ये पत्नियाँ – अभिलाषा कक्कड़

सिमरन और आकाश को नये घर में शिफ़्ट हुए दो महीने से ज़्यादा हो चले थे । व्यस्तता के कारण किसी भी दोस्त को घर में आमन्त्रित नहीं कर पाये थे । दोस्तों के आग्रह पर कि यार अपना नया घर तो दिखाओ, पति पत्नी ने अपने अपने आफिस के सभी मित्रों को एक साथ बुलाने का मन बनाया । 

खाना रेस्तराँ से आर्डर किया गया ।वेज नान वेज हर किसी की पसन्द का पुरा ख़्याल रखा गया । घर में सिमरन की सहायिका शामा जिसे सिमरन अपनी छोटी बहन जैसा प्यार देती थी …  ने कहा दीदी रोटी और चावल मत मँगवाना वो मैं घर पर ही गर्म गर्म बना दूँगी । ठीक समय पर मेहमान आने शुरू हो गये । धीरे-धीरे घर मेहमानों से भर गया । 

कुछ नौजवान तो कुछ प्रौढ़ सभी उम्र के दम्पति और बच्चे थे । सिमरन ने सबके आते ही स्नैक से मेज़ भर दिया । लज़ीज़ पकवानों की इतनी प्रकार देखकर सब बिना देर किये अपनी प्लेटें भरने लगे ।मोना जिसका एक साल पहले नकुल से विवाह हुआ था, वो कुछ ज़्यादा ही चहक रही थी ।

 प्लेट को टेबल पर रख सोफ़े की बाज़ू पर पति के संग बैठ गई और अपनी उगलियों को नकुल के कभी कंधों पर तो कभी बालों में घूमाने लगी। देखने में सबको बड़ा असभ्य और अजीब लग रहा था । पास बैठीं सहेली ने चुटकी ली , बस भी कर सारा प्यार आज ही लुटायेंगी क्या !!  नकुल को भी लगा सब उनकी ओर देख रहे हैं ,मोना का हाथ अपने सिर से हटाकर कहा जाओ सामने कुर्सी पर बैठकर खाओ जो कि सही भी था । 

फिर शर्मा जी जो दो महीने पहले मसूरी घुम कर आये थे । वहाँ का बड़ा दिलचस्प क़िस्सा कि उनकी पत्नी शापिंग करने के चक्कर में खो गई । अभी सुनाना शुरू ही किया था कि पत्नी ने बीच में घुसकर पति की सारी बात पर क़ब्ज़ा कर लिया । शर्मा जी ने कहा भी कि अरे यार मैं बता तो रहा था… लेकिन वो कहाँ सुनने वाली थी बोली , नहीं तुम बहुत कुछ भूल भी रहे थे ।

 अभी उनकी बात चल ही रही थी कि कैलाश जी अपनी प्लेट में पकौड़े और डालने लगे तो उनकी पत्नी नीना उनके पीछे भागी और कहने लगी ….और पकौड़े लेने की सोचना भी मत  पहले ही आपने तला हुआ काफ़ी खा लिया है । कैलाश भी बड़े अंदाज़ में बोले .. अरे खा लेने दीजिए पत्नी जी आप तो बनाती नहीं । साल भर बाद पकौड़े खाने को मिले हैं ।

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लेकिन वो प्लेट में एक पकौड़ा रख कर बोली बस बहुत है और नहीं ।बातों क़िस्से कहानियों का अच्छा दौर चलने लगा तभी पाँच बरस का सोनू अपनी माँ शालिनी को आकर बोला ममा मुझे पोटी आई है । शालिनी ने तपाक से पति को कहा सुनिये आप ले जाइये इसे ,मेरे को साड़ी में बड़ी मुश्किल पड़ती है । पति भी थोड़ा सबके बीच झेंपा लेकिन पत्नी की आँखों को देखकर चुपचाप बच्चे के साथ चला गया । पतियों पर पत्नियाँ पुरी तरह हावी थी । 

तभी सिमरन ने कहा आकाश मैं सब लेडीज़ को घर दिखाकर लाती हूँ । आकाश ने कहा हाँ हाँ तुम दिखा लाओ सबको अच्छे से घर , बीवियों के खिसकते सभी पीने की तरफ़ भागे । किसी को बीयर किसी को व्हिस्की जैसी जिसकी पसन्द आकाश अच्छे से गिलास बना बना कर देने लगा । सिमरन घर दिखाकर सबको दूसरे कमरे में ले आई । सभी वहीं बैठकर गप्पें मारने लगीं । तभी सिमरन ने गौर किया कि सिमी जो कि आकाश के साथ काम करती थी ।

