ये कैसा प्यार – संगीता अग्रवाल

” कितनी खूबसूरत है वो लगता है भगवान ने बड़ी फुर्सत से बनाया है उसे !” राजीव एक तरफ देखते हुए अपने दोस्त नितीश से बोला।

” कौन है वो जिसने हमारे दोस्त के दिल पर कब्जा कर लिया है ?” नितीश मुस्कुराता हुआ बोला।

” यार वो सामने जो खिड़की खुली दिखाई दे रही है ना उसी मे नज़र आता है उसका चेहरा सच उसे देख ऐसा लगता है ईश्वर ने उसे मेरे लिए ही बनाया है !” राजीव फिल्मी हीरो की तरह दिल पर हाथ रख बोला।

” बस बस तू कुछ ज्यादा जल्दी नही भाग रहा तुझे यहाँ आये पंद्रह दिन हुए है और एक चेहरा तुझे इतना ज्यादा पसंद आया कि तुझे वो अपने लिए परफेक्ट मैच नज़र आने लगी है जबकि तू उसके बारे मे कुछ जानता भी नही क्या पता वो शादीशुदा हो !!” नितीश बोला।

” यार जब कोई ऐसा टकराता है जिसके साथ जिंदगी भर का नाता जुड़ना हो तो दिल के तार छिड़ते है ना वो पल मे ही होता है अब तो लगता है वो ना मिली तो मैं मर जाऊंगा बस तू दुआ कर वो शादीशुदा ना हो फिर तो चाहे जो हो जाये मैं उसे अपना बना ही लूंगा !” राजीव बोला तो नितीश हंस पड़ा उसकी दीवानगी देख।

” चल चल अब मैं चलता हूँ तुझे भी सुबह ऑफिस जाना है ना तो सो जा समझा !” नितीश ये बोल निकल गया।

राजीव दरवाजा बंद कर उसके ख्यालो मे खोता हुआ बिस्तर पर लेट गया अभी पंद्रह दिन पहले वो यहाँ आया था उसका ट्रांसफर हुआ था यहां नितीश उसके कॉलेज का दोस्त था और पहले से इस शहर मे रहता था तो अक्सर राजीव के फ्लैट मे आ जाता था उससे मिलने। जिस लड़की की बात राजीव कर रहा था वो उसके सामने वाली बिल्डिंग मे रहती थी और अक्सर खिड़की पर बैठी दिख जाती थी।

अगले दिन राजीव सुबह उठा तो वो खिड़की मे बैठी थी राजीव उसे देखने लगा उसकी निगाह भी अनायास राजीव की तरफ उठी तो राजीव मुस्कुरा दिया जवाब मे वो भी मुस्कुरा दी। राजीव को तो मानो उसकी जिंदगी मिल गई अब तो अक्सर ऐसा होने लगा दोनो की निगाह मिलती और दोनो मुस्कुरा देते। राजीव उसकी मुस्कुराहट मे खो सा जाता । ऐसे ही दो महीने बीत गये राजीव ने बस उसे खिड़की मे ही देखा था अब वो उसे करीब से देखना उससे बात करना चाहता था पर कैसे ये उसे समझ नही आ रहा था। अचानक उसे कुछ सूझा और उसकी आँखों मे चमक आ गई।

रविवार की शाम उसने उस लड़के के फ्लैट की बेल बजाई ।

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” जी आप कौन ?” दरवाजा खोलने वाली लगभग पैन्तालीस वर्षीय एक महिला ने पूछा।

” आंटी नमस्ते मैं आपके सामने वाली बिल्डिंग मे रहता हूँ आपको अक्सर अपनी खिड़की से देखता हूँ यहाँ मेरा अपना कोई नही आज छुट्टी थी कोई काम भी नही था माँ की याद भी आ रही थी सोचा थोड़ी देर आपसे बाते कर लूँ अगर आपको बुरा ना लगे तो ?” राजीव ने कहा। उसे देख पहले तो वो महिला असमंजस मे पड़ गई पर फिर जाने क्या सोच अंदर बुला लिया।

