पूजाघर से घंटी की आवाज आ रही थी ।मां जी ( कल्याणी जी) आरती गा रही थी।सुबह उठ कर घर में पूजा करती फिर,बहू वैशाली तब तक नाश्ता तैयार कर लेती, फिर नाश्ता करके मंदिर निकल जाती। मोहल्ले की उनके उम्र की औरतें मंदिर में जाकर दर्शन करने के बाद मंदिर के पीछे वाले चबूतरे पर बैठ कर अपनी अपनी बहुओं की बुराई करने में घंटों तल्लीन रहती।
फिर आराम से घर आती खा पीकर,लेटती फिर उठ जाती तो माला जपती,शाम को पुनः मंदिर में होने वाले भजन कीर्तन में शामिल होने चली जाती, तो देर रात खाने के समय ही वापस आतीं।
विराज बेटा ( वैशाली के पति) हर महीने मां को कुछ पैसे उनके हाथ में देते ( जिसे उनकी पाकेट मनी कह सकते हैं, क्योंकि उस पैसे को उनको कहीं खर्च नहीं करना होता था)
कभी कभी उसी शहर में रहने वाला उनका दूसरा बेटा,जो कि अपने किसी मतलब पर ही उनको घर रहने बुलाता था….. जैसे उन पति पत्नी को कहीं जाना हो…. घर देखना हो…. और आश्चर्य की बात तो यह होती कि कल्याणी जी वहां से भी, नया महीना शुरू होते ही अपनी पाकेट मनी लेने विराज के पास ही आतीं।
कभी कभी वैशाली को लगता कि कैसे बड़े बेटे हैं, मां के हाथ में कभी एक पैसा नहीं रखते..
फिर हमेशा सोचती माता पिता का हर तरह से ध्यान रखना बेटे बहू का कर्तव्य है और वो दोनों उसे भली भांति कर रहे हैं।
कल्याणी जी वैशाली को अक्सर ही टोका करती पूजा पाठ भी किया कर
करती हूं ना मां सुबह जल चढ़ा कर हाथ जोड़ लेती हूं, फिर नाश्ता, खाना सभी काम से निवृत्त होने के बाद बैठ कर पाठ पढ़ती हूं
इतनी देर में पूजा करने से क्या फायदा? कल्याणी जी त्यौरियां चढ़ा कर कहती?
मम्मी जी मैं भी सुबह सुबह पूजा कर सकती हूं,अगर आप कुछ छोटे मोटे काम जैसे बैठ कर सब्जी काटने… धुले हुए कपड़े तह कर रखने…. जैसे काम करा दिया करें.. मन में ही बोल सकी ,प्रत्यक्ष रूप में वैशाली की अपनी सास से ऐसी बात करने की कभी हिम्मत ही ना हुई।
तो नतीजा वही, घुट घुट कर रहना और काम करना और अकेले में तनाव में रहना
वैशाली की पहली बिटिया, राशि हुई…. फिर दुबारा कल्याणी जी की बहुत मन्नतों पूजा के बाद भी वैशाली एक और बेटी ईशा की मां बन गई।
कल्याणी जी ने बहुत सुनाया
मेरी कोई पूजा ईश्वर ना सुनें, ऐसा तो होता नहीं… तेरे ही भाग्य खराब हैं…
कल्याणी जी हमेशा ही दोनों पोतियों को पढ़ते देख कुड़कुड़ाया करें, कोई बेटे हैं जो पढ़ लिखकर कर नाम रोशन करेंगे?…. बेटियों को चौके के काम में निपुण बना,वही आगे काम आवे..
कल्याणी जी डायबिटीज की मरीज़ थी वैशाली के नियंत्रित संतुलित भोजन बना कर देने के बाद भी अक्सर ब्लड शुगर बढ़ जाता।
उनको आने जाने वाले बताते… वो तो मंदिर जाने के बहाने पिछली वाली गली में जलेबियां, रसगुल्ले,चाट वगैरह खाती रहती हैं.. और वो मुन्नू की मां भी उनके साथ लगी रहती है,उनका लाल तो उनके हाथ में कुछ देता नहीं ,और विराज भैया तो..,हर महीने इतने पैसे देते हैं अपनी मां को।.