 बार बार उठकर बाहर जा रही है ।तभी शामा ने कहा दीदी चावल बन गये हैं, रोटी बनानी शुरू करूँ ?? सिमरन ने कहा ,हाँ ठीक है शुरू करो मैं खाना लगाती हूँ । सिमरन के वहाँ से उठने की देर थी कि धीरे-धीरे सभी रसोई में आकर खड़ी हो गई । सामने सभी पति लोग एक दूसरे के साथ अपनी ड्रिंक और पसन्दीदा विषय क्रिकेट पर खूब आनन्द ले रहे थे । तभी सिमी अपने पति रोहित के पास भाग कर गईं और हाथ से गिलास छीन कर बोली… आपका ये कौन सा पेग है ?? रोहित भी थोड़ा असहज महसूस करते हुए बोला .. अरे भई क्या हुआ दूसरा है ! जानते हो ना आपको डायबिटीज़ है याद दिलवाना पड़ेगा क्या ? सबके बीच तमाशा ना बने रोहित ने गिलास सिमी के हाथ से लेते हुए कहा कहा ,जाओ जाकर तुम भी रसोई में सिमरन की मदद करवाओ । 

लेकिन वो कहाँ सुनने वाली थी गिलास छीन कर हाथ से ले गई और जाकर रसोई के सिंक में सारा का सारा उड़ेल दिया और कहा अब पी कर दिखाओ । उसकी इस हरकत ने पल में जोश से भरे माहौल को सन्नाटे में बदल दिया । हर किसी की नज़रें बिना बात किये भी जैसे कह रही हो यह तो हद ही हो गई ।रोहित एकदम से चुप बैठ गया । पत्नी की ओर से आये इस अपमान ने जैसे उसके अन्दर की सारी ख़ुशी को मायूसी में बदल दिया ।

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 आकाश ने बात सम्भालते हुए तभी कहा.. सिमरन भई खाने का क्या हुआ ?? जी खाना तैयार है आ जाइये आप सब, सिमरन आकाश कीं आवाज़ में आवाज़ मिलाती हुईं बोली । सभी धीरे-धीरे अपनी प्लेट बनाकर हर कोई स्थान पकड़कर बैठने लगा । सिमरन रोटी पर घी लगा रही थी । तभी निर्मला जी जो कि इन सबके बीच सबसे बड़ी थी । सिमरन के पास आई बोली सिमरन इनकी रोटी पर घी मत लगाना । सिमरन ने कहा लेकिन दीदी भैया तो खाना ले गये । 

पति के पास भागी अरे आप ये घी वाली रोटी क्यूँ खा रहे हैं, मैं बनवा रही हूँ ना बिना घी की … पति ने कहा अब खा रहा हूँ एक दिन में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । तुम भी आराम से बैठकर खाओ । खाने के बाद जैसे ही मीठा सामने आया तो एक नहीं तीन तीन बीवियाँ थी जो पति के मीठे पर पुरी नज़र रख कर बैठी थी । पतियों ने मौक़े की नज़ाकत समझते हुए जो सामने पत्नी लेकर आई चुपचाप खा लिया । रात के ग्यारह बज चुके थे । धीरे-धीरे सब आकाश सिमरन को धन्यवाद देकर विदा लेने लगे । उनके निकलते ही सिमरन और आकाश सोफ़े पर पसर गये ।

 आकाश अपने दोनों हाथों को सिर के नीचे से ले जाकर छत की ओर देखते हुए बोला ; उफ़ ये पत्नियाँ !! सिमरन तो जैसे भरी बैठी थी … एकदम से फूट पड़ी … आज तो इन बीवियों ने सब हदें ही पार कर दी ।घर में ये भले ही ये पति की तनिक भी परवाह ना करें । एक चाय के कप के लिए भी दो दो घंटे इन्तज़ार करवाये। समय पर खाना ना दे, लेकिन जैसे ही ये दूसरे के घरों में जाती है इन्हें सब पत्नी के फ़र्ज़ याद आ जाते हैं । सबकी दख़लंदाज़ी अपने पति के खाने और बातों में थी ।अरे वो क्या बच्चे हैं जो नहीं जानते कि उन्हें क्या खाना है कितना खाना है और क्या पीना है और पीना भी है या नहीं … उन्हें तय करने दो ना ।

 एक भी पति ने नहीं देखा आकर कि उनकी पत्नी क्या खा रही है और क्या उसे नहीं खाना चाहिए क्योंकि यही सही था ।दूसरे के घरों में ऐसी बचकानी हरकतें और पति को अजीबोग़रीब स्थिति में डालना सरासर नामंज़ूर और ग़लत है । काश कोई जाकर इन्हें समझाये कि अगर मनोरंजन मिलना जुलना इतना ही पसन्द है तो मन बना कर निकले .. नहीं तो आराम से अपने घरों में बैठे । आकाश मुसकरा कर सिमरन का तमतमाता हुआ चेहरा देखकर प्यार से बोला ..जाओ  जाकर सो जाओ  तुम भी थक गई होगी । मैं ख़ुशनसीब हूँ कि तुम उन सब जैसी नहीं हो । मैं शामा को घर छोड़कर आता हूँ । सुबह उठकर दोनों मिलकर सफ़ाई करेंगे ।

स्वरचित रचना

अभिलाषा कक्कड़

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