उफ्फ!! दिनभर घर-घर काम करने के बाद गीतांजलि बहुत थक गई थी। घर आते ही उसका छोटा भाई दीपक दीदी! दीदी! करके लिपट गया। दीदी आज क्या लायी हो..?? गीतांजलि ने थैला से कुछ सामान निकाला और भाई को दे दिया। भाई बहुत चाव से खाने लगा। गीतांजलि जहां काम करती थी वहां की महिलाएं कुछ न कुछ खाने का सामान देती रहती थी, गीतांजलि खुद न खाकर भाई के लिए घर ले आती थी।
पहले यह बता..! मेरे जाने के बाद तूने पढ़ाई की… या फिर अपने दोस्तों के साथ बस खेलता ही रहा..!!
नहीं दीदी! तुमने जितना बोला था मैंने सब कर लिया है, अभी दिखाता हूंँ तुम्हें… और अंदर से कापी लाकर दीदी को दिखाने लगा।
गीतांजलि मात्र पांचवीं कक्षा तक पड़ी थी। इसके बाद मांँ का देहांत हो गया। पिता तो पहले ही गुजर गए थे। मांँ ने किसी प्रकार घर-घर चौका, बर्तन करके दोनों बच्चों को पालन पोषण किया एवं अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही दोनों बच्चों को पढ़ा लिखा रही थी।
मांँ के गुजर जाने के बाद खाने के लाले पड़ गए। छोटी सी बच्ची जहां माँ काम करती थी वहां लोगों के पास जाकर काम के लिए गुहार लगाने लगी। छोटी होने के कारण कोई भी काम नहीं दे रहा था। गीतांजलि बोली- एक बार आप लोग मेरा काम तो देख लीजिए और न पसंद आए तो बेशक हटा देना…!
कुछ लोगों ने तरस खाकर उसे काम पर रख लिया। जैसे तैसे अपने और भाई के लिए खाने का जुगाड़ हो गया। भाई की पढ़ाई नहीं छुड़ाई, जहां काम करती थी उनके बच्चों की पुरानी किताबें, ड्रेस ले आती थी।
दीपक पांचवा पास कर चुका था। दीदी मैं भी बड़ा हो गया हूंँ क्या मैं भी काम कर सकता हूं….??
नहीं भाई! तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें…।
दीदी तुम बहुत मेहनत करके किसी प्रकार घर चला रही हो, मैं भी तुम्हारी मदद करना चाहता हूंँ।
अगर दोनों मिलकर काम करेंगे तो हम दोनों की जिंदगी अच्छी कटेगी…!
मैं तेरी कोई बात नहीं सुनना चाहती, तू सिर्फ अपनी पढ़ाई कर..!
गीतांजलि को पूरा विश्वास था कि उसका भाई जब पढ़ लिखकर नौकरी पा जाएगा, तब उसे घरों में काम करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
दीपक बारहवीं पास हो गया था। गीतांजलि जहां काम करती थी उन लोगों से दीपक की नौकरी के लिए पैरवी करने लगी।
एक दिन एक मैम ने कहा कि पुलिस की भर्ती निकली है भाई को आवेदन करने के लिए बोलो।
दीपक ने पुलिस का फॉर्म भरा। किस्मत ने साथ दिया… रिटर्न, फिजिकल और इंटरव्यू सभी में चयनित होता गया।
कुछ दिनों के बाद दीपक पुलिस की ट्रेनिंग के लिए चला गया।
दीपक ने सबसे पहले गीतांजलि का काम छुड़वाया। विभाग की तरफ से रहने को घर मिल गया था। दीपक ने अपनी दीदी के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलायी लेकिन कहीं भी बात बन नहीं पा रही थी। इधर दीपक के लिए भी रिश्ते आने लगे।
गीतांजलि ने दीपक को समझाया सबसे पहले तुम्हारा घर बसा देते हैं, इसके बाद हम अपने बारे में सोचेंगे।
एक जगह सब कुछ ठीक-ठाक होने के बाद गीतांजलि ने दीपक की शादी पक्की कर दी । कुछ दिनों के बाद रूपाली के साथ दीपक का विवाह हो गया।
दीपक ने रुपाली से कहा- गीतांजलि दीदी मेरी मां, बाप, भाई, बहन सब कुछ है कभी भी इनका किसी तरह का भी अपमान मत करना। आज मैं जो सम्मानित जीवन जी रहा हूं वह मेरी दीदी की ही देन है।
गीतांजलि अपने भाई और रूपाली के जीवन में किसी तरह का भी कोई हस्तक्षेप नहीं करती थी। सब कुछ सामान्य चल रहा था लेकिन रूपाली के अंदर अपनी ननद के लिए कहीं न कहीं द्वेष भावना आ गई।
एक दिन रूपाली दीपक से बोली – कि दीदी का अति शीघ्र विवाह कर दीजिए। दीपक ने कहा इधर-उधर बहुत लोगों को बोल रखा है जैसे ही उनके योग्य वर मिलेगा विवाह कर देंगे।
योग्य वर क्यों… उनके अंदर ऐसी कौन सी योग्यता है जो योग्य वर चाहिए..??