अच्छा तो अपनी पाकेट मनी का ऐसे इस्तेमाल कर रही है मां,.. कैसे कहें कि ऐसा कर के वो अपनी ही तबियत बिगाड़ रही हैं।
बाकी बचे हुए पैसों से रीता दीदी ( ननद )के आने पर उन्हें कुछ अपनी ओर से दिलाती,और उन्हें कहती मैं अपनी ओर से दे रही हूं,तेरा भाई कुछ देता है मगर भाभी अलग से ना सोचें है
वैशाली को लगता ये पैसे आखिर किसके हैं मांजी, मगर कुछ ना कहती
ननद रीमा अपने दोनों बेटों के साथ आती और वैशाली को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर ना छोड़ती
दो दो बेटियां हैं ,जाने क्या होगा आगे? कैसी बीतेगी जिंदगी?
भाभी तुम्हें कभी सोच कर चिंता नहीं होती कि मेरा बुढ़ापे में क्या होगा?
ननद के ताने पर वैशाली अपनी बेटियों को भी समझाती, कुछ बन जाओ सबको ज़वाब मिल जाएगा।
वैशाली की बेटियां बड़ी होती जा रही थी… जाहिर सी बात है उसकी भी जिम्मेदारियां बढ़ती जा रही थी… मगर किसी को फर्क नहीं पड़ता था।
दोनों बेटियों को वैशाली भरपूर पढ़ने का समय मुहैया कराती, कभी कभी खाना बनाना ,घर के काम भी सिखाती मगर हमेशा घर गृहस्थी में हमेशा ना झोंके रखती।
कल्याणी जी ने एक दिन बड़बड़ाते हुए कहा,कच्ची उम्र में ही घर का काम कराना शुरू कर देना चाहिए ,वरना काम करने की आदत नहीं रहती।
मैं नहीं चाहती मम्मी जी कि मेरी बेटियां सिर्फ काम ही करती रहें
पता नहीं सुना या नहीं सुना,पर दोनों पोतियों को दिन रात पढ़ता देख कर कल्याणी जी कुछ खास खुश ना होती।
दोनों बेटियों के एक्जाम थे ।वैशाली बच्चों को खाना पीना,दूध फल सब समय पर देने के बाद, रात को भी उनके कमरे में जाकर किताबें समेट कर रखती, कैसे पढ़ते पढ़ते ही किताबों के ढेर में घुस कर सो गई… वैशाली ने ड्राई फ्रूट्स के डिब्बे भरे, लड्डू, मठरी भी भर कर डिब्बे पास वाली टेबल पर रखे,देर रात में उठेगी फिर पढ़ना शुरू कर देगी.. तो भूख लगेगी तो खा लेगी।
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रीतादीदी भी आई हुई हैं,सबको खिला पिला कर वैशाली मंदिर में पूजा करने बैठी तो कल्याणी जी की आवाज आई
देख बेटा ये कोई समय है पूजा करने का..?… अरे नाटक करे है नाटक….. ये जन्म तो अच्छा ना बीता … अरेअगले जन्म की ही सोच ले… जाने किस घड़ी में यह मेरे घर की बहू बनी.. फिर दो दो बेटियां जन्मी….,मेरे बेटे का बुढ़ापा खराब हो गया.. मैंने तो बहुत पूजा पाठ करी थी दूसरी वाली के समय में… मगर इसके कर्मों के कारण मेरी ईश्वर ने एक ना सुनी…. दूसरी भी अभागिन बिटिया ही हुई….एक तो लड़कियों को नालायक बना रखा है कोई काम करना ना सिखा रही…
सारी बातें वैशाली के कानों में गर्म लोहे की तरह उतर रही थी
हदय में अपार टीस लिए आंखों से बहते झर झर आंसुओं के साथ पूजा पूरी करी…. ईश्वर के आगे शीश झुकाया तो कहा, सारी जिंदगी मैंने मां से बढ़कर सम्मान दिया है,आज मेरी बेटियों को कोस रही हैं अब ज़वाब जरुरी है…
वैशाली कल्याणी जी के सामने आ खड़ी हुई..
