ये जीवन का सच है – वीना : Moral Stories in Hindi

पढ़ने की बहुत लालसा थी मन में पर समझ नहीं आ रहा था कि आगे की पढ़ाई कैसे करूंगी। जिस कस्बे या कहूं तो छोटे शहर से थी मै वहां बारहवीं के बाद पढ़ने के लिए कोई अच्छा कॉलेज नही था । मेरी ईच्छा को देख पापा ने कहा कि मेरे  चाचा का लड़का दिल्ली में अच्छी नौकरी में है और काफी पैसे वाला है वहां जाके रह के पढ़ोगी तो मैं उससे कह सकता हूं । पापा हॉस्टल में रख के पढ़ाने का खर्च नही उठा सकते थे । मेरे तीन और भाई बहन थे और पापा की आमदनी उतनी ज्यादा नहीं थी ।

मुझे तो लगा जैसे रास्ता मिल गया अपने सपने पूरा करने का ।

            जल्द ही पापा ने उनसे बात कर ली और वो अंकल भी तैयार हो गए। फिर क्या था मेरी पैकिंग शुरू हो गई । मेरे सामान के साथ मां ने कुछ घर के बने नमकीन और शकरपारे भी अंकल आंटी के लिए रख दिए।  पापा मेरे साथ दिल्ली गए मुझे छोड़ने। अंकल ने भी गर्मजोशी के साथ हमारा स्वागत किया पर आंटी ने कुछ ढीले ढाले तरीके से बर्ताव किया। खैर पापा मुझे छोड़ के चले गए आंटी ने मुझे सीढ़ियों के नीचे बने एक छोटे से कमरे में रहने के लिए

जगह दी। मेरे लिए वो भी बहुत था, मैंने उन्हें मां की दी हुई सौगात पकड़ाई तो वो अजीब तरीके बोली “उधर रख दो यहां ये सब कोई खायेगा तो ना”और आंटी वहां से चली गई । मेरी समझ में कुछ आया नहीं तो मैने भी प्यार से अपनी मां के हाथों से बने उस नाश्ते को अपने पास ही रख लिया।

       अपना सामान उस छोटे से कमरे में रख मैंने भी अपनी जिन्दगी शुरू की । खाना किसी ने पूछा नही तो मैं भी बाहर नहीं गई रात काफी हो गई थी तो सो गई ।

           सुबह बाहर निकली कोई दिख नही रहा था इस बड़े से घर में ,एक इंसान दिखा सफाई करते उसी से पूछ के बाथरूम गई । उसी के बताने पर आगे गई तो बड़ा सा हॉल दिखा जहां आंटी अंकल बैठे थे। अंकल ने कहा अरे मधु तुम रात में खाने नही आई , आन्टी ने तुरत जवाब दिया कि ये तो सो गई थी। अच्छा आओ अभी नाश्ता खा लो अंकल के ऐसा कहते ही आंटी बोली कि नाश्ता वहीं भेज दिया है खा लेगी।

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तुम अपने कमरे में जाओ वहीं नाश्ता है  मैं तो कुछ बोल ही नहीं पाई ना ही अंकल कुछ बोले मैं वापस लौट आई अपने उस कमरे में। घर की बहुत याद आई तभी कमरे में एक औरत मेरा नाश्ता ले के आई जिसमें दो ब्रेड टोस्ट किए हुऐ और थोड़ी चटनी थी । किसी तरह मैंने उसे गले से नीचे उतारा। अब आगे का सोचना था ,मुझे नही लगता कि आंटी को मेरा वहां आना पसंद भी था। उस घर में कोई मुझसे बात करने वाला भी नहीं था। अकेले बैठी अपने भाई बहनों को याद कर रही थी।

         कुछ तो सोचना था मुझे, कैसे कॉलेज जाऊं कैसे आगे की पढ़ाई करूं ? यहां का वातावरण तो ऐसा लगा नही कि कोई मेरी मदद करेगा फिर भी मैं हिम्मत जुटा के अंकल के पास गई बात करने। ये मेरी खुशकिस्मती थी कि वो अकेले बैठे मिले। मेरे पूछने पर मुझे कॉलेज का पता बताया और एक टीचर के बारे में भी कहा जो कि मेरी मदद कर सकते थे। मैं  कॉलेज के लिए चल दी पता किया एडमिशन की सारी प्रक्रिया पूरी की । घर लौट के आई तो न कोई कुछ पूछने वाला ना ही कहने वाला ।मन बहुत दुःखी हो गया घर की याद आने लगी,अभी अपने भाई बहन पापा मां सब पूछते कैसा कॉलेज है ,कोई दिक्कत तो नही हुई।

