पूरा बाजार रंग बिरंगी राखियों से भरा पड़ा था ।आज सपना बच्चों की बच्चों के लिए राखी खरीदने बाजार गई थी। वहां एक सुंदर सी राखी देखकर उसको हाथ में उठा कर देखने लगी। कितनी सुंदर राखी है ना ,काश ? में भी अपने भाई की कलाई पर यह राखी बांध पाती पर कितनी मजबूर थी वह ।भाई के रहते हुए भी वह राखी का त्यौहार नहीं मना न पाती थी ।
इस एहसास से सपना के आंखें भर आईं। यादों को झटककर बेटी के लिए राखी खरीद कर दुकानदार को पैसे देकर वह मुडी ही थी कि किसी से टकराकर उसकी राखी का पैकेट गिर पड़ा ।सॉरी बोलते हुए लड़का उस पैकेट को उठाकर सपना को देने लगा तो वो चौंक गया। अरे सपना दी आप ।सपना भी चौंक गई ।अरे वैभव तुम , मेरी यहां बैंक में नौकरी लग गई है। पोस्टिंग लखनऊ में मिला है ।
अच्छा-अच्छा और बताओ सोनम कैसी है, जब से शादी हुई उससे मुलाकात ही नहीं हुई ।हां वह तो मजे में है जब भी घर मायके आती है आपको याद करती है । वैभव सपना की बहुत अच्छी सहेली का भाई था।और दीदी कुछ नहीं पूछोगी और कुछ, मतलब अपने भाई भाभी के बारे में, क्या पूछूं ,मैं जाने कितने साल से उसे शहर में का मुंह नहीं देखा। भूल ही गई कि मेरा वह मायका था मां-बाप थे मेरा बचपन बीता था। मैं भाई के संग खेली खाई थी ये सब कहां भूलता है। जब भी राखी का त्यौहार आता है भाई की राखी ना बांध पाने की मजबूरी से मन में एक हूक सी उठती है।
वैभव आगे बोला दीदी एक बार भाई मोहन को देख आओ बहुत बीमार है। बिस्तर पकड़ लिया है। अरे क्या हो गया है भैया को, सपना चीख पड़ी ।अरे तुम्हें नहीं मालूम। मुझे कैसे मालूम होगा ना जाने कितने वर्षों से उस चौखट पर पैर नहीं रखें।भाई भाभी की शक्ल नहीं देखी है। अरे भाई मोहन की तो दोनों किडनी खराब हो गई है डॉक्टर कह रहे हैं कि जब तक चल रहा है बस चल रहा है कभी भी कुछ भी हो सकता है। अच्छा सुनकर सपना बेचैन हो गई कि एक बार भाई से मिल लें ।
घर जाकर सपना बहुत बेचैन गई कब भाई से मिल लूं। जल्दी से जल्दी बस यही सोचती रहीं। शाम को जब पति अमित घर आए तो सपना चाय बना कर लाई और अमित से बोली अमित कल का मेरा टिकट करवा दीजिए मेरठ का मुझे भाई के पास जाना है। भाई के पास जाना है अमित बोला। दिमाग तो सही है तुम्हारा कितनी बेइज्जती करके तुमको घर से निकला था भूल गई क्या। नहीं मैं कुछ नहीं भूली हूं अमित, लेकिन अभी नहीं गई तो शायद बहुत देर हो जाएगी। और भाई भी शायद कभी नहीं मिल पाएंगे। क्यों क्या हुआ कुछ बताओगी भी सपना। हां बताऊंगी सब कुछ बताऊंगी लेकिन कल का पहले टिकट कराओ ।और राखी में फिर यहां कैसे होगा अमित बोला। और यहां सब हो जाएगा अब और नेहा और निमेश इतने छोटे नहीं है कि कुछ कर ना सके वह कर लेंगे लेकिन मुझे अभी जाना होगा।
सपना ने एक राखी खरीदी थोड़ी मिठाई मंगाई और लेकर ट्रेन में सवार हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे ट्रेन बहुत धीरे चल रही है पहुंचने में बहुत समय लग रहा है। लेकिन मन की उड़ान से ज्यादा तेज तो कुछ भी नहीं है। फिलहाल ट्रेन अपने गन्तव्य पर पहुंच गई। ट्रेन से उतरकर सपना ने एक आटो लिया और घर की ओर रवाना हो गई।
रास्ते में अपने जाने पहचाने रास्तों को पहचानने की कोशिश कर रही थी। काफी कुछ बदल गया था एक लंबे अंतराल के बाद आना भी तो आना हो रहा था ।15 साल हां 15 साल ,सपना अपनी बचपन की गलियों में कदम रख रही थी। मां के जाने के बाद जब भाई भाभी ने घर से बेइज्जत करके निकाल दिया था ।उसी रोज से तो त्याग दिया था उन गलियों को। उस घर को ,जिस घर में खेल कर बड़ी हुई थी ।और जिन गलियों में घूम घूम कर अपना बचपन बिताया था। कुछ भी पहले जैसा नहीं था बहुत कुछ बदल गया था।
