“भाभी, चाय पीने का बड़ा मन है, आप भैया के लिए बनाओ तो मेरे लिए भी एक कप बना देना।” साक्षी ने धीमी आवाज में कहा और चुप हो गई।
वंदना ने सुन लिया और कहा, “साक्षी, अभी तुम्हारे भैया को आने में समय लगेगा, इतना ट्रेफिक जो रहता है, आधा घंटे की कहते हैं तो आने में एक घंटा लग ही जाता है, मै तुम्हारे लिए चाय बना देती हूं।”
साक्षी ने फिर मना कर दिया,”नहीं भाभी रहने दीजिए, बेकार ही आपको परेशानी होगी, और फिर आपको भी तो काम रहते हैं।”
“ठीक है, “मुझे अपने काम छोड़ने की जरूरत नहीं है, तो ऐसा करो तुम खुद ही चाय बना लो, एक कप मेरे लिए भी बना देना, मै लैपटॉप पर अपना काम खत्म करके आती हूं, फिर ननद-भाभी साथ में मिलकर चाय पियेंगे।”
थोड़ी देर बाद साक्षी चाय बनाकर ले आती है, और खामोशी से पीने लगती है, उसका उतरा चेहरा देखकर वंदना से रहा नहीं जाता है, “साक्षी ये घर तुम्हारा भी है, इतनी डरी-डरी क्यों रहती हो? तुम्हें जब मन हो चाय बनाकर पी लो, कुछ भी खा लो, मुझसे पूछने की जरूरत नहीं है, तुम जैसे अपनी मम्मी के घर में रहती थी, वैसे ही हक से यहां भी तुम्हें रहना है, हम गुजरा वक्त बदल तो नहीं सकते हैं, पर आने वाले वक्त को साथ में रहकर मिलकर अच्छा बना सकते हैं।”
अपनी भाभी का प्यार भरा स्पर्श पाकर साक्षी में जैसे जान आ गई, “अभी कुछ महीनों पहले की बात है, उसके इन्हीं हाथों में मेंहदी सज रही थी, और वो नवल की दुल्हन बनने की तैयारी कर रही थी, घर की लाडली बेटी साक्षी भी अपनी शादी के लिए बहुत खुश थी, मम्मी-पापा और भैया -भाभी उसकी शादी के लिए दिन-रात लगे हुए थे, नियत समय पर बारात आई और साक्षी ने नवल के साथ फेरे ले लिए, सब बहुत अच्छे से हो गया पर विदाई के समय माहौल गमगीन हो गया, घर की रौनक ससुराल जो जा रही थी।”
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” साक्षी, अब ससुराल ही तेरा असली घर है, मायका पराया हो गया है, तुझे अब ससुराल के रंग-ढंग में ढलना होगा, ये घर अब तेरा नहीं रहा, मां ने गले लगाकर समझाते हुए कहा।”
सबसे विदा लेकर साक्षी ससुराल आ गई, ससुराल में सब लोग बहुत ही अच्छे थे, नवल तो साक्षी को पत्नी रूप में पाकर बहुत ही खुश था, दोनों हनीमून के लिए पहाड़ों में चले गये, और वहीं अचानक से नवल खाई में गिर गया और मौत के मुंह में समा गया, साक्षी की तो दुनिया ही उजड़ गई, ससुराल से वो वापस मायके आ गई, मम्मी-पापा उसके जीवन से दुख कम करने के लिए कुलदेवी के मंदिर गये, रास्ते में भयानक कोहरा था, बस का एक्सीडेंट हो गया और दोनों ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए, साक्षी को बहुत बड़ा सदमा लगा, उसे लग रहा था कि पति के जाने के बाद कम-से-कम मां के यहां तो सहारा मिल जायेगा।
सारे क्रियाकर्म करने के बाद साक्षी के भाई संदीप ने सारी जायदाद बेच दी, अब बहन साक्षी की जिम्मेदारी उस पर थी, वो बड़ा ही असमंजस में था, तभी वंदना ने कहा, ” संदीप तुम इतना सोच क्या रहे हो? अब साक्षी की भी जिम्मेदारी हमें ही उठानी है, तुम साक्षी को भी हमारे साथ में शहर ले चलो, वो यहां अकेली किसके भरोसे रहेगी? उसे हम इस तरह गांव में अकेला नहीं छोड़ सकते हैं।”
” वंदना तुमने तो मेरे मन की बात कह दी है, दोनों पति-पत्नी साक्षी को अपने साथ शहर में ले आयें।
वंदना और संदीप दोनों शहर में रहते थे, साक्षी उनका घर देखकर दंग रह गई, दूसरा उसे हिचकिचाहट भी थी, वो अपनी भाभी के साथ कभी ज्यादा रही भी नहीं थी, और सबके मुंह से यही सुनती आई थी कि मां से ही मायका होता है, इसलिए वो भाभी के घर में डर-डर कर रहने लगी थी, उसे गांव में रहने की आदत थी और वो समझ नहीं पा रही थी कि इस तरह शहर में कैसे रहें?
कुछ दिनों बाद संदीप कॉलेज का फार्म लेकर आया, “अब तुझे आगे की पढ़ाई करनी है,और अपना भविष्य भी बनाना है।”
साक्षी भी सब पिछला भुलकर अपनी पढ़ाई में लग गई, और कुछ सालों में अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी हो गई, शहर में रहकर वो वहां के रहने के ढंग भी सीख गई।
अब वंदना और संदीप उसकी शादी करना चाहते थे ताकि उसका भविष्य सुधार सकें, उन्होंने लड़का देखना शुरू कर दिया, और मनोज ने साक्षी को पसंद कर लिया पर शादी से पहले उन्होंने लड़के वालों को साक्षी का बीता हुआ कल बता दिया, मनोज ने साक्षी को पसंद कर लिया था, और वो उसे चाहने लगा था।
आखिरकार फिर से घर में शहनाई बजी और साक्षी की शादी हो गई।
जब साक्षी ससुराल जाने लगी तो वंदना ने उसे कुछ पेपर दिये, “भाभी इनकी क्या जरूरत थी?
“साक्षी जब हमने गांव का घर और जायदाद बेची तो उसके दो बराबर हिस्से कर लिये, एक हिस्सा तुम्हारे भैया का था तो एक तुम्हारे लिए रख लिया, इतने साल तुम हमारे साथ थी, छोटी थी पर अब तुम भी समझदार हो गई हो और तुम्हें एक जीवनसाथी भी मिल गया है, इसलिए अब तुम अपने हिस्से की जायदाद संभाल सकती हो, साक्षी वो तुम्हारी मां का घर था, तुम उसमें बराबर की हिस्सेदार थी।”
“मै तुम्हारी भाभी हूं, मां तो नहीं बन सकती, पर मां जैसा प्यार देने की कोशिश जरूर करूंगी, तुम मेरे लिए पराई नहीं हुई हो, आज भी ये घर तुम्हारा है, तुम जब चाहें यहां आ सकती हो।”
साक्षी अपनी भाभी के गले लग गई, “मै बड़ी नसीब वाली हूं, जो मुझे आप जैसी भाभी और भाई मिलें।” दोनों ने मिलकर साक्षी को हंसी-खुशी विदा कर दिया।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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