ये घर मेरा ससुराल भी है और मायका भी – मुकेश पटेल

अचानक से संतोष जी की आधी रात में तबीयत खराब हो गई और वह बेहोश हो गए थे.घर में कोई पुरुष नहीं था।  संतोष जी के तीन बेटे थे जिसमें से एक बड़ा बेटा भगवान को प्यारा हो गया था और उसकी पत्नी गायत्री अपने सास-ससुर  के साथ ही  रहती थी जबकि दो बेटे मे  से  एक दिल्ली और एक अहमदाबाद मे  नौकरी करते थे।  संतोष जी को शहर के बड़े हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। डॉक्टर ने जांच करने के बाद बताया कि इनको मामूली हार्ट अटैक आया हुआ था अभी तो तबीयत ठीक है लेकिन इनको  1 महीने के अंदर ऑपरेशन नहीं करवाया गया तो कुछ भी कहा नहीं जा सकता। संतोष जी की पत्नी रेखा जी ने डॉक्टर से पूछा कि ऑपरेशन करने में कितना खर्चा आएगा डॉक्टर ने बताया 7  से 8 लाख रुपये  आप मान के चलिए कि इतना खर्चा तो आएगा ही। 

 8 लाख रुपये सुनके रेखा जी के होश उड़ गए क्योंकि 6 महीना पहले ही बेटी की शादी करी थी जो भी जमा पूंजी थी वह बेटी की शादी में खर्च हो गया। संतोष जी सरकारी नौकरी करते थे वह एक सरकारी बैंक में कैशियर थे वह अपनी नौकरी पर लोन भी नहीं ले सकते थे क्योंकि पहले ही उन्होंने होम लोन लेकर घर बनाया था।  हर महीने उसकी भी किस्ते जाती थी। 



रेखा जी बहुत टेंशन मे थी कि संतोष जी का इलाज कैसे होगा घर में तो पैसे हैं नहीं, उन्होंने अपने मँझले बेटे रघु को फोन लगाया और कहा बेटे तुम्हारे पिताजी  को हार्ट का ऑपरेशन कराना पड़ेगा डॉक्टर बोला है 1 महीने के अंदर अगर ऑपरेशन नहीं किया गया तो   इतना कहकर रेखा जी फोन पर ही रोने लगी।  उनका बेटा रघु ने कहा मां  रोना बंद करो सब ठीक हो जाएगा।  मैं कुछ इंतजाम करता हूं। 

रघु ने अपनी पत्नी से कहा, “सुमित्रा पापा की तबीयत बहुत खराब है और उनको इस महीने अगर  हार्ट का  ऑपरेशन नहीं कराया गया  तो कुछ भी अनहोनी हो सकती है।” 

रघु की पत्नी बोली, “सुनो जी अब मैं अपने बेटे की जिंदगी नहीं बर्बाद कर सकती मेरे बेटे का एडमिशन पिछले साल ही इंजीनियरिंग में होना था लेकिन आपने बोला 1 साल रुक जाओ बहन की शादी है मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं बहन की शादी हो जाएगी तो अगले साल अपने बेटे का नाम इंजीनियरिंग में लिखवा दूंगी।  ऐसे तो हर साल कोई ना कोई बीमार होता रहेगा कभी आपके पिताजी तो कभी आपकी माँ,   तो क्या मैं अपने बेटे की जिंदगी खराब कर दूं? 

रघु चाह कर भी अपने पिता की मदद नहीं कर सका और उसने फोन कर अपनी मां को बोला मां अभी पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तुम छोटे भाई से एक बार बात करो शायद वह इंतजाम कर दे। 

रेखा जी को अपने बड़े मँझले बटे  रघु से बहुत आस थी कि वह पैसे की इंतजाम कर देगा क्योंकि वह अच्छा खासा पैसे कमाता था लेकिन जब उसकी तरफ से पैसे देने की मनाही हो गई वह बहुत तनाव में हो गई। 

उन्होंने अपने छोटे बेटे सागर से भी पैसे का इंतजाम करने के लिए कहा लेकिन उसने तो साफ मना कर दिया मां तुम्हें तो पता है कि मैं साधारण सी नौकरी करता हूं मेरे पास पैसे कहां बचते हैं जो भी पैसे कमाता हूं परिवार में ही खर्च हो जाते हैं मैं तो खुद ही पिताजी से पैसे मांगने वाला था छुटकी के एडमिशन कराने के लिए।  अब तो लग रहा है छुटकी का एडमिशन सरकारी स्कूल में ही कराना होगा। 

 रेखा जी की विधवा बहू गायत्री  समझ गई थी कि उनके छोटे देवरो ने पैसे देने से इनकार कर दिया है अपनी सास को बहुत टेंशन में देखते हुए वो उनके पास आई और बोली मां जी आप चिंता मत कीजिए पापा जी का ऑपरेशन हो जाएगा। 



गायत्री अपने कमरे में गई जो उसके पास सोने चांदी के जेवर थे वह सब लेकर अपने सासू मां के पास आ गई और बोली, “माँ जी  यह लीजिए और इसे बेचकर पापा जी का इलाज करा दीजिए। 2 लाख रुपये  मेरे पापा अभी लेकर आ रहे हैं मैंने पापा से बोला तो उन्होंने कहां मैं अभी लेकर आ रहा हूं।” 

रेखा जी ने कहा, “नहीं बहू तुम्हारे जेवर में हम कैसे ले सकते हैं।  यह सही नहीं होगा।”  गायत्री बोली,  “माँ जी अब यह मेरे किस काम के हैं जब आपके बेटे ही नहीं रहे तो मैं किसके नाम की मांग टीका लगाऊंगी और यह कंगन पहनूंगी मेरे लिए तो यह मिट्टी के बराबर है।  और अगर इससे पापा जी की जान बच जाती है तो इससे बड़ी चीज क्या होगी जेवर  तो दोबारा  बन जाएंगे  लेकिन इंसान दोबारा वापस नहीं आता। 

