ये जीवन है… – लतिका श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

मम्मी जी बहुत हुआ …अब आपके इतने कठिन काम करने के दिन गए …चलिए हम लोगों के साथ रहिए अब आराम से नाती पोतों का सुख लीजिए…. पारस की चहकती हुई आवाज से सुधा चौंक गई।गहराती शाम में वह अपनी बुटीक शॉप के शटर गिरा रही थी तभी पीछे से अपने दामाद की आवाज सुन खुश हो गई।

अरे पारस बेटा आप कब आ गए पता ही नहीं चला तब तक बेटी नीति और चार साल के नाती चीनू ने उन्हें घेर लिया।

हां नानी देखो नई गाड़ी लेकर आए हैं चलो हमारे साथ रहना अब।हम तुम्हें लेने आए हैं आप और मैं एक ही कमरे में रहेंगे कितना मजा आयेगा उत्फुल्लित चीनू कल्पना करके ही आनंदित हो उठा था।

सुधा तो सुन कर ही निहाल हो गई। आंखों में आसूं छलक आए।

बस बस बड़ा आया नानी के साथ रूम शेयर करने वाला मैं तो अलग रूम में रहूंगी अब बोल.. हंसते हुए उसने चीनू के मजे लिए।

हां तो मेरा रूम आपका हो जायेगा और मुझे आप अपने साथ रख लेना हाजिरजवाब चीनू ने तुरंत कहा और नानी से लिपट गया।बहुत होशियार हो गया है मेरा छोटा बच्चा सुधा ने सबको घर ले जाते हुए कहा तो उसके साथ सब हंस पड़े।

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आनंद उसके हृदय में घुमड़ा आ रहा था।

कितने कष्ट कितने दर्द के बाद ये आनंद के पल उसे नसीब हुए हैं उसका दिल ही जानता है… आज से दस साल पहले कितनी असहाय कितनी कमजोर थी सुधा।उसके पति के निधन के साथ ही जैसे जीवन की ऐसी कड़वी सच्चाई खुल कर सामने आई जिसके लिए वह तैयार हो नही थी।ससुराल से जुड़े उसके संबंधों का भी जैसे अचानक ही निधन हो गया था।पति के आंख बंद करते ही घरवालों ने भी आंखे बंद कर लीं थीं।एक बेटी की मां थी वह.. उसके कोई पुत्र नहीं था ये भी तो उसका अपराध था बेटा भी नहीं पति भी चला गया … हतभागिनी अभागी अशुभ निपूती फूटी किस्मत वाली…. जाने कैसे कैसे दिल छेदने वाले खिताब उसे मिलते चलते गए थे।

सुधा अधमरी ही हो गई थी।

सच है खुद के सिवाय और कोई किसी का साथ नही देता यही सच्चाई है मुसीबत पर अपना साया भी साथ छोड़ देता है ।नीति से दिनरात यही कहती रहती थी शादी के बाद से इन सब लोगो के लिए मैंने अपने दिन रात लगा दिए सुबह से देर रात तक सबकी सेवा सबका ख्याल किया खटती रही दौड़ती रही यही सोच कर कि ये सब मेरे अपने हैं मेरा घर है…आज मुझे जरूरत हैं इन सबकी तो सबने मुझे त्याग दिया आज मैं और मेरी बेटी बोझ हो गए है अपने ही घर वालो के लिए…कोई नहीं है मेरे आस पास…!

इस कड़वी सच्चाई को उसका दिल स्वीकार करने में असमर्थ था।

बेटी नीति उस वक्त उसका एकमात्र संबल बन कर खड़ी हो गई थी। उस वक्त भी जब उसने अपनी बेटी की परवरिश की खातिर घरवालों से मुंह खोलकर अपना हिस्सा बांटा किए जाने का दुस्साहस किया था और घरफोड़ी का खिताब भी अर्जित कर लिया था। उस वक्त भी जब घरवालों के घोर विरोध के बावजूद बेटी के मजबूत साथ के बलबूते उसने खुद की शॉप खोलकर खुद अपने और बेटी के लिए सम्मान से जीवन जीने का रास्ता खोलने की हिम्मत की थी।

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पति तो चला गया अकड़ नहीं गई ….अब देखते हैं कैसे दुकान चलेगी कितनी कमाई होगी .. कैसे कर पाएगी अपनी लड़की की शादी … बेतरह शोर पर उसने विराम लगा दिया था जिस दिन अपनी नीति की शादी तय की थी ।चाहती तो थी अपनी बेटी को ऊंची से ऊंची शिक्षा देना खुद के पैरो पर खड़ा करना लेकिन पारस जैसे सरल होनहार लड़के को देख कर बेटी का भविष्य सुरक्षित करने की अभिलाषा तीव्र हो गई थी और इसी लोभ में बेटी की पढ़ाई बीच में ही छुड़ा कर सुयोग्य लड़के पारस से गांठ जोड़ विदा कर निश्चिंत हो गई थी।

शादी के बाद निति को हिदायत दी थी बेटा वह घर भी तेरा ही है उसे अपना ही बनाना ।

मां… तुमने भी तो अपने घर को अपना बनाया था क्या हुआ तुम्हारे साथ!! कहां गायब हो गए थे घरवाले जब तुम मुसीबत थीं फिर भी मुझे वही गलती करने बोल रही हो नीति बहुत आक्रोश में थी।