पढ़ाई न लिखाई, सकल न सूरत ऐसा कुछ भी तो नहीं है उनमें।
कैसी बात कर रही हो तुम रूपाली…! दीपक की आवाज में तेजी थी।
जब वही सब कुछ है इस घर की… तो मेरा इस घर में क्या काम है..!!
इस बात को लेकर दोनों में तू- तू मैं-मैं हो गई।
अब रूपाली गीतांजलि से हमेशा चिढ़ी- चिढ़ी सी रहने लगी।
एक बार गीतांजलि ने बहुत प्यार से रूपाली से कहा- “बताओ तुम्हें इस घर में क्या दिक्कत है..?”
“रूपाली तपाक से बोली- सबसे बड़ी दिक्कत तो तुम हो…!! जो इस घर में कुंडली मारकर बैठी हो??”
रूपाली के भाई ने गीतांजलि के लिए एक रिश्ता भेजा। दीपक ने लड़के वालों को घर आने के लिए आमंत्रित
किया। जब लड़के वाले घर आए तो पता चला कि वह लड़का गीतांजलि से लगभग 15 साल बड़ा था। उसकी पत्नी का देहांत हो गया था और उसके दो बच्चे हैं।
दीपक ने इस रिश्ते के लिए मना करना चाहा लेकिन गीतांजलि ने दीपक से कहा भाई यह रिश्ता मुझे मंजूर है।
दीपक दीदी का मुंह देखता रह गया लेकिन कुछ न बोला, शायद वह दीदी की मजबूरी समझ गया था। वह नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से घर में आए दिन किच-किच हो।
कुछ दिनों के बाद गीतांजलि की शादी थी।
एक दिन रूपाली को उल्टियां हुई और वह गस खाकर गिर गई। गीतांजलि तुरंत डॉक्टर के पास ले गई वहां पता चला कि उसका लीवर संक्रमण है जो काफी हद तक खराब हो चुका था। रिपोर्ट आने के बाद पता चला कि उसे लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है।
लिवर ट्रांसप्लांट के विषय में रूपाली के मायके वालों को जब पता चला तब उन्होंने कहा मेरे पास तो इतना पैसा भी नहीं जो हम करवा सके, और हां…! हम लोगों में से कोई भी लिवर ट्रांसप्लांट भी नहीं कर सकता। आप लोग अपना देख लीजिए….! रूपाली के मायके वालों ने दो टूक जवाब दे दिया।
मायके का असली चेहरा रुपाली के सामने आ गया। उन्हीं के दम पर अभी तक वह फूलती थी।
दीपक बोला हम रूपाली के लिए अपना लिवर ट्रांसप्लांट करने के लिए तैयार है, लेकिन गीतांजलि यह कैसे बर्दाश्त कर पाती…!! क्योंकि उसने भाई को तो अपने बेटे के जैसा पाला था।
दूसरे दिन गीतांजलि उसी अस्पताल में गई और अपना परीक्षण करवाया तो डॉक्टर ने बताया कि डोनर और रूपाली के साथ बहुत कुछ मेल खाता है इसलिए आप लिवर ट्रांसप्लांट कर सकती हैं।
दीपक में जब सुना तो बोला… नहीं दीदी..!! मैं आपको ऐसा नहीं करने दूंगा। गीतांजलि के समझाने के बाद दीपक ने हालात से समझौता कर लिया।
रूपाली और गीतांजलि दोनों स्ट्रक्चर पर आमने-सामने थी तो रूपाली ने डॉक्टर से कहा मुझे दीदी से कुछ बात करना है डॉक्टर ने कहा जरूर…!
रूपाली गीतांजलि के सामने हाथ जोड़कर बोली – दीदी मैंने आपको हमेशा ही गलत समझा है। मुझे बहुत देर बाद समझ में आया कि आप मुझे कितना प्यार करती थी। जहां मेरे घर वालों ने दुत्कार दिया वहीं आप अपना लिवर देकर मुझे बचाना चाहती हैं।
दीदी, अगर मैं जिंदा रही तो मेरी जिंदगी आपकी रहेगी । मेरा रोम-रोम आपका हमेशा कर्जदार रहेगा। एक मांँ ने मुझे जन्म दिया है और दूसरा जन्म ननद सामान मांँ दे रही है।
बोलते-बोलते फूट-फूट कर रोने लगी, दीदी मुझे माफ कर दो… मैं आपको समझ ही नहीं पाई। घर में मोती होते हुए मैं कंकड़ चुनती रही…!
लिवर ट्रांसप्लांट होने के पश्चात रूपाली और गीतांजलि दोनों स्वस्थ थे।
रूपाली के अंदर बहुत बड़ा बदलाव आ गया, वह गीतांजलि को अपनी मांँ से भी ज्यादा बढ़कर मानने लगी। रूपाली ने गीतांजलि के लिए भाई द्वारा लाये हुए रिश्ता के लिए मना कर दिया, और दीपक से बोली…. जब तक मुझे अपनी दीदी के लायक कोई योग्य वर नहीं मिलता तब तक मैं दीदी की शादी नहीं करूंगी। आखिर यह घर मेरी ननंद मांँ का भी है।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल
#ननद