ये घर तुम्हारा भी है – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in hindi

जया घूंघट काढ़े ट्रेन में खिड़की के पास बैठी हुई थी… खिड़की के पास मुंह रखने से ज्यादा घूंघट लेने की जरूरत नहीं हो रही थी…. थोड़े में काम चल रहा था…. तभी नन्हा मिंटू दौड़ता हुआ खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया…” मामी मुझे बैठना खिड़की के पास… हटिए… हटिए…”

 वह लिहाज के मारे वहां से थोड़ा बगल हो गई…। मिंटू वहीं बैठ गया…. अभी थोड़ी ही देर हुए थे कि उसका छोटा भाई भी वहीं आकर रोने लगा….” मुझे बैठना खिड़की के पास” ……

“नहीं तू हट मुझे बैठना”….

 बेचारी जया अपना पल्लू पकड़े उन्हें छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर रही थी… की सासू मां ने आदेश दिया… “जया तुम इधर आ जाओ, बैठने दो उन्हें… बेकार तुम्हें तंग कर रहे हैं… उन्हें उनकी मां ही संभालेगी… जाओ नीता तुम जाओ वहां…”

 जया ने अपना घूंघट संभाल कर कुछ नीचे खींचा और सासू मां के पास आकर बैठ गई…।

 सभी लोग नई नवेली बहू को साथ लेकर काशी जा रहे थे… भोलेनाथ के दर्शन करने और गंगा नहाने… अभी महीने भी नहीं हुए थे विनय की शादी को…. 

विनय मां, पिताजी, बहन उसके दोनों बच्चे एक छोटा भाई और अपनी नई नवेली दुल्हन को साथ लेकर ट्रेन से यात्रा कर रहा था…।

पूरे रास्ते मिंटू और शौर्य की बदमाशी से बहुत आसानी से कट गया… सब लोग मिलजुल कर दर्शन पूजा करके 5 दिनों बाद वापस आ गए… लेकिन यह समय जया के लिए बहुत कठिन रहा…. एक तो नया घर… नए लोग… उसमें थोड़ा नई दुल्हन होने की वजह से घूंघट लेना भी पड़ रहा था… उस पर बच्चों की नए सदस्य से फायदा उठाने की जद्दोजहद…।

  खैर, सब वापस घर आ गए…। 

घर आने के बाद तो बच्चों का समय अक्सर मामी के कमरे में ही बीतने लगा… जब मन चाहा तब “मामी मोबाइल दीजिए” 

“मामी आपने भैया को दिया अब मुझे भी दीजिए ” कभी मोबाइल की जिद तो कभी कुछ और की…. नन्हा शौर्य तो गोद से ही उतरने का नाम नहीं लेता… सभी जिद अभी नई आई मामी के पास ज्यादा चल रहे थे… वह कुछ बोलती, डांटती जो नहीं थी…. वह बेचारी सोच रही थी…. कि बच्चों का दिल ना टूट जाए…. बच्चे रोने ना लगे.… इसलिए सबकी जायज नाजायज सभी मांगों को मानती जा रही थी…।

 लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हो ही गया जिसका जया को मन ही मन डर लग रहा था…। बच्चों की मनमानी से आजिज हो जया ने उन्हें फटकार लगा दी… बस फिर क्या था… बड़े ने छोटे को पीटा और फिर जो घमासान हुआ उसका श्रेय गया जया को…!

 क्या जया तुम थोड़ी देर बच्चों को संभाल नहीं पाई…? कहते हुए नीता बच्चों को उसके कमरे से लेकर निकल गई… !

जया ने अपनी सफाई में कुछ ना कहा… लेकिन उस दिन से नीता और उसके बच्चे जया से कटे कटे रहने लगे…. कुछ दिनों बाद नीता वापस अपने ससुराल चली गई…।

 धीरे-धीरे जया ने अपने व्यवहार से सबका मन जीत लिया… सभी की जबान पर जया का नाम ही रहता था…।

 विनय की सूझबूझ, सासू मां ससुर जी का सहयोग, छोटे देवर का प्यार, सब की छांव में जया की शादीशुदा जिंदगी भली भांति चलने लगी थी।

 इसी तरह 6 महीने होने को चले… गर्मी की छुट्टियां होने वाली थी… एक दिन सासू मां ने खाना खाते समय प्रस्ताव रखा की “बहुत दिन हो गए नीता कब की गई है, क्यों ना गर्मी की छुट्टियों में उसे बुलाया जाए”।

 सभी लोग बहुत खुश हुए “हां हां बहुत दिन हो गए, बच्चों के बिना घर सूना सूना है, आज ही फोन करके उसे बोल दो…. कोई बहाना बनाने की जरूरत नहीं… छुट्टियां शुरू होते ही शौर्य और मिंटू को लेकर यहां आ जाए…।” पिताजी ने फरमान सुना दिया।

 विनय भी खुश होकर बोला” हां दीदी आ जाए तो बच्चों के साथ फिर कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाएंगे, क्यों जया?” लेकिन जया की फीकी हंसी को सासू मां तार गई…।

 जब नीता को फोन किया तो वह भी आने को लेकर बहाने बनाने लगी… मां के बहुत मनाने पर उसने इतना ही कहा “ठीक है कोशिश करती हूं”।

 रात को जया किचन में बोतल भर रही थी… तभी सासू मां उसके पास आई और बोली “क्या हुआ बेटा, तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ क्यों लग रहा है “

जया हड़बड़ा गई बोली “नहीं मां कुछ नहीं…. कुछ भी तो नहीं…

 क्यों बेटा, तुम नहीं चाहती कि नीता यहां आए…? मां के इतना कहते ही जया ने उनका हाथ पकड़ लिया “नहीं.… नहीं… मां मैं क्यों नहीं चाहूंगी… यह घर उनका है… वो जब चाहे आएं…. मुझे क्यों परेशानी होगी…

 मां ने उसके हाथों से अपना हाथ निकाल कर उसका हाथ पकड़ा और कहा “जया मैं जानती हूं… तुम्हारे मन की… देखो जैसे ये घर नीता का है वैसे ही ये घर तुम्हारा भी है… तुम भी इस घर की बेटी हो…. इसलिए आपस की छोटी-छोटी बातों का असर कभी भी परिवार के मजबूत नींव पर नहीं पड़ने देना चाहिए…

 छोटी-छोटी बातों को लेकर इधर तुम दुखी हो रही हो… उधर नीता से भी बात कर रही थी वह भी उदास थी।

 अब हमें नहीं, तुम दोनों को आपस में एक दूसरे का साथ निभाना है…।

 जया की आंखें नम हो गई तो मां ने उसे गले लगा लिया।

 दूसरे दिन अहले सुबह जया ने नीता को फोन लगाया… और गर्मी की छुट्टियों में आने को कहा… नीता बहाने बनाने लगी… अब हमारा क्या काम अब तो तुम्हारा घर है… जया ने बड़े प्यार से नीता से कहा कि “दीदी यह मेरा नहीं, हमारा घर है” मुझे छोटी बहन समझिए और आ जाइए…। नीता के चेहरे पर भी हंसी खिल गई वह बोली “लेकिन ये दोनों बदमाश तुम्हें ही तंग करेंगे…

“… तो करने दीजिए ना दीदी, यह घर उनका भी है… और मामी भी तो उन्हीं की है……।

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

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