अब आगे ..
बटुकनाथ जी रोहन के घर पर आए हुए हैं ..
उनकी आंखें नम है..
हो भी क्यों ना ..
आखिर अपनी बिटिया चिंकी को इतने बड़े घर में जो ब्याह रहे थे…
तभी घर की बेटी मनोरमा हैरान परेशान सी आती है…
मनोरमा के हाथ में सूटकेस देख और बच्चों को देखकर रविकांत और उनकी पत्नी मीना घबरा जाते है …
और रिश्तेदारों के बैठे होने की वजह से वह थोड़ा असहज भी महसूस करते हैं ..
कि तभी वीरेंद्र जी रविकांत जी को इशारा करते हैं…
कि इसे अंदर लेकर जाओ…
मीना जी उठती है..
जी अभी मैं आई..
शायद धूप से आई है बिटिया..
परेशान है ..
बच्चों को पानी पिला कर आती हूँ…
यह बोल मीना जी उठती हैं…
मनोरमा का हाथ पकड़ और दोनों बच्चों को लेकर अंदर चली जाती हैं …
अब तो रविकांत जी , वीरेंद्र जी का भी मन नहीं लग रहा था…
कि ऐसे कैसे आ गई है मनो…
समधी सा कोई बात हुई है क्या …
बिटिया ज्यादा ही परेशान लग रही है …
आप लोग उसकी राजी खुशी पूछ लेते …
हम बैठे हैं …
बटुकनाथ जी बोले …
जी ,,ऐसी कोई बात नहीं है…
आप तो उससे पहले ही मिल चुके हैं …
थोड़ा गर्म स्वभाव की है …
बच्चों पर गुस्सा हो गई होगी …
इसलिए चेहरे पर तनाव दिख रहा है …
बच्चों की छुट्टियां हो गई है ना , इस वजह से आ गई होगी…
परेशान मत होइए …
वीरेंद्र जी बोले …
जा रविकांत तू ही देख ले ..
मनो की राजी खुशी जान ले…
वो झट से उठ अंदर गए..
और कमर पर दोनों हाथ रख बोले..
क्या हो गया मनु …
तू हमेशा अचानक से ऐसे चली आती है..
बिना खबर किये ..
और अबकी बार तो तुझे पता भी था कि आज रोहन के ससुराल वाले आ रहे हैं..
फिर भी तू इस तरह से आ गई ..
कम से कम बता तो देती…
रविकांत जी बोले …
बिटिया बात तो सही कह रहे तेरे पापा…
ना तो तूने कान में कुछ पहन रखा है ,ना हाथों में…
कोई दिक्कत हुई है क्या…??
दामाद जी से झगड़ा हुआ है …??
मीना जी बोली …
पापा , मम्मा, क्या मैं अपने घर में क्या बिना बताए नहीं आ सकती ??
क्या मैं घर की बेटी नहीं हूं..??
जितना इस घर पर रोहन भाई का अधिकार है…
क्या उतना मेरा नहीं है …??
अगर आप लोगों को ज्यादा ही बुरा लग रहा है ..
तो मैं अपने दोनों बच्चों को लेकर के ट्रेन के नीचे जाकर लेट जाती हूं…
ऐसा क्यों बोल रही है ??
ये घर तेरा भी है…
हम तो बस पूछ रहे हैं…
तू ऐसी घबराती हुई आई तो सभी परेशान हो गए…
मीना जी बोली…
उन्होंने रविकांत जी को इशारा किया कि ज्यादा गुस्सा ना हो…
मम्मा मैं उस घर में वापस नहीं जाऊंगी…
कुछ भी हो जाए …
उस आदमी ने मेरा जीना हराम कर दिया है…
मैं उस घर की नौकरानी नहीं हूं…
जो उसके मां-बाप की सेवा करती रहूं …
घर में चार नौकर होने के बावजूद भी क्या जरूरी है कि मैं ही रोटी सेंक कर दूं…
मैं ही उनकी दवाई दूं …
उनके पैर दबाऊँ…??
ऐसा कहां लिखा है ..
मुझे अपने बच्चे भी देखने होते हैं …
हर दिन का क्लेश है ये..
ठीक है तू अभी आराम कर ..
कोई बात नहीं..
हम कल दामाद जी से बात करेंगे…
जो भी होगा..
मामला आपस में सुलझा लेंगे…
मीना जी बोली ..
आपको आधे घंटे भी मेरा यहां रहना पसंद नहीं आया ना…
जल्दी-जल्दी मुझे यहां से भेजना चाह रहे हैं…
मनोरमा बोली …
नहीं बेटा ..
फिर तू बात को गलत समझ रही है ..
हम ऐसा नहीं कह रहे..
बस आपस में उलझनें सुलझ जाए तो ज्यादा अच्छा है…
तेरा जब तक मन करे ,,तब तक तू यहां रह …
रविकांत जी कुछ ना बोले…
उनके चेहरे पर गुस्सा साफ था…
वह दनदनाते हुए फिर से वापस बैठक में चले गए…
जी..
क्या बात हो गई …..
बिटिया ठीक तो है ..
और बालक…??
बटुकनाथ जी ने पूछा…
हां जी सब ठीक है ..
वह बस से आई है ना..
इस वजह से थोड़ा परेशान हो गई …
रोहन की आज मीटिंग थी…
इसलिए रोहन जा नहीं पाया लेने के लिए …
उसे पता था कि आप लोग आने वाले हैं …
तो इसलिए उसने हमें भी परेशान नहीं किया …
अच्छा-अच्छा ,,फिर तो कोई बात नहीं …
बटुकनाथ जी बोले..
ठीक है फिर…
हम चलते हैं ..
अरे आपने तो कुछ खाया पिया ही नहीं…
बिटिया के घर का तो पानी भी नहीं पी सकते…
आप खाने की बात कर रहे हैं …
आपका घर देखकर ही इतनी खुशी हो गई…
मेरी बेटी इस महल में रहेगी …
सच में उसके तो भाग्य खुल गए…
बटुक नाथ जी और उनके साथ में आए पिताजी भी खुश थे कि सच में बिटिया बहुत ही अच्छे घर में आ रही है…
बहुत ही संपन्न परिवार है…
जी,,फिर हमें इजाजत दीजिए…
हम चलते हैं …
हमें ऐसे अच्छा नहीं लग रहा कि आप बिना कुछ खाए पिए जा रहे हैं ..
जी , कोई बात नहीं..
हम पुराने जमाने के लोग हैं..
अभी इतने आधुनिक नहीं हुए हैं…
बटुकनाथ जी बोले..
जैसी मर्जी आपकी …
एक दूसरे को दोनों ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया..
और चलने को हुए…
तभी सामने से रोहन अपने ऑफिस की फ्रेंड नेहा के साथ उसके गले में हाथ डालते हुए आया…
सामने बटुकनाथ जी और सभी को देखकर के रोहन के चेहरे पर सन्नाटा छा गया…
आगे की कहानी जल्द …
तब तक के लिए जय श्री राधे ..
मीनाक्षी सिंह
आगरा