एकाएक सपना की तंद्रा टूटी। और आटो वाले ने दरवाजे पर ऑटो रोका। बड़ी हिम्मत करके उसने डोर बेल बजाई ।भतीजे ने दरवाजा खोला।सपना धड़धड़ाते हुए अंदर पहुंच गई। भइया, भइया कहां हो आप कहते हुए कमरे में पहुंच गई। भाभी और भतीजियां सब भौचक्के से देख रहे थे।अंदर कमरे में बिस्तर पर मोहन जी पड़े थे। कृशकाय,वो गठीला शरीर बिल्कुल ढल गया था ।बस एक हड्डी का ढांचा भर रह गया था। भाई को देखकर सपना भाई के गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगी ।भैया आज मोहन जी ने भी सपना को भींच लिया कहां चली गई थी बहन और दोनों के आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। जब कुछ देर हो गई इस तरह से रोते हुए भाभी ने दोनों को अलग किया। और सपना का मुंह धुलाकर चाय नाश्ता रखा सामने ।तभी सपना बोली भैया इतने बीमार थे एक खबर नहीं कर सकते थे। घर से निकला था मेरी बहन आज उसी का सजा भुगत रहा हूं मैं। नहीं भाई अब छोड़िए पुरानी बातों को ।
सपना और मोहन दो भाई बहन थे ।मोहन जी बड़े थे सपना छोटी थी। सपना की शादी बड़ी धूमधाम से किया था। लेकिन सपना की शादी के कुछ दिन बाद पापा की हृदयाघात से मृत्यु हो गई थी। मां थी। पापा सुरेंद्र जी के दो मकान थे ।पापा की मृत्यु के बाद मोहन जी ने एक मकान बेचने की सोची। वह पैसे को अपने बिजनेस में लगाना चाहते थे। लेकिन सुरेंद्र जी पहले कहा करते थे कि एक मकान सपना का है और एक मोहन का है ।इधर जब सपना को पता चला कि घर की प्रॉपर्टी बिक रही है तो सपना के पति अमित ने सपना को उकसाया की प्रॉपर्टी में तुम्हारा भी हिस्सा है ।क्यों तुम्हारे पापा कहते थे ना कि एक मकान तुम्हारा है ।अकेली तुम्हारे भाई का नहीं है ।तुम भी अपना हिस्सा मांगो ।सपना अमित के बहकावे में आकर मायके जाकर अपना हिस्सा मांगने लगी मां ने बहुत समझाया कि बेटा पैसे के चक्कर में भाई भाभी से रिश्ते ना खराब करो ।तुम्हारे घर में तो बहुत है लेकिन सपना नहीं मान रही थी ।वह जिद पर अड़ गई थी कि मुझे भी हिस्सा चाहिए ।भाई भाभी ने हिस्सा देने के लिए साफ मना कर दिया । भाई बोले वो तो पापा ऐसे ही कहते थे कि एक मकान तुम्हारा है कहने से थोडी न हो जाता है । कुछ लिखा पढ़ी में तो नहीं है न।और सपना को बेइज्जत करके घर से निकाल दिया ।निकल जाओ घर से यहां अब तुम्हारा कुछ भी नहीं है ।जो कुछ भी है तुम्हारा ससुराल में है ।भाई से ज्यादा से भाभी बोल रही थी। अब आगे से घर मत आना भाभी ने बोल दिया। फिर क्या था रिश्तो में इतनी कटुता आ गई की आना जाना बंद हो गया सपना का मायके में।
3 साल बाद पता लगा कि मां चली गई । तो मां की आखिरी दर्शन करने के लिए सपना घर गई तब भी भाई भाभी ने बात नहीं की । इस तरह से अपनी उपेक्षा देखकर सपना मां के जाने के बाद फिर कभी नहीं गई घर ।राखी का
त्यौहार भाई दूज भाई सब भूल गया ।दिन जाते देर नहीं लगती । 15 साल बीत गए पता ही नहीं चला ।आज जब पता लगा कि भाई की यह हालत है तो सपना बीती बातों की कड़वाहट को भुलाकर पहुंच गई भाई को देखेने क्यों, क्योंकि बंधन कच्चे धागे का नहीं होता है ।ऐहसासों का जज्बातों, का प्यार का, ममता का ,और खून से मिले सच्चे रिश्तो का होता है। फिर तो कोई पहाड़ रास्ता रोक नहीं सकती। सारे रास्ते अपने आप खुल जाते हैