ये तो मेरा फ़र्ज़ था – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : विनीता सरकारी ऑफिस में नौकरी करती थी । यह नौकरी उसे पति के मरने के बाद मिली थी । वे बहुत ही छोटी सी उम्र में ही उसे और रतन को छोड़कर चले गए थे । उसने अपने बेटे को पढ़ा लिखाकर अमेरिका भेजा यह उसकी ही मर्ज़ी थी ।

यहाँ वह अकेले ही अपनी ज़िंदगी बिता रही थी कि एक दिन बेटे ने कहा कि वह अपने साथ काम करने वाली अस्मिता से शादी करना चाहता है । वे बैंगलोर के हैं । उसके माता-पिता आपसे मिलने आएँगे ।

रतन के कहे अनुसार ही अस्मिता के माता-पिता आए शादी तय कर दी लेकिन उन दोनों को यहाँ आने में दिक़्क़त है इसलिए शादी अमेरिका में करना चाहते हैं । विनीता का वीसा नहीं बना था इसलिए अपने इकलौते बेटे की शादी में वह शामिल नहीं हो सकी थी अस्मिता के माता-पिता ही जाकर आ गए थे । 

उसे बुरा जरूर लगा था लेकिन उसके पड़ोस में रहने वाली सुमित्रा से उसने बहुत कुछ सीखा था। 

सुमित्रा के परिवार में दो बेटे दो बहू और दोनों के दो दो बच्चे रहते थे । सुबह उठकर सब नौकरी पर निकल जाते थे । वह खुद पूरे घर के काम करती थी । उन सबको टिफ़िन बॉक्स देना बच्चों की देखभाल सब करती थी फिर भी आए दिन पति या बेटे उन्हें कुछ ना कुछ कहते रहते थे । विनीता ने कभी भी उनके चेहरे पर शिकन नहीं देखी ।

 जब कभी विनीता सुमित्रा से कहती थी कि क्या है सुमित्रा तुम्हें बुरा नहीं लगता है कि सारे काम तुम ही करती हो उन्हें तो एहसान मानना चाहिए लेकिन वे एहसान फ़रामोश हैं इसलिए तुम्हें कुछ ना कुछ सुना ही देते हैं। 

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वह हँसते हुए कहा करती थी कि विनीता अपनों का एहसान कैसा? यह तो मेरा फ़र्ज़ है और तो और यह सब मेरे अपने हैं । एक बात बताऊँ अगर ज़िंदगी को खुशी से बिताना चाहती हो तो समझौता करना सीखना चाहिए । पति जब कुछ कहते हैं तो हम उन्हें छोड़कर चले नहीं जाते हैं बल्कि समझौता करके उनके साथ ही अपना जीवन बिता देते हैं।  वैसे ही वे मेरे बेटे हैं उनकी कही गई बातों को दिल से क्यों लगाना । यही मेरे सुखद जीवन का रहस्य है । 

विनीता हँस देती थी । उसी समय रतन से फोन आया माँ यहाँ आओगी क्या हमें आपकी याद आ रही है । सुमित्रा की बातों को याद करते हुए उसने वालेंट्री रिटायरमेंट ले लिया और अपने बेटे के पास अमेरिका चली गई थी ।

सुमित्रा को देखते ही बेटा रतन ,  बहू अस्मिता और पोता रवि जो छह साल का था और पोती सृजना नौ साल की थी । सब बहुत खुश हो गए थे । एक हफ़्ते तक वह अपने पोता पोती के साथ खेलती रही बहू ही सारे काम कर लेती थी ।

एक दिन रतन और अस्मिता विनीता के पास आकर कहने लगे कि माँ अस्मिता की नौकरी लग गई है और वह सोमवार से मेरे साथ ही ऑफिस जाएगी । 

विनीता ने कहा यह तो बहुत ख़ुशी की बात है बेटा मैं बच्चों को सँभाल लूँगी। तुम लोग बेफिक्र हो कर काम पर जाओ । 

उस दिन से उनकी दिनचर्या में बदलाव आया । रवि और सृजना को स्कूल बस में बिठाकर आती थी फिर घर के काम करती थी । कहते हैं सब काम मशीन ही कर देते हैं पर उनसे भी काम बढता है । 

शाम को बच्चों को बस स्टॉप से लेकर आती थी फिर वे छोटे थे तो उनके पीछे लगना पड़ता था।  कपड़े बदलवाना खाना खिलाना आदि । इन सबको करते हुए विनीता थक जाती थी परंतु वह सुमित्रा की बातों को याद करते हुए खुश रहने की कोशिश करती थी ।

एक दिन रतन ने कहा माँ शाम को आप बच्चों को लेकर पार्क में जा सकती हैं आपको भी अच्छा लगेगा और बच्चे भी खेल लेंगे । 

यह बात उसे अच्छी लगी इसलिए दूसरे दिन उसने बच्चों के स्कूल से आते ही उन्हें तैयार कर पार्क ले गई । वहाँ बच्चे दूसरे बच्चों के साथ खेल रहे थे उन्हें देखते हुए वह वहीं एक बेंच पर बैठकर उन्हें देख रही थी । 

