“रश्मि इधर सुन, तुझसे कुछ बात करनी है “भाई सुदेश ने रश्मि को पुकारा। रश्मि के साथ उसके पति मोहित भी आ गये।”बोलिये भैया क्या बात है “मोहित ने हँस कर पूछा।”आपसे नहीं रश्मि से बात करनी है “सुदेश जी बोले। सुदेश के घर का गृहप्रवेश होने वाला था अतः सुदेश रश्मि से पूछ कर उसकी ससुराल के लोगों का नेग और उपहार तैयार करना चाहते थे
, पर मोहित उनको मौका ही नहीं दे रहे थे, जबकि सुदेश,मोहित के सामने ये सब बात नहीं करना चाहते थे। सुदेश चाहते हुये भी बहन से बात नहीं कर पा रहे थे।क्योंकि मोहित घर के दामाद हैं, उनकी अवहेलना कोई करना नहीं चाहता अतः परिवार के सदस्य मोहित की इन हरकतों को अनदेखा कर देते।
मोहित चाहते थे रश्मि मायके आये तो भी उनके ही इर्द -गिर्द घूमे, जबकि रश्मि अपने भाई -बहनों के संग मस्ती करना चाहती थी। मोहित के वहाँ रहने से कोई भी खुल कर मस्ती नहीं कर पाता यहाँ तक कि खुद रश्मि भी सहज नहीं हो पाती। अंदर ही अंदर कुढ़ती पर कुछ बोल ना पाती। नाते -रिश्तेदार, दोस्त सब मोहित को सराहते इतना प्यार भला कौन बीवी से करता हैं, रश्मि तू सच में बहुत लकी हैं। होठों पर हँसी संजोये रश्मि उफ़्फ़ भी नहीं कर पाती। रश्मि को लगता उसका वजूद ही नहीं रहा क्योंकि हर जगह हर चीज सिर्फ मोहित के हिसाब से होनी चाहिए।
मोहित, रश्मि को लेकर बहुत ज्यादा पजेसिव थे। उनको बर्दाश्त ही नहीं होता रश्मि से कोई और बात करे। शादी के बाद मोहित की अधिकार वाली भावना रश्मि को उनका प्यार लगता था। पर समय बीतते रश्मि को समझ में आने लगा ये प्यार नहीं अधिकार की भावना है।कभी -कभी रश्मि ऊब जाती थी, ये कैसा प्यार जो उसके चारों तरफ बंधन बांध रहा। कहते हैं ना कि अति हर चीज की बुरी होती है, चाहें वो प्यार हो या अधिकार हो या आदत हो, इसीलिये मोहित का रश्मि के जीवन के हर पहलू में दखल रश्मि को बंधन लगने लगा।
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रश्मि का मन करता था अपनी सहेलियों की तरह, उनके साथ मूवी जाये या शॉपिंग पर, जब भी मोहित से जाने की परमिशन मांगती, मोहित कहते -कहाँ परेशान होगी, मैं ले चलता हूँ तुमको “। रश्मि मन मसोस कर रह जाती। जब भी मोहित को समझाने का यत्न करती, मोहित तुरंत बोल देते -मत भूलो शादी के बाद “तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है “। “मानती हूँ आपका अधिकार है, पर मैं सिर्फ एक पत्नी ही नहीं हूँ, बहन और किसी की बेटी भी हूँ, आप ये क्यों भूल जाते हैं जैसे आपके ऊपर सिर्फ मेरा अधिकार है भाई -बहन आपको प्रिय हैं,
वैसे मेरे भाई -बहन भी मुझे प्रिय हैं।मेरा मन भी उनके साथ अलग से समय बिताने का मन करता है। मोहित समझ कर भी नासमझी करते। थक -हार कर रश्मि ने कुछ बोलना ही बंद कर दिया।मायके जाना भी थोड़ा कम कर दिया। भाई सुदेश ने नया घर बनवाया, जिसके गृहप्रवेश के फंक्शन के लिये रश्मि, मोहित और बच्चों के साथ आई हैं।गृहप्रवेश खत्म होते ही रश्मि घर लौट आई, इस बार उसका मन खराब रहा। वो मौके की तलाश में रहने लगी जिससे मोहित को उनकी गलतियों का अहसास कराया जा सके।
कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आया। मोहित की दोनों बहनें राखी बाँधने आयीं। ननदों का हर बार तो रश्मि बहुत आवभगत करती, ढेरों पकवान बनाती। मोहित अपनी बहनों और माता -पिता के संग मस्ती करता और रश्मि रसोई के ढेरों कामों के बीच भाई -बहनों की नोंक -झोंक को एन्जॉय करती। वो मोहित को पूरा समय देती कि मोहित बहनों के संग समय बिता पाये।पर इस बार रश्मि ने ननदों के साथ उनके पतियों को भी निमंत्रण दे दिया तो दोनों बहनोई भी साथ आ गये, सब लोग उनके स्वागत में लगे रहे,
बहने भी अपने पतियों में व्यस्त रह गई,दोनों ननदें जब भी भाई के पास आती, उनके पति किसी ना किसी बात पर पुकार उठते।मोहित बहनोईयों के आगमन से खुल कर मस्ती नहीं कर पाये। उनके जाने के बाद रश्मि को खूब खरी -खोटी सुनाई, क्यों बुलाया था उनलोगो को, मै बहन के साथ खुल कर बात नहीं कर पाया।दामाद के घर आने पर तो सब स्वागत सत्कार में लग जाते,। ये तो भाई -बहन का त्यौहार था। हम लोगों त्यौहार का आनंद उठाने के बजाये मेहमान नवाजी में लगे रहे। और दोनों जीजाओं को भी समझ नहीं की भाई -बहन को बात करने दें।
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रश्मि बोली -अब समझ में आया, मैं क्यों अपने मायके में मस्ती नहीं कर पाती।माना आप मुझे बहुत प्यार करते हैं पर प्यार में समानता का भाव होता है, एकाधिकार का नहीं। आप जिसे भी प्यार करते हैं वो आपके रिश्ते के साथ और कई रिश्ते से जुड़ी होती हैं, चाहे आपकी बहन हो या मैं हूँ, ठीक वैसे ही जैसे आप मेरे पति होने के साथ बेटा और भाई भी हैं…। मोहित के पास कोई जवाब नहीं था।पर जो बात रश्मि समझाना चाहती थी वो मोहित समझ गया।”अच्छा हुआ रश्मि तुमने रिश्ते बिगड़ने से पहले ही मुझे सीख दे दी।उसने रश्मि से क्षमा मांग लिया।
सखियों, छोटी सी समस्या है जो कई बार बड़ा रूप धारण कर लेती है। एक स्त्री आपकी पत्नी हैं तो भी वो एक बहन और बेटी भी है और एक पति भी बेटा और भाई है अगर ये बात पति या पत्नी समझ लें, और एक दूसरे का सम्मान करें ना कि एकाधिकार जताये तो जीवन का सफर आसानी से कट जाता है। आप सब कि क्या राय है, जरूर बतायें।
—संगीता त्रिपाठी