कभी कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है कि सामने मनपसंद दृश्य देख कर भी दिल भयभीत हो उठता है… मन घबरानेलगता है ऐसा लगता है मानो ना जाने अब कौन सी गलती हो जाएगी और ……राशि सामने का दृश्य देख कर यही सब सोच रही थी किउसके पति निकुंज ने झकझोरते हुए कहा ,“ क्या बात है राशि …क्या सोच रही हो… ये सब साजों सजावट तुम्हें पसंद नहीं आया क्या?” शादी की पहली सालगिरह को निकुंज यादगार बनाने के लिए सारे प्रयत्न कर रहा था ……उसने राशि और अपनी शादी की तस्वीरों काएक प्यारा सा कोलाज बना कर दीवार पर सजाया हुआ था …साथ में ख़ूब सारे ग़ुब्बारे और रंगीन लाइट्स कमरे को जगमगा रहे थे ।
अपनी आँखों से बहते आँसुओं की बूँदों को पोंछतीं हुई राशि ने कहा,“ ये आपका प्यार ही है ना निकुंज…! कोई दिखावा तो नहीं हैना..?”
” अरे अरे मोहतरमा हमारी शादी की पहली सालगिरह है और आप ये क्या बैठ कर आँसू बहा रही है… ये मेरा प्यार है राशि बस तुम्हारेलिए…. कोई दिखावा नहीं पर ये सवाल तुम्हारे मन में क्यों आया..?” प्यार से राशि का हाथ पकड़ कर निकुंज ने पूछा
तभी राशि का बेटा दिव्य दौड़ता हुआ आया और राशि का हाथ पकड़कर बोला,“मम्मा … मम्मा जल्दी से बाहर आओ ना …..देखो तोपापा कितना अच्छा केक लेकर आए हैं…।” दिव्य राशि का हाथ पकड़ कर उसे कमरे से बाहर खींच कर ले जाने को हुआ
निकुंज ने आँखों के इशारे से उसे बाहर जाने को बोल खुद भी उसके साथ साथ ही चलने लगा।
राशि ये सब देख कर जहाँ बहुत खुश हो रही थी वही अतीत की काली परछाई से भयभीत भी हो रही थी ।
दिव्य ये सब देख कर बहुत खुश हो रहा था… घर की सजावट…. केक ये सब उसे कभी देखने को कहाँ मिला था वो तो बस अपनी माँको हर वक्त डरे सहमे ही देखता आया था ।
निकुंज और राशि ने मिल कर केक काटा और दिव्य के साथ खूब तस्वीरें भी खिंचवाई …बाहर जाकर सबने बढ़िया डिनर भी किया ।
राशि वाक़ई आज बहुत खुश नजर आ रही थी…. उसे इतना प्यार करने वाला पति जो मिला था पर ये प्यार पहले उसकी क़िस्मत में क्योंनहीं आया था….यही सोचते सोचते वो बिस्तर पर लेटकर अतीत में खो गई….
राशि की शादी अर्णव से हुई थी… राशि की तस्वीर देख कर ही अर्णव ने उसे पसंद कर ….. अपनी पत्नी बनाकर अपने घर ले आया था…..सास-ससुर ,देवर ,ननद से भरा पूरा घर था उसका सब कुछ ठीक ही चल रहा था पर एक दिन अचानक ऐसा हुआ कि …..
उसकी शादी की पहली सालगिरह आने वाली थी और वो अपनी पहली शादी की सालगिरह को लेकर बहुत ज़्यादा उत्साहित थी …. राशि को साजों सजावट का बहुत ज़्यादा ही शौक़ था…. और इस दिन को यादगार बनाने के लिए उसने बहुत ही खूबसूरत तरीक़े से घरको सजाया ….अच्छा खाना बनाया और अपने हाथों से केक बना कर अर्णव का इंतज़ार कर रही थी… रात के लगभग साढ़े आठ बजेअर्णव घर आया…. ये साज सजावट देख कर वो राशि पर ग़ुस्सा करते हुए बोला,“ ये सब क्या है…. मुझे ये दिखावा जरा भी पसंदनहीं…. हो गई शादी अब क्या हर साल उसका जश्न मनाऊँ…. तुम्हें तोहफ़े दूँ …. ये वो लोग करते जो दिखावा करते हैं मुझे ये सब जराभी पसंद नहीं हटाओ ये सब…।”अर्णव ने जैसे ही ये सब कहा…ये सब सुन कर राशि सहम सी गई थी….अर्णव यदा कदा ग़ुस्सा करतारहता था पर इस तरह से भी कहेगा ये राशि को समझ ही नहीं आया उसके बाद से राशि कभी जन्मदिन क्या …..कोई त्योहार भी हो तोसाधारण तरीक़े से मना काम ख़त्म समझने लगी।
दूसरे साल गोद में दिव्य आ गया…. और वो उसमें व्यस्त होती चली गई और अर्णव से दूर होती गई…. उसे डर लगा रहता ना जाने किसबात पर अर्णव ग़ुस्सा करने लगे…. धीरे-धीरे उसकी हँसी मासूमियत सब कहीं खोने लगी थी…. बस वक़्त गुज़रता जा रहा था दिव्य कापहला जन्मदिन आ गया पर अर्णव के डर से कुछ भी कर न सकी ये एक मलाल लिए वो रह गई थी…. पर बेटे के जन्मदिन को कुछअलग करने का सोच पास के मंदिर में चली गई पूजा अर्चना कर बेटे के साथ उधर ही एक केक के दुकान में घुस गई और एक केकलेकर बेटे का जन्मदिन मना ली और केक उधर स्टाफ़ में बाँट कर जाने लगी तभी जाते हुए किसी अजनबी से टकरा गई….“ राशि तुम” आवाज़ सुन कर सामने देखी तो वो निकुंज था उसके कॉलेज का दोस्त … अरे तुम यहाँ … कैसे… क्यों ….हज़ारों सवालों के बीच दिव्यको गोद में लिए राशि खड़ी हो निकुंज को देख रही थी
राशि… निकुंज को दिव्य के जन्मदिन की बात बताने लगी…… फिर पूछीं,“ तुम यहाँ कैसे?”