क्या करूं चुप चाप जाके कमरे में लेट गई,शाम होने को आई पर यहां तो कोई दिख भी नही रहा। मेरा कमरा घर के पिछले हिस्से में सीढ़ियों के नीचे था । अंधेरा होने को आया तो कमरे से निकल कर  सोचा उधर जाके देखूं शायद कोई हो एक औरत दिखी उससे पूछा तो उसने कहा कि घर में कोई नहीं है सब बाहर गए हैं उनका खाना भी आज बाहर ही है। मैं एक अनचाहे मेहमान की तरह इधर उधर घूम के फिर कमरे में आ गई ।

समझ नहीं आ रहा था कि खाने का क्या करुंगी, भूख भी लग रही थी। थोड़ी देर में फिर बाहर निकली वो औरत भी अब नही दिख रही थी मैने सोचा किचन की तरफ चलूं देखती हूं क्या कर सकती हूं।

तभी वो औरत दिखी मैने पूछा कि खाने को कुछ है (सच कहूं तो बहुत शर्म आई मुझे) उसने कहा हां दिन की सब्जी पड़ी है अपनी रोटियां सेंक लो मालकिन ने ऐसा कहा है। मैं जा रही हूं अपने कमरे में। मुझे बहुत रोना आया पर भूख भी बर्दास्त नहीं हो रही थी तो किचन में गई और सामने सब कुछ रखा था अपने लिए चार रोटियां बनाईं और वहां रखी सब्जी के साथ खाने को कमरे में ले आई ।

              मन इतना दुखी था कि समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं मैं कैसे यहां रह पाऊंगी। दूसरे दिन सुबह उठी नहा धोकर तैयार हुई तो वही औरत मेरे लिए दो टोस्ट और चटनी ले के आ गई । मैंने उसे किसी तरह गले से उतारा और फिर मां के दिए कुछ शकरपारे खाए और कॉलेज के लिए चल दी।आज तो अंकल भी नही दिखे। कॉलेज में एडमिशन के लिए जिनसे मिली थी वो बड़े अच्छे इंसान थे उन्होंने मुझसे पूछा कि सब ठीक है,

शायद उन्होंने मेरे चेहरे की उदासी को पढ़ लिया था। मैं भी पता नहीं क्यूं उनसे अपनी परेशानी बताने लगी कि सर मुझे रहने की कोई जगह मिल जाती क्यूंकि अभी जहां हूं मैं वहां रह नही पाऊंगी अगर आप कुछ मदद कर सकते। थोड़ी देर तो वे सोचते रहे फिर बोले मेरे पड़ोसी तो कुछ कमरे लडकियों को रहने को देते हैं , मैंने पूछा पर सर वो तो पैसे लेते होंगे और मेरे पास उन्हें देने को उतने पैसे तो हैं नही।

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वो बोले अच्छा मुझे उनसे बात करने दो फिर कल मैं तुम्हें बताऊंगा। उस दिन मैंने कॉलेज में ही कुछ खाया और शाम को लौटी घर में वैसे ही सन्नाटा। पता नहीं इनके बच्चे भी शायद बाहर रहते होंगे। रात होने को आई , आज मैं भी बाहर नहीं निकली तो कोई पूछने भी नही आया मन इतना दुखी था कि लगा अपना सामान उठाऊं और यहां से अभी भाग जाऊं। पता नही लोग इतने कठोर कैसे हो जाते हैं ?

                     दूसरे दिन सुबह मैं जल्दी ही कॉलेज के लिए निकल गई, नाश्ता भी नहीं खाया, इंतजार था कि सर क्या कहते हैं, जब उनसे मिली तो वो बोले कि कमरा तो वो देने को तैयार हैं पर पैसे के बदले तुम्हें उनके बच्चों को पढ़ाना होगा क्या पढ़ा लोगी ? मैं तो खुशी से उछल पड़ी ” हां सर ये मैं कर लूंगी” घर में भी तो मैं अपने भाई बहन को पढ़ाया करती थी। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था ।

सर से मैने पूछा कि आज ही शिफ्ट कर जाऊं वो बोले कर सकती हो। कॉलेज से लौटने के बाद मैंने अपना सामान समेटा और जाने की तैयारी की फिर सोचा कि अंकल को बता दूं पर उस बड़े घर में उनको ढूढना भी आसान नहीं था । अंकल तो नही मिले हां आंटी मिली तो मैंने उन्हें ही बताया कि मैं जा रही हूं मुझे रहने की जगह मिल गई है। वो बोली “अच्छा ऐसा क्या , चलो ठीक है ” मैंने भी उन्हें प्रणाम किया और चल दी। यही जीवन का सच है। 

                 हां और आप सब को एक बात और बता दूं कि जिनके घर मैं रहने गई बच्चों को पढ़ाने के बदले उन्होंने मुझे दोनों समय खाने का भी इंतजाम कर दिया।

                           वीना (स्वरचित)

                               16.09.24

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