” आओ बैठो बेटा मैं चाय लाती हूँ तब बात करते है !” वो महिला बोली।

” जी आंटी चाय की जरूरत नही बस आप एक गिलास पानी पिला दीजिये !” राजीव बोला। वो बात तो उस महिला से कर रहा था पर निगाह उस लड़की को ढूंढ रही थी जिसके लिए वो यहां आया था। पानी पीने के बाद राजीव उस महिला से बहुत आत्मीयता से बात कर रहा था जिससे उस महिला की झिझक भी खत्म हो रही थी वैसे भी राजीव उनके बेटे की उम्र का सा था और वो उस महिला को माँ बराबर ही मान दे रहा था।

” बेटा अब थोड़ी देर मे खाने का समय हो रहा है तुम खाना खाकर ही जाना मैं खाने की तैयारी करती हूँ इतने तुम मेरी बेटी से बात करो अभी वो अंदर पेंटिंग बना रही थी इसलिए मैने उसे नही बुलाया था।

” सलोनी , बेटा सलोनी बाहर तो आओ जरा !” उस महिला ने आवाज़ लगाई। राजीव का दिल जोर जोर से धड़कने लगा जिस चेहरे को वो दूर से देख उसपर मर मिटा था वो चेहरा उसे पास से नज़र आने वाला था और चेहरा ही क्यो उस खूबसूरत चेहरे के साथ वो शख्स भी जो उसकी जिंदगी बन चुकी है। वो महिला एक दरवाजे को देखते हुए आवाज़ दे रसोई की तरफ चली गई । राजीव एकटक उस तरफ निहार रहा था कब उस मल्लिका के दर्शन होंगे उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। तभी दरवाजा खुलने की आहट हुई और जो राजीव ने देखा उससे वो हैरान रह गया , दिल की धड़कन वापिस सही हो गई और उसकी निगाह झुक गई।

” बेटा ये मेरी बेटी है सलोनी बहुत अच्छी पेंटिंग बनाती है ये साथ साथ फैशन डिज़ाइनिंग का काम भी करती है !” वही महिला बाहर आ बोली पर राजीव को उसके शब्द सुनाई ही नही पड़ रहे थे वो तो वहाँ से भाग जाना चाहता था ।

” अच्छा आंटी अब मैं चलता हूँ !” राजीव एक दम से बोला। उस महिला और सलोनी दोनो को राजीव का ये व्यवहार बड़ा अजीब लगा ना उसने सलोनी से हाई हेलो की ना कोई औपचारिक बात की।

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” बेटा खाना खाकर जाना वैसे भी तुमने कहा तुम्हे कोई काम नही बोर हो रहे थे तो खाने के बाद सलोनी की पेंटिंग देखना तुम तुम्हे बहुत पसंद आएँगी !” सलोनी की माँ बोली।

” नही आंटी मुझे कोई जरूरी काम याद आ गया मैं चलता हूँ !” इतना बोल राजीव वहाँ से जान छुड़ा कर भागा।

” इसे क्या हुआ अचानक अभी तक तो आराम से बात कर रहा था अब अचानक इतनी हड़बड़ी मे चला गया !” सलोनी की माँ बड़बड़ाई।




” जाने दो माँ ऐसे लोगों से वैसे भी ज्यादा जान पहचान नही बढ़ानी चाहिए !” सलोनी बोली उसका मन राजीव की इस हरकत से कसेला सा हो गया । दूर से सलोनी भी अक्सर राजीव को देखती थी तो पहचान तो गई ही थी पर उसे तब राजीव मे एक दोस्त नज़र आने लगा था और आज राजीव की इस हरकत से वो राजीव की मंशा समझ गई थी साथ ही इतना भी कि राजीव जैसे लोग दोस्ती के लायक भी नही होते। वो इतने तंग दिल होते है जो सिर्फ लड़की के सुंदर चेहरे पर मर मिटते है और हकीकत सामने आते ही भाग जाते है । सलोनी अपनी व्हील चेयर खिसकाती हुई रसोई की तरफ चली गई।

उधर राजीव सीधे अपने फ्लैट पर आ रुका और नितीश को फोन मिला सलोनी की बुराई करने लगा कल तक जो सलोनी के चेहरे को देख उसे पाने को व्याकुल था और ना मिलने की सूरत मे मर मिटने को तैयार था आज सलोनी को देख उसकी हंसी उड़ा रहा है और जिस प्यार का दम वो कल तक भरता था वो आज कोने मे आँसू बहा रहा था।

संगीता अग्रवाल ( अप्रकाशित )

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