नहीं बेटा हमें अपने कर्म हमेशा बेहतर तरीके से ही करने चाहिए परिस्थितियां विपरीत हो फिर भी ।अच्छा बरताव अच्छा ही रहता है उसका फल मिलता ही है जरिया बदल जाता है आज देख मेरा सब काज अच्छे से संपन्न हो गया ना तू भी अपना बरताव बहुत अच्छा रखना बस..मुस्कुरा कर अपनी बात पर जोर दिया था सुधा ने ।

नीति विचारमग्न हो गई थी लेकिन मां की बात गांठ बांध साथ ले गई थी।

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नीति को अपनाने के साथ ही पारस ने जैसे सुधा को भी मां की तरह ही अपना लिया था।उसकी चिंता वह नीति से भी ज्यादा करता था वास्तव में एक बेटे की कमी उसने पूरी कर दी थी।सुधा को भगवान से अपने जीवन के लिए कोई शिकायत ही नहीं रह गई थी।बेटी का खुशहाल जीवन सुनहरा भविष्य उसके अतीत के हर कष्ट को भुला देता था।अपने दम पर अपनी बेटी की शादी धूमधाम से करके परम संतोष और सुख में डूब जाती थी वह।

आज भी पारस उसे अपने घर ले जाने ही आया था लेकिन उसने अगली बार आऊंगी कह प्यार से मना कर दिया था और उन सबके जाने के बाद बेटी के सुखमय जीवन के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता देने बैठ गई थी।

तभी मोबाइल बज उठा खबर ऐसी थी कि वज्रपात हो गया था।नई गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था पारस बुरी तरह जख्मी हुआ था सांसें रुक गईं थीं सुधा की।

कहां कहां लेकर नहीं दौड़ी थी वह बड़े से बड़े डॉक्टरों के चक्कर लगाए रुपए पानी की तरह बहा दिया हर देवी देवता पर माथा टेका मन्नतें मानी पर विधि का विधान ….हंसता खेलता पारस हमेशा के लिए साथ छोड़ चला गया था ।

इस बार  सुधा बुरी तरह टूट गई ।जीवन खत्म हो गया था उसके लिए।अपने बारे में कठोर व्यंग्य बाण कटु बोल वह सहन कर सकती थी लेकिन अपनी बेटी को उस भीषण यंत्रणा से गुजरते देखना उसके लिए असहनीय हो गया था जीवन की ये कड़वी सच्चाई कि अब बेटी अकेली रह गई है उसके साथ भी वही सब घटित होने वाला है जो मेरे साथ हुआ था इसकी कल्पना ही उसके रोंगटे खड़े कर रही थी।बेटी और नाती चीनू के भयावह भविष्य की सच्चाई का अट्टहास उसके कानों के परदे फाडे दे रहा था।

एक बार फिर वह अधमरी हो गई थी हिम्मत टूट कर बिखर गई थी चीनू को गले से लगा चुपचाप सुबक रही थी।

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समधन जी …जो हो गया उस पर किसी का बस नही था हमने और आपने दोनों ने अपना बेटा खोया है। आपकी चिंता और दुख मैं समझ रहा हूं और आपके अतीत के अनुभव उन्हें दुगना कर रहे हैं ।नीति आपकी ही नही हमारी इस घर की भी बेटी है ।यदि आप हम पर भरोसा कर सकें तो ये स्टाम्प लिखवा कर लाया हूं अगले महीने से ही मेरे पारस के ऑफिस की हेड चेयर पर हमारी बेटी नीति बैठेगी काम संभालेगी….समधी जी की वाणी अमृत जैसी लगीं…सुधा ठगी सी खड़ी रह गई ।

लेकिन नीति ज्यादा पढ़ी लिखी भी नही है सुधा का बेटी की पढ़ाई बीच में ही छुड़ाने का दर्द बाहर आ गया।

मुझसे तो ज्यादा ही पढ़ी लिखी है मैं जानता हूं.. फिर मैं तो हूं इसके साथ ….मुस्कुरा कर पूरे विश्वास से उन्होंने आश्वस्त स्वर में आगे फिर कहा …जो बेटी पूरे घर और घरवालों की व्यवस्था करना बखूबी जानती है वह ऑफिस की जटिलताएं भी बखूबी समझ लेगी दृढ़ स्वर था उनका।

नीति तो पापा कह बिलख ही पड़ी।

वास्तव में ये जीवन है और इसके सच के भी कितने रंग होते हैं जो मेरे साथ घटित हुआ वही पूरा सच नहीं था मेरी बेटी के जीवन के सच का रंग कुछ अलग ही है ।ईश्वर करे यह रंग और खिले जीवन में बिखर जाए ….दुआ के लिए सुधा के हाथ ऊपर उठ गए और आंखें आंसू से छलक उठीं थीं..!

नानी ये मेरा नहीं आपका कमरा है अब तो मैं आपके साथ रह सकता हूं ना.. मासूम चीनू की मांग सुधा के दिल को छू गई …कैसे मना करती!!

हां हां बेटा सब साथ में रहेंगे … तसल्ली और संतोष से चीनू को लिपटा लिया था उसने।

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव 

#यही जीवन की सच्चाई है

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