रत्ना जी के घर आज बहुत चहल पहल थी…कुछ ख़ास रिश्तेदार भी घर आए हुए थे…मौका था उनकी इकलौती पोती दीया की सगाई का ।
दीया की माँ रमा हमेशा से घरेलू कामों में निपुण थी और उसकी चाची तारा को सजने संवरने से फ़ुरसत ही नहीं मिलती थी…
और उससे बढ़कर वो बिना काम किए भी नाम कमाना जानती थी मसलन कुछ भी हो कह देती ये मैंने किया है… जबकि करती रमा थी पर वो बारह साल छोटी देवरानी को बच्ची समझ ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी और मुस्कुरा कर रह जाती।
सगाई सादे समारोह में ही घर पर सम्पन्न करना था…फिर भी रमा ने बहुत बारीकी से हर बात का ख़्याल रखा था … बहुत पकवान तो उसने खुद ही बना लिए थे ।
लड़के वाले जब घर आए तो सबकी ख़ातिरदारी में तारा सबको ऐसे दिखा रही थी मानो सब व्यवस्था उसने ही किया हो ।
तभी लड़के की माँ ने कहा ,” ये सब कुछ घर का बना हुआ है क्या… स्वाद बहुत अच्छा है !”
पास में ही तारा खड़ी थी …उसने लपक कर कहा ,” जी ये सब घर पर ही मैंने बनाया है…और लीजिए ना ।”
कहते हुए वो उनकी प्लेट में और नाश्ता डालने लगी
“ मम्मा ये सब कुछ तो बड़ी मम्मी ने बनाया है ना…और दीया दीदी ने भी उनकी मदद की थी आपने तो कुछ भी नहीं बनाया फिर भी कह रही हो मैंने बनाया.. झूठ बोलना गलत बात है ना ?” उधर ही बैठे सात साल के अंशु ने अपनी माँ तारा से कहा
ये सुनते ही तारा को ऐसा लगा मानो उसके ऊपर घड़ों पानी पर गया… वो जल्दी से अंशु को लेकर अंदर चली गई… बाहर मेहमानों के सामने उसे शर्मिंदा होना पड़ा सो अलग … बेटे को डाँट मार कर कोई फ़ायदा तो था नहीं ।
रत्ना जी बाद में तारा से कह रही थी,” बहू बच्चों को क्या पता कब क्या बोलना चाहिए… ध्यान तुम्हें रखना चाहिए था जो बोल रही हो वो कितना सच है ऐसे में सबके सामने यूँ घड़ों पानी तो ना पड़ता ।”
तारा सिर झुकाए अपनी गलती मान शर्मिंदा हो रही थी आगे से ऐसा कभी ना करने की कसम के साथ ।
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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