकी खुशी का कारण यह था कि उनके छोटे बेटे अमित का विवाह बहुत अच्छे ढंग से हो गया था और वह पिछले कुछ दिनों से अमित की शादी की वजह से बहुत ही व्यस्त थी।सारे रिश्तेदार भी खुशी-खुशी जा चुके थे और लड़की वालों ने भी बारातियों का स्वागत बहुत अच्छे ढंग से किया था।
सुनीता जी के दो बेटे थे बड़े बेटे का नाम अंकित था जिसकी शादी पूजा नाम की लड़की से हुई थी और उन दोनों की एक प्यारी सी बेटी थी जिसका नाम दिया था।अमित की शादी प्रीति से हुई थी जो कि देखने में बहुत ही सुंदर थी।सुनीता जी के पति दिवाकर जी का कपड़ों का बहुत बड़ा व्यवसाय था और दोनों बेटे अंकित और अमित भी अपने पिता के काम में हाथ बंटाते थे।
सुनीता जी की सहेलियां उन्हें अमित की शादी से पहले छेड़ती थी कि अब तुम्हें तुम्हारी दोनों बहुएं अपनी उंगलियों के इशारे पर नचाया करेंगी।
सुनीता जी हंस के उन्हें उत्तर देती,” मेरी बड़ी बहू पूजा हमारे घर में पूरी तरह से रच बस गई है और मेरी उसके साथ खूब पटती है तो मेरी छोटी बहू प्रीति भी वैसी ही निकलेगी मुझे इस बात का पूरा विश्वास है”।
“यह तो वक्त ही बताएगा कि तुम्हारी बहुएं तुम्हें हंसाएगी यां रुलाएंगी” सुनीता जी की सहेलियां हंस के बोलती।
खैर,नए जोड़े का कुछ समय तो घूमने-फिरने और रिश्तेदारों के घरों में आने जाने में ही बीत गया।अब सुनीता जी ने प्रीति को भी रसोई घर में लगा दिया था।सुनीता जी को तसल्ली थी कि दोनों दोनों बहुएं आपस में हंसते खेलते हुए काम निपटा लेती हैं।
एक दिन दोपहर के खाने में उड़द की दाल और गोभी आलू बने हुए थे।सुनीता जी को आलू गोभी की सब्ज़ी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी पर आज प्रीति के कहने पर उन्होंने थोड़ी सी आलू गोभी की सब्ज़ी लेकर खा ली थी।यह देख कर पूजा बोली,” क्या बात है मम्मी जी, आपने मेरे बनाए हुए गोभी आलू तो कभी हाथ नहीं लगाए पर आज प्रीति के कहने पर फटाफट यह सब्ज़ी अपनी प्लेट में डाल ली।क्या उसकी बनाई हुई सब्ज़ी आपको ज्यादा स्वाद लगी है”।
“नहीं बेटी, वह तो मैंने प्रीति के प्यार से कहने पर ज़रा सी ले ली”, सुनीता जी बोली।
सुनीता जी ने देखा कि सारा दिन पूजा का मुंह बना रहा।सुनीता जी को समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने ऐसी कौन सी गलती कर दी थी।
2 दिनों के बाद जब सुनीता जी की बड़ी बहन सुधा जी उनके घर आई तो सुनीता जी ने पूजा की तारीफ करते हुए कहा कि इतने सालों में उन्हें तो पूजा के खाने के स्वाद की आदत हो गई है।इसके हाथ के खाने में स्वाद भी बड़ा होता है।सुनीता जी ने देखा कि उनके ऐसा कहने से पूजा का चेहरा खिल गया था।सुनीता जी मन ही मन खुश हुई कि चलो उनकी इस बात से एक परेशानी तो हल हुई।
शाम को सुधा जी के जाने के बाद प्रीति उनके कमरे में आई और शिकायती लहज़े में बोली,” क्या बात है मम्मी जी, मौसी जी के सामने आपने भाभी की तो बड़ी तारीफ की पर मेरे लिए तो एक भी शब्द ना बोला गया आपसे”।
सुनीता जी को समझ नहीं आ रहा था कि वह प्रीति को क्या जवाब दें और उनके चुप रहने से प्रीति का मन और खराब हो गया जो कि उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था।सुनीता जी मन ही मन सोचने लगी की हाय! मेरी दोनों बहुओं ने तो मुझे फंसा ही दिया है और उन्हें अपनी सहेलियों की बातें याद आने लगी।
सुनीता जी अब अपने आप को फंसा हुआ महसूस करती।अगर वह एक बहू की तारीफ करती तो दूसरी का मुंह बन जाता और अगर वह दोनों की तारीफ करती तो दोनों कहती कि वह झूठ बोल रही हैं।
अगली किट्टी पर सुनीता जी की सारी सहेलियां उन्हें मिली तो सुनीता जी के चेहरे पर परेशानी देखकर उनसे पूछ बैठी,” क्या बात है सुनीता, आज कुछ परेशान सी लग रही हो”?
सुनीता जी बोली,” क्या बताऊं, तुम्हारा कहना सही निकला कि यह तो वक्त ही बताएगा कि मेरी बहुएं मुझे हंसाती हैं यां रूलाती हैं और सच में तुम्हारी बात सही निकली।आज मैं अपने आपको दोनों बहुओं के बीच में फंसा हुआ महसूस करती हूं”,और सुनीता जी ने अपनी परेशानी अपनी सहेलियों को बता दी।
” अरे, यह तो होना ही था “,कहते हुए सारी सहेलियां हंस पड़ी और उनके साथ साथ सुनीता जी की भी हंसी निकल गई।
#वक्त
#स्वरचित
गीतू महाजन।