आरोही सरकारी डॉक्टर बन चुकी थी ,अपने ही अस्पताल के डॉक्टर रोहित से आज उसकी सगाई हो गई थी और दो दिन बाद ही उसकी शादी है। सगाई का फंक्शन खत्म होने पर सभी मेहमानों को विदा करने के बाद वह जैसे ही अपने घर आते हैं आरोही अपने कमरे में जाकर अपनी मम्मी पापा की तस्वीर को देखकर रोने लगती है।
अतीत की यादें चलचित्र की तरह उसकी आंखों में तैरने लगती हैं। अपने भाई अनुज की शादी के समय आरोही 12th क्लास में पढ़ रही थी। उनका लखनऊ में ही जूतो का शोरूम था। अनुज भी अपने पिता के साथ काम करता था। उसकी भाभी शीतल भी अपने अच्छे स्वभाव से घर में घुल मिल गई थी।
आरोही का डॉक्टर बनना उसके साथ साथ उसके माता-पिता का भी सपना था। आरोही पढ़ने में बचपन से ही बहुत इंटेलिजेंट थी लेकिन हंसते खेलते परिवार को जाने किसकी नजर लग गई थी। एक सड़क दुर्घटना में उसके माता-पिता की असमय ही मृत्यु हो गई थी। उनका पूरा घर मुखिया के न रहने से अस्त व्यस्त हो गया था।
बिजनेस का खास अनुभव ना हो पाने की वजह से उनका व्यापार भी कुछ शिथिल सा हो गया था, अनुज पर अब घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी इसलिए वह परेशान रहने लगा था। जिस घर में हमेशा खुशियां बरसती थी वहां पर जैसे मातम सा ही रहने लगा था लेकिन धीरे-धीरे जीवन की गाड़ी पटरी पर आ रही थी।
आरोही नीट के एग्जाम के लिए लखनऊ से ही कोचिंग ले रही थी। लेकिन अपने माता-पिता को खोने की वजह से मानसिक तनाव के चलते फर्स्ट अटेम्प्ट में उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया था, लेकिन वह दूसरी बार भी ड्रॉप लेकर नीट के एग्जाम की तैयारी करना चाहती थी। लेकिन अब अनुज उसे ग्रेजुएशन करने की सलाह दे रहा था। आरोही को ये हरगिज़ मंजूर नहीं था वह केवल डॉक्टर ही बनना चाहती थी और उसे अपने ऊपर पूरा भरोसा था, हारकर अनुज उसकी जिद मान ही लेता है। इसी बीचअनुज के भी दो जुड़वा बच्चे हो गए थे।
उसके भाई भाभी की जिम्मेदारियां भी अब बढ़ चुकी थी। तभी आरोही के लिए एक रिश्ता लेकर उसकी बुआ आती हैं आरोही 20 साल की हो चुकी थी और वो लोग 1 साल बाद तक शादी के लिए रुकने को भी तैयार थे। अनुज को अपनी बुआ की बात जच गई थी क्योंकि लड़का भी अच्छे खानदान से मिल गया मगर आरोही इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती थी उसे अपने माता-पिता का सपना पूरा करना था ,
लेकिन वह खुद को अब बिल्कुल अकेला महसूस कर रही थी। वह अपने मां बाप के बिना भाई भाभी पर बोझ भी बनना नहीं चाहती थी। इसीलिए अपने भाई से कुछ कह भी नहीं पा रही थी। उसने अपने जीवन का निर्णय अब ईश्वर के ऊपर छोड़ दिया था। अगले दिन शाम को जैसे ही आरोही कोचिंग से आती है अंदर से आई आवाज से उसके कदम बाहर ही ठिठक जाते हैं। शीतल अनुज से कह रही थी
देखो अनुज आज तक मैं तुम भाई बहन के बीच में कभी नहीं बोली लेकिन आज केवल इतना कहना चाहती हूं कि बिना खुद के पैरों पर खड़े किए आरोही की शादी के विषय में हमें सोचना भी नहीं चाहिए, हमारे बच्चों के साथ-साथ वो भी हमारी जिम्मेदारी है। तुम सही कह रही हो शीतल मै बुआजी से उसके रिश्ते के लिए मना कर देता हूं ,उसके भविष्य के साथ बिल्कुल खिलवाड़ नहीं करूंगा।
तभी कंधे पर शीतल का प्यार भरा स्पर्श पाकर वह वर्तमान में आ जाती है और उसकीआंखों में आंसू आ जाते हैं। वह अपनी भाभी से कहती है भाभी आप नहीं जानती आपने मेरे ऊपर कितना बड़ा एहसान किया है। शीतल उसके होठों पर हाथ रखती हुई रहती है, अपनों में एहसान कैसा यह तो मेरा फर्ज था, यह घर तुम्हारे लिए कभी पराया नहीं हो सकता मेरी बहन, पीछे से अनुज भी बोल पड़ता है। अपने माता-पिता की तस्वीर देखकर उन्हें ऐसा लगता है जैसे वह अपने परिवार को देखकर मुस्कुरा रहे हो।
पूजा शर्मा