ये जीवन हैं – गुरविंदर टूटेजा 

  रीमा क्या कर रही हो अभी गिरती तुम…अजय ने जोर से चिल्लाया..!!

तुम्हें तो पता है ना कि इस दिन का मैं कब से इंतजार कर रही थी..आज भूमि पूजन हैं हमारा घर बननें जा रहा हैं…हमें ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिल रही है…!!

हाँ भाई पता है मुझे व बच्चों को सबको पता है..सभी जोर से हँसनें लगे पर पता था कि मम्मी पूरी कहानी सुनाएगीं…!!

सही में तुम मेरी हँसी उड़ातें हो पर मैंने जो वक्त गुजारा है …मम्मी-पापा के जाने के बाद चाचा जी के साथ रही फिर बड़ी उम्मीदों के साथ शादी करके आयी तो….;;;;

तो..अजय ने हँसते हुए कहा कि तुम्हें मुझ जैसा प्यार करने वाला पति मिला और क्या चाहिए…??

 हाँ वो तो है इसमें कोई दो राय नहीं है…पर घर भी तो दो जेठ जी के मिलें जिसमें एक में कमरा व दूसरें में रसोई मुझें पता हैं कि मैंने कैसे निकाला वो समय…फिर अब भी रह रहें हैं तो जेठ जी के घर में….जब भी वो आतें हैं तो जेठानी जी की नज़रें बहुत कुछ कह जाती हैं..!!!!

  मम्मी वैसे आपकी ज़िंदगी में अच्छा भी तो बहुत हुआ हैं…हम जैसे दो प्यारे  बच्चें आपको मिलें हैं…!!!!

 हाँ बेटा सही है सब मिलकर मेरा जितना चाहे मजाक बना लो पर मैं पहले भी खुश थी आज तो खुश हूँ ही..!!

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 तो अब आगे की कहानी मम्मी की जुबानी…!!

 हाँ तो बताऊँगी ना…पहले इतनी उलझनों के बाद भी इसलिए खुश थी क्योंकि मैं अपने से नीचे देखती थी तो मेरे सिर पर छत तो थी पर ज़िंदगी में कितनें ही ऐसे देखें है जो थोड़ी सी जगह के लिए तरस जातें हैं तो मैं गुरु जी का शुक्राना करती थी कि मैं बहुतों से अच्छी हूँ…अपने परिवार के साथ खुश हूँ…!!!!

  आगे क्या…????

आगे ये ही कि आज मेरा सपना पूरा हो रहा हैं मैं गुरूजी से यही अरदास करूँगी कि सबको खुशियाँ मिलें…वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है…अजय व बच्चें रीमा के गले लग गयें…गाना चल रहा था…!!!!

ये जीवन हैं इस जीवन का यही हैं रंग-रूप..थोड़े गम हैं 

थोड़ी खुशियाँ..यही हैं छाँव-धूप….!!!!

मौलिक व स्वरचित 

गुरविंदर टूटेजा 

उज्जैन (म.प्र.)

#ज़िन्दगी

अप्रकाशित

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