मम्मी जी कुछ कह रही थी आप?
मैं भी सुबह से किसी को नाश्ता, खाना दिए बिना पूजा कर सकती हूं….. घर में सभी भूखे रहेंगे तो ईश्वर प्रसन्न हो जाएंगे?
मैंने कब कहा? पहले सबको समय से खाना दो.. फिर तू पूजा करने बैठती क्यूं है? किसे दिखाती है? अब क्या मांगती है ईश्वर से?
क्यूंकि मुझे लगता है जो मैं किसी के सामने नहीं कह सकती वो ईश्वर से कह देती हूं ,…फिर इस घर में आपने या किसी ने भी मेरी कभी सुनी है क्या?
क्या सुना लिया भगवान को? दो दो बेटियां जनी हैं
दो गुणी और योग्य बेटियां मम्मी जी, मुझे लगता है ईश्वर ने मेरी पूजा स्वीकार की है
अरे घर से समय निकाल, कभी मंदिर जा,भजन में बैठ,यह जन्म तो बर्बाद कर दिया मेरा और मेरे बेटे का..
अगले जन्म की सोच
मम्मी जी जिस दिन मैंने अपनी बिटिया को अपने गोद में लिया था उसी दिन मेरा अगला जन्म हो गया था। मैंने उसे गोद में लेते ही सोच लिया था जो इस जन्म में मैं ना पा सकी उसे अपनी बेटियों को अवश्य दूंगी…… कैसे संयुक्त परिवार में मैं कितना काम करते करते पढ़ती थी, बहुत मेहमान आते जाते रहते थे सबके लिए खाना बनाने में सहयोग करने के बाद पढ़ने की ना तो हिम्मत बचती थी ना एकाग्रता… , मेरी मां भी असहाय थीं अक्सर बीमार रहती थी इसलिए मैंने सोचा काम मै संभाल लूंगी मगर मेरी बेटियां को थकान रहित मन से पढ़ने को मिले
मैंने भी बेटियों को काम करना सिखा रही हूं पर काम सिखाने के नाम पर काम में झोंक कर खुद आराम करना नहीं चाहा। जो बेटियां पढ़ाई की इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभाल रही हैं वो सब कुछ संभाल लेंगी…. मायके ससुराल सब जगह
हमने भी पढ़ाई करी है… बुआ रीता ने आंखें मटकाते हुए कहा
नेशनल लेवल के इक्जाम क्वालीफाई करना क्या होता है समझती है आप? हां दीदी अब से आप और आपके बच्चे यहां आकर यह उम्मीद ना रखें कि हम जहां बैठे रहेंगे वहीं बैठे बैठे नाश्ता खाना मिलेगा,और मम्मी जी आप भी मत कहिएगा मेरी बेटी अपने घर में बहुत काम करती है, यहां आराम करने आती है,सब लोग मिलजुल कर काम में सहयोग करें… तो सभी का खुशी खुशी स्वागत है
मेरी बेटी मायके में काम ना करेगी ,तो रोटी ना मिलेगी उसे?? कल्याणी जी ने चीखते हुए कहा।
वैसे भी गूंगी नौकरानी की तरह काम करने वाली वैशाली का ऐसे बोलना किसे और क्यूं भाता?
अरे सास ननद की सेवा करके आशीर्वाद लेले… इस जन्म की तो ना पूछ.. अगला जन्म भी गया..