“ ये मेरा ही शॉप है राशि ….वैसे तुम क्या करती हो…. अर्णव कैसा है…?“ निकुंज ने पूछा
राशि निकुंज से अर्णव के साथ के अपने रिश्ते की बाबत सब कुछ बता दी और बोली,“ बस दिव्य के थोड़े बड़े होने का इंतज़ार कर रहीहूँ…फिर मैं भी नौकरी करने की सोच रही हूँ…. मेरा दम घुटता है उधर …. बस दिव्य का सोच कर अर्णव के साथ रह रही हूँ…।”
“ तुम जब चाहो मेरी शॉप पर काम करने आ सकती हो मुझे पता है तुम्हें बेकरी का काम बहुत अच्छी तरह आता है और शायद ये रुझान…. ” आगे के शब्द बोलने की हिम्मत निकुंज आज भी ना कर सका
कुछ महीने बाद राशि ने निकुंज के साथ काम करना शुरू कर दिया…..अर्णव का स्वभाव ना राशि के प्रति अच्छा था ना दिव्य के लिए वोअपनी कोई ज़िम्मेदारी समझता था बस उसकी ज़िन्दगी में पत्नी बच्चे है ये ही उसके लिए गर्व की बात थी
राशि दिव्य को लेकर हर दिन शॉप पर जाने लगी थी…. धीरे-धीरे दिव्य के लिए निकुंज का झुकाव देख राशि भी निकुंज के जैसेजीवनसाथी की कल्पना करने लगी थी…अर्णव के साथ उसकी दूरियाँ दिन ब दिन बढ़ने लगी थी बात बात पर अर्णव का ग़ुस्सा झेलना…..उसके शराब की लत से अपशब्द और कभी कभी मारपीट की वजह से राशि के लिए अर्णव के साथ रहना अब मुश्किल होने लगाथा….. वो उससे तलाक़ लेना चाहती थी पर तलाक़ की बात करती उससे पहले ही एक दिन नशे की हालत में कार चलाते वक़्त सड़कदुर्घटना में अर्णव की मौत हो गई ।
राशि अर्णव से चाहे कितना भी दूर जाना चाहती थी ….पर था तो वो पति ही …..वो उसके यूँ चले जाने से कभी कभी खुद को कोसतीरहती थी ये सोच कर कि उसके मन में ऐसे ख़्याल ही क्यों आए कि अर्णव चला गया ।
टूटी और हताश राशि के लिए सहारे के रूप में निकुंज हर वक़्त साथ खड़ा रहता था ।
निकुंज दिव्य के साथ अब ज़्यादा समय व्यतीत करने लगा था… समय अपनी निर्बाध गति से बढ़े जा रहा था… दो साल ऐसे ही गुजर गए….एक दिन हिम्मत करके निकुंज ने राशि से अपने जीवनसाथी के रूप में ज़िन्दगी में शामिल करने का मन बनाते हुए बोल ही दिया ,“ राशि मैं कभी भी शादी नहीं करना चाहता था….. क्योंकि एक दुर्घटना में मैं बाप बनने की क्षमता खो चुका हूँ…. और ऐसे में किसी कीज़िन्दगी बरबाद करने का मेरा इरादा कभी नहीं रहा या शायद मैं शादी करना भी नहीं चाहता था पर दिव्य को देख कर मेरे अंदर के पिताकी भावनाएँ जागृत होने लगी है….. मैं चाहता हूँ तुम मेरे पतझड़ भरे जीवन में बसन्त बन कर आ जाओ… हाँ पर इसमें तुम्हारी मर्ज़ी बहुतमायने रखती है ।”
राशि के घर वालों ने निकुंज को हर समय राशि के साथ खड़े देखा था इसलिए वो भी कहीं न कहीं चाहते थे कि राशि निकुंज के साथअपनी ज़िन्दगी की फिर से एक नई शुरुआत करें ।
राशि ने बिलकुल साधारण तरीक़े से निकुंज के जीवन में प्रवेश किया पर निकुंज के प्यार और अपनेपन ने उसे उसके और क़रीब करदिया था और आज उनकी शादी के एक साल हो गए थे… जिसे लेकर राशि जरा भी उत्साहित नहीं थी क्योंकि उसे भी लगने लगा था येसब दिखावा होता है… प्यार है तो दिखावे की क्या ज़रूरत पर कभी-कभी प्यार में से सब दिखवा नहीं अपनी भावनाओं को व्यक्त करनेका एक ज़रिया भी होता है मात्र दिखावा नहीं ।
सोचते सोचते राशि ने करवट बदली … पास में दिव्य और निकुंज को सोते देख…. निकुंज के सीने पर सिर रख चुंबन अंकित कर उसकेआलिंगन में बंद हो र सो गई… एक नई सुबह और इस रिश्ते में प्यार ही प्यार परोसने के लिए जिसमें दिखावे की कोई जगह नहीं थी …. था तो बस प्यार के इज़हार करने के हज़ारों तरीक़े…।
आपको मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# दिखावा