ये दोस्ती हम नहीं भूलेंगे – सुषमा यादव

,,ये दोस्ती हम नहीं भूलेंगे, भूलेंगे सब मगर ,तेरा प्यार

तेरा अहसान ना भूलेंगे,,,,,

,, मैं  नागपुर में नानाजी के पास से  कक्षा सातवीं तक पढ़ कर इस नए शहर में अपने परिवार के पास पढ़ने आई,,

इस नये स्कूल में मुझे अच्छा नहीं लगता था, मैं बहुत सीधी सादी, और महाराष्ट्रीयन शिक्षा, बोली के कारण इस वातावरण में ढल नहीं पा रही थी, किसी की बात ना समझ पाने के कारण मेरी किसी से दोस्ती नहीं हुई थी, लेकिन जब मैं दसवीं बोर्ड में जिले में प्रथम आई, और मुझे गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया, तो प्रिंसिपल, टीचर्स के साथ स्कूल की छात्राओं में मेरे लिए एक विशिष्ट स्थान बन गया था,

उसी समय मेरी ही कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की की बड़ी बहन उसे लेकर मेरे पास आई, और अपनी बहन जिसका नाम प्रीति सिंह था, से बोली, आज़ से तुम केवल इसके साथ रहोगी,इसी के पास बैठना, और यही तुम्हारी दोस्त रहेगी,, उन्होंने मुझसे कहा,,ये पढ़ाई में अच्छी नहीं है, इससे दोस्ती कर लो, थोड़ा सा इस पर ध्यान दोगी तो शायद ये भी अच्छे नंबरों से पास हो जाये,

प्रीती उस शहर के बहुत ही रईस खानदान से ताल्लुक रखती थी, उनका एक बढ़िया सिनेमा हॉल भी था, वो दोनों बहनें सबसे खूबसूरत लड़कियों में गिनी जाती थी,, मैं तो ये सुनकर भावविभोर हो गई, और उस दिन से हम दोनों की दोस्ती सबके लिए एक मिसाल बन गई थी,, मैं अक्सर उसके घर जाती,

वहां उसके माता पिता और दीदी मेरा बहुत आदर सम्मान और खातिर दारी करते,, प्रीति अपनी दीदी के साथ जब हमारे घर आती तो पास पड़ोस वाले हैरानी से देखते,,इतने बड़े लोग इनके घर में,, खैर, हमारी दोस्ती दिनों दिन और भी प्रगाढ़ होती गई,, एक दूसरे से हम हर बात साझा किया करते थे,


, मैं बारहवीं कक्षा में भी प्रथम श्रेणी में पास हुई और वो भी तीसरे स्थान पर आई, ये देखकर तो दीदी मुझे और भी मानने लगी थी, परंतु अब आगे की पढ़ाई के लिए मुझे मना कर दिया गया, मुझे पढ़ाई का बहुत ही जूनून था, मेरे दुःख का पारावार ना था, एक दिन दोनों बहनें मेरे घर आईं और बोलीं

कि तुम आती क्यों नहीं हो, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे, मैंने बताया, तो बाबू जी से कहने लगीं,, इसकी पढ़ाई आप क्यों छुड़वा रहें हैं,, बाबू जी ने कहा,, मेरी हैसियत नहीं है, मेरे तीन बेटे और हैं उनको पढ़ाना है,इसकी तो अब शादी कर देना है, और अब सहशिक्षा कालेज है, वो भी शहर से बहुत दूर,तो मजबूरी है,

मेरी सहेली कुछ देर चुप रही और फिर बोली, आप प्रायवेट परीक्षा दिलाइए, और बाकी का इंतजाम हम कर देंगे, क्यों, दीदी,, हां, हां, बिल्कुल सही है,,

और इस तरह से अपनी प्यारी सहेली के कारण मैं अपनी एम ए तक प्रायवेट परीक्षा देकर पढ़ाई पूरी कर सकी, और उसने ज़िद करके मुझे शिक्षक प्रशिक्षण दिलवा कर मुझे नौकरी भी ज्वाइन करवा दिया,,

दोनों बहनें मेरी शादी में भी आईं और बाद में प्रीति के पति और बच्चों से तथा मेरे पति और मेरे बच्चों से भी अच्छी दोस्ती हो गई,

,हम सब एक दूसरे के घर बराबर आते जाते रहते थे, उसकी शादी सतना में हो गई थी,पर हमारी दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा,

लेकिन बहुत दिनों से हमारा संपर्क टूट गया था, मेरी जिंदगी में कुछ ऐसी उलझनें आ गई थी, जिसके कारण फोन और आना जाना सब बंद हो गया था, कुछ सालों के लिए हम बिल्कुल अनजान बन गये थे, और जब मैं वापस लौट कर आई तो मेरा सब कुछ लुट चुका था, मेरी दोस्त ने कहीं से मेरे ऊपर आई विपत्ति को


जाना तो होगा, पर शायद अपनी एक मात्र दोस्त को जो हमेशा सजी धजी रहती थी, इस अवस्था में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाई होगी, इसलिए आज़ तक मुझसे मिलने नहीं आई,, मैं भी किस मुंह से उसके घर जाती, मुझे इस हालत में देख कर उसका दिल छलनी हो जाता, वो सहन नहीं कर पाती,

,पर आज भी मैं अपनी उस प्यारी दोस्त और दीदी को बहुत याद करती हूं, आज़ मैं जो कुछ भी हूं उन दोनों की बदौलत ही हूं,  ,,, अहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है प्रीति

ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है मेरी दोस्त,,,,

दोस्ती एक बहुत ही मजबूत रिश्ता होता है, जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक अपनी सारी बातें एक दूसरे से साझा करता है,कई दोस्तों के रिश्ते में खटास और दरारें आ जाती है,पर हमारे बीच ऐसा कभी नहीं हुआ,

भगवान उन्हें सब खुशियां दे दें

दिल से मेरी दुआ है,

शायद ये मेरी कहानी प्रीति और दीदी पढ़े तो मेरा अनुरोध है कि एक बार मुझसे मिलने आ जाओ,

मैं वहीं हूं जहां हम आखिरी बार इनके साथ मिले थे,अब तो दिल का दर्द बहुत कम हो गया होगा, मुझे इंतज़ार रहेगा,

 #दोस्ती_यारी

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

 

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