पुष्पा आज अकेली कमरे में बैठी थी। कहने को चार संताने थीं उसकी पर आज कोई झूठे मुँह भी उससे यह नहीं पूछता था कि माँ तुम कैसी हो। बस उसकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कभी नौकर या कोई बहू पल भर को आते थे। खाना- नाश्ता, फल, दूध इत्यादि रखकर फ़ौरन ही चले जाते थे। न कोई पुष्पा से कुछ बोलता और न ही उसका कुछ हाल-चाल लेता पर उसकी जिम्मेदार भी तो पुष्पा ख़ुद ही थी।
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी पुष्पा का विवाह एक संपन्न परिवार में हुआ था तो वह स्वयं को आकाश में उड़ता- सा अनुभव करने लगी। महँगी साड़ियों, जेवरों से लकदक,बड़ी गाड़ी से उतरती पुष्पा को मायके वाले अपने सामने जैसे बौने नज़र आते थे। माता-पिता, भाई-बहन सभी को गरीबी का ताना मारने में न जाने उसे कैसा सुकून मिलता था।
जिस भाई ने उसकी ऊँचे घर में शादी करने के लिए ब्याज पर क़र्ज़ लिया था और जिसे उतारने के लिए वह अपनी पत्नी और बच्चों की रोज़मर्रा की ज़रूरतों में कटौती कर रहा था, आज उस भाई को वह अपमानित करने में एक क्षण नहीं लगाती थी।
धीरे-धीरे मायके वालों ने पुष्पा से केवल खानापूर्ति तक का ही संबंध रखा। घमंड के ही कारण पुष्पा ने कभी ससुराल वालों को भी घास नहीं डाली। पुष्पा के पति बहुत
समझाते,”पुष्पा! इस तरह से हम जीवन नहीं जी सकते। परिवार, रिश्तो की अहमियत को समझो। समय-समय पर हमें परिवार की आवश्यकता होगी। ग़म-ख़ुशी में परिवार का साथ खड़ा होना हमें मज़बूत बनाता है।” पर पुष्पा की आँखों पर तो दौलत का चश्मा चढ़ा था।
समय बीतता गया। पुष्पा की दो लड़कियाँ और दो लड़के थे। पुष्पा के बच्चे भी पुष्पा के नक्शे- कदम पर ही चल रहे थे। किसी का भी अपमान कर देना उन्हें एक स्वाभाविक क्रिया लगती थी क्योंकि उनके आसपास का वातावरण ऐसा ही था। समय तेज गति से चल रहा था और फिर घर में शहनाई बजी और पुष्पा के बड़े बेटे नीतीश की दुल्हन घर आ गई।
पायल भी एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुकात रखती थी। वह बहुत सौम्य, सरल,शांत स्वभाव की लड़की थी। सबको प्रेम, सम्मान देना उसका स्वाभाविक गुण था पर पुष्पा और उसके बच्चों को तो केवल दौलत की भाषा समझ आती थी अत: उन्होंने पायल को भी वक्त- बेवक्त अपमानित करना शुरू कर दिया।
जब नीतीश से यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने कोठी के एक हिस्से में अपना अलग संसार बसा लिया पर गाहे- बेगाहे पुष्पा और उसकी बेटियाँ पायल को ताने मारने से बाज़ नहीं आती थीं। हारकर पायल और नीतीश ने परिवार से संपर्क पूरी तरह तोड़ लिया।
समय के साथ पुष्पा के तीनों बच्चों की भी शादियाँ हो गईं पर विवाह के बाद भी पुष्पा की बेटियाँ अपनी भाभियों के साथ बुरा व्यवहार करती थीं और पुष्पा उन्हें शह देती थी। पुष्पा के दोनों बेटों और बहुओं ने पुष्पा और उसकी बेटियों से सभी संबंध खत्म कर लिए।
मायके में सम्मान न मिलने और अपने बच्चों में व्यस्त होने के कारण पुष्पा की बेटियों ने मायके आना-जाना बहुत कम कर दिया। अब पुष्पा बिल्कुल अकेली पड़ गई। पति भी बस मतलब से मतलब रखते थे। बुढ़ापे के कारण पुष्पा औरों पर आश्रित होती जा रही थी इसलिए अब उसका घमंड क्षीण होता जा रहा था। अब वह बस अपने कमरे में अकेले बैठी अपनी गलतियों को याद कर करके पश्चाताप करती रहती थी पर उसे सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था।
स्वरचित
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ उत्तर प्रदेश