रेखा जी ने  अपना और बहू का जेवर लेकर   बहु के साथ बाजार मे बेचने के लिए गई जिससे 6 लाख रुपये  का इंतजाम हो गया। 

 जैसे ही सास-बहू  घर आई तभी गायत्री  के पिताजी भी 2 लाख रुपये  लेकर आ गए थे।  उन्होंने रेखा जी को 2 लाख  देते हुए कहा, “बहन जी आप घबराइए मत।  भाई साहब को कुछ नहीं होगा।” 

अगले दिन ही संतोष जी को हॉस्पिटल में भर्ती किया गया और अगले 24 घंटे में  हार्ट की सर्जरी हो गई।

 1 सप्ताह बाद संतोष जी घर वापस आ चुके थे। 



संतोष जी जैसे ही हॉस्पिटल से घर वापस आए उनके दोनों बेटे अपने पिताजी से मिलने के लिए आ गए । 

 1 दिन सुबह संतोष जी के दोनों बेटे रघु और सागर अपने पिताजी के पास  बैठे हुए थे, रघु ने अपने पिताजी से कहा, “पिताजी अब आपकी भी तबीयत सही नहीं रहती है हम दोनों भाई यह चाहते हैं कि आपके जीते जी ही प्रेम से इस घर का बंटवारा  हो जाए। 

 जब यह बात रेखा जी ने सुना कि उसके दोनों बेटे इस घर का बंटवारा  करना चाहते हैं वह गुस्से में हो गई और वो बोली, “तुम दोनों अपना सामान अभी उठाओ और यहां से निकल जाओ यह घर तुम्हारा नहीं है। तुम दोनों को हमने पढ़ा लिखा कर इस काबिल बना दिया कि अपना खर्चा चला सको  जो मां बाप के मुश्किल घड़ी में काम ना आए ऐसे बेटे का  क्या काम ऐसा बेटा हो या ना हो कोई फर्क नहीं पड़ता है। 

संतोष जी ने भी अपने बेटे को प्रेम से समझाया, “सुनो रघु और सागर यह घर मैं अपनी बड़ी विधवा बहू के नाम करने जा रहा हूं क्योंकि अभी तो हम जिंदा हैं तो बहू का खर्चा चला देंगे लेकिन हमारे मरने के बाद बहू कैसी रहेगी अगर यह घर रहेगा तो कम से कम किराया मिलता रहेगा तो वह अपने और अपने बच्चे का पेट पाल सकेगी।” 

 तुम दोनों तो मेरे अपने खून थे लेकिन तुम दोनों ने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा लेकिन बहू से  हमारा खून का रिश्ता नहीं था वह भी चाहती तो मना कर सकती थी लेकिन उसने अपने जेवर बेचकर मेरा ऑपरेशन कराया इसीलिए हमारा भी फर्ज बनता है कि हम बहू की मदद करें बेटा तुम्हें इस घर में एक इंच भी हिस्सा नहीं मिलेगा तुम लोगों को अगर मुझसे मिलने आना हो तो बेशक आ सकते हो और अब तुम दोनों यहां से जाओ। 

 रघु और सागर पिता के फैसले के आगे क्या कर  सकते थे  वह दोनों उसी दिन वहां से चले गए। 



 संतोष जी और रेखा जी ने इस घर को अपनी विधवा बहू गायत्री के नाम करा दिया गायत्री ने मना भी किया था कि नहीं माँ जी  इसमें तीन हिस्सा  कर दीजिए और मेरे हिस्से में जो आता है मैं वहीं लूंगी लेकिन रेखा जी और संतोष जी ने जबरदस्ती  गायत्री के नाम ये घर  लिख दिया। 

 एक दिन सब लोग खाना खा रहे थे रेखा जी ने कहा, “बहू हम तुम्हारे मां-बाप जैसे हैं और एक मां-बाप हमेशा अपने बच्चों की खुशियां चाहता है और हम दोनों ने यह फैसला किया है कि हम तुम्हारी शादी दोबारा से करेंगे क्योंकि जाने वाला तो चला गया  अब तो वह वापस नहीं आएगा तुम्हारे पास  तो पूरी लंबी जिंदगी पड़ी हुई है। 

 गायत्री ने साफ मना कर दिया शादी करने से लेकिन रेखा जी और संतोष जी ने कहा तुम अगर  हमें  मम्मी पापा मानती हो तो हमारा फैसला भी तुम्हें मानना होगा क्योंकि कोई भी मां बाप अपने बच्चे का बुरा नहीं सोच सकता बल्कि उसकी भलाई के लिए ही सोचता है। 

रेखा जी और संतोष जी ने गायत्री के पापा से इस बारे में बात की तो गायत्री के पापा बोले,” बहन जी मैं तो कब से गायत्री को कह रहा हूं दोबारा शादी करने के लिए लेकिन वह तैयार ही नहीं हो रही थी वह आप लोगों को छोड़कर जाना नहीं चाहती थी।” 

 एक लड़का देखकर गायत्री की शादी कर दी गई । गायत्री ने शादी करने से पहले ही लड़के से शर्त रखी थी कि शादी होने के बाद वह इसी घर में रहेगी क्योंकि उसके लिए यह मायका भी है और ससुराल भी अगर तुम्हें यह शर्त मंजूर हो तो  मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं। 

अब यह घर गायत्री का ससुराल तो था ही लेकिन मायका भी हो गया था ।

लेखक : मुकेश पटेल ( संस्थापक:  www.betiyan.in )

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!