इस तरह वह रोज़ बच्चों को लेकर पार्क जाने लगी । वहीं उसकी मुलाक़ात जगन्नाथ जी से हुई । उन्होंने विनीता को देखते ही कहा कि मेरा नाम जगन्नाथ है मैं और मेरी पत्नी तीन साल पहले बेटे के पास रहने आए थे दो साल पहले वह मुझे अकेला छोड़ चल बसी।  मैं यहाँ इंडिया से आए हुए लोगों को अमेरिका के पर्यटन स्थल गाइड बनकर घुमाता हूँ । आपको मालूम ही है ना हमारे बच्चों को अपने माता-पिता को घुमाने का समय नहीं मिलता है तो मैं उनकी मदद कर देता हूँ । आप भी पहली बार आई हैं शायद नेक्स्ट टूर होगा तो आपको बता दूँगा । 

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 उस दिन से विनीता की जगन्नाथ से रोज मुलाक़ात होने लगी । वह जब भी उनसे बातें करती थी तो उसे ऐसा महसूस होता था जैसे वह अपने बड़े भाई राजेंद्र से बात कर रही है । 

विनीता को अपनी यह दिनचर्या कुछ दिनों तक अच्छी लगी । पति की मृत्यु और रतन के हॉस्टल जाने के बाद से उसे ज़्यादा काम करने की आदत नहीं रही । इंडिया में उसके पास कामवाली और खाना बनाने के लिए कुक सब थे । इतना काम करने की आदत नहीं होने के कारण पैरों में दर्द और हल्का सा बुख़ार जैसा लग रहा था । उस दिन बच्चों को लेकर वह पार्क नहीं गई । पोता रवि पीछे पड़ गया था कि हमें जाना ही है । वह ज़ोर से रोने लगा था तो विनीता ने उसके लिए कार्टून चैनल लगाकर दिया । पोती सृजना भूख के मारे चिल्लाने लगी तो जल्दी से उसके लिए दूध गर्म करके केलॉग्स डालकर दिया ।  उसी समय अस्मिता और रतन भी घर आ गए घर और बच्चों की हालत देख रतन ने कहा यह क्या है माँ शाम को हर दिन ऐसा ही माहौल रहता है क्या ?

  मैंने तो आपसे कहा था कि बच्चों को पार्क ले ज़ाया करो और आपने उन्हें कार्टून लगा एक जगह बिठा दिया है । अस्मिता कहने लगी मैंने आपको पहले ही कहा था कि मेरी माँ को बुला लेते हैं । वह कितने अच्छे से बच्चों को सँभाल लेती हैं लेकिन आपको तो अपनी माँ को बुलाना था ,  अब भुगतो कहकर कमरे में चली गई । दोनों में से किसी ने भी यह पूछने की ज़रूरत नहीं समझी कि आपकी तबियत तो ठीक है ना । 

दूसरे दिन सुबह वे अपने बच्चों के साथ वीकेंड पर दोस्तों के साथ घूमने गए माँ से पूछा भी नहीं कि चलोगी क्या?

उनके जाते ही शाम को विनीता पार्क में पहुँची जगन्नाथ विनीता को देखते ही उसके पास आकर बैठ गए उसे उदास देख पूछा कि क्या बात है विनीता एनी प्रॉब्लम?

विनीता की आँखें भरी हुई थीं जगन्नाथ की सांत्वना भरी बातें सुनकर उसकी आँखें बरस पड़ी । 

जगन्नाथ ने थोड़ी देर उसे उसके हाल पर छोड़ दिया फिर सारी बातें सुनी ।

वीकेंड ख़त्म होने के बाद जब रतन अपनी पत्नी और बच्चों के साथ घर पहुँचा तो माँ दिखाई नहीं दी । पूरा घर छान मारा लेकिन विनीता दिखाई नहीं दी । इस बार अस्मिता भी डर गई थी ।

दो दिन बाद सुबह लैंडलाइन पर फ़ोन की घंटी बजी । वहीं बैठे रतन ने फोन उठाया वहाँ से विनीता थी हाँ तो कान्हा मैं इंडिया पहुँच गई हूँ । मामा के साथ घर जा रही हूँ । बाद में बात करूँगी । मेरे कपबोर्ड में कपड़ों के नीचे कुछ है उसे देख लेना कहकर फ़ोन रख दिया था । 

रतन जल्दी से उनके रूम में पहुँच कर देखा तो कपड़ों के नीचे एक पत्र था उसे लेकर पढ़ने लगा । विनीता ने पत्र में लिखा था कि बेटा मैंने बहुत कोशिश की अपने आपको तुम्हारे रंग में रंगने की । 

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मैं हमेशा सोचती थी कि अपनों का एहसान कैसा? उनके लिए काम करना तो हमारा फ़र्ज़ है पर अपने स्वाभिमान की बलि देकर नहीं ।

रतन मुझे तुम्हारे ऊपर ग़ुस्सा नहीं आ रहा है । मैंने कोई शपथ भी नहीं ली है कि अब तुम्हारे पास नहीं आऊँगी। हाँ जब तुम्हें लगे कि तुमने गलत किया है । अपनी गलती का एहसास हो जाता है तो मुझे बुलाओ मैं जरूर आऊँगी । हाँ तुम्हें लग रहा होगा कि मुझे टिकट कहाँ से मिला अचानक निकली कैसे । 

जगन्नाथ भैया मुझसे पार्क में मिलते थे उन्होंने ही मेरा टिकट बुक कराया था और एयरपोर्ट तक ड्रॉप भी किया । 

तुम लोगों को मेरा आशीर्वाद मेरी फ़िक्र मत करो ।

तुम्हारी माँ 

रतन और अस्मिता दोनों को अपने व्यवहार पर पछतावा हो रहा था । 

के कामेश्वरी

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