मैंने कहा ना मम्मी जी !..मेरी बेटियों के रुप में जो मेरा अगला जन्म ही हुआ है उसी को संवारने के लिए जी जान से लगी हूं….. जब मरूंगी, फिर कहीं जन्म लूंगी, तब ऐसा करुंगी, वैसा करुंगी ऐसा नहीं सोचती….. मैं इस धरती पर रह कर क्या क्या कर सकती हूं वो करना सोचती हूं..और पूरा करना चाहती हूं…. मंदिर में बैठी देवी मां भी मुझसे तब प्रसन्न होंगी,जब आपकी ढेरों प्रार्थना के फलस्वरूप दो नन्ही देवियां मेरी गोदी में आई हैं उनके लिए जीवन सुरक्षित, संरक्षित कर सकूं… किसी का विरोध नहीं .. किसी दूसरे से कोई अपेक्षा नहीं…. लेकिन… वो सब कुछ अपनी बेटियों को दूंगी जिनके लिए स्वयं कलपी हूं……
वैशाली इतना सब कुछ कहने में रुंधे गले के साथ थरथर कांप रही थी।
दोनों बेटियों कालेज से वापस आ गई थीं।
मां से लिपट कर खड़ी थी, वैशाली को बैठा कर राशि भाग कर पानी लेकर आई
दोनों बेटियां समझ रही थी, दादी और बुआ का उनका इतना पढ़ना नहीं भाता, मम्मी को ढेरों जली कटी सुनाती है….. शायद इसीलिए आज मम्मी आरपार की लड़ाई के लिए बाध्य हुई।
रीता बुआ चुपचाप चौके में जाकर अपने बच्चों के लिए स्वयं खाना परोस रही थी, राशि और ईशा को आवाज नहीं दिया।
दादी ने पहली बार इतनी तार्किक बातें जिंदगी में सुनी थी…. वरना अभी तक तो बेवजह चिल्लाना ही जानती थी।
और गर्व से कहती थी कि मेरे आगे सबका मुंह नहीं खुलता
उनके अनर्गल प्रलाप के आगे??
जिससे बचते बचाते हुए वैशाली बेटियों के सुनहरे भविष्य के सपने बुन रही थी।
वैशाली की बेटियों ( जो उनकी पोतियां भी थीं) को अब पढ़ाई छुड़ा कर काम के लिए नहीं बुलाना है…… वरना आज दुर्गा की तरह क्रोध में कांपती बहू को वो देख चुकी थी।
फिर मां गौरी ने ही, काली मां का रुप भी धरा है।
बेटियों को घर से बाहर मजबूत बनाकर खड़ा करने के लिए एक जंग घर के भीतर भी लड़नी पड़ती है।
……..
वैशाली बोलती जा रही थी
अगले जन्म की कौन जाने, मेरी बच्चियों इस जन्म में तुम्हारी ये मां तुम्हारी मजबूत जमीन है… जिसपे खड़े होकर तुम अपने भविष्य के सपने बुन सकती हो… विस्तृत आकाश में पंख पसार सकती हो!
ये वादा रहा!!
पूर्णिमा सोनी
, किसी स्त्री के किसी भी क्षेत्र में कुछ बनने के पीछे जो आधार बनते हैं मैंने उसकी बात कही है।
मजबूती से खड़े होने के लिए मजबूत जमीन का होना बहुत मायने रखता है।
मैं इस कहानी का अंत वैशाली की बेटियों के किसी मुकाम पर पहुंचने तक कर सकती थी, परंतु मैंने मंजिल तक पहुंचने में जिन रास्तों को पार करना पड़ता है उनकी बात कही है, क्योंकि यह बताना कि अमुक स्त्री उस स्थान तक पहुंची …. बल्कि उस तक पहुंचने के लिए किन रास्तों को पार करना पड़ता है….. रास्ता लंबा है…. सबके अपने अपने मार्ग, अपने अपने अनुभव….
मित्रों ना सिर्फ लड़का हो जाने से बुढ़ापा सुधरता है ना लड़कियों से बिगड़ता है बल्कि संतान को योग्य/ जिम्मेदार बनाने से बुढ़ापे में निश्चित/ सुकून से रह सकते हैं फिर वह संतान लड़का हो या लड़की।
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में आपकी सखि
पूर्णिमा सोनी
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
कहानी प्रतियोगिता # बुढ़ापा
Sahi baat hai.ladka ho ya ladki sanskar achhe ho to bachha achha hi hoga.very nice story ma’am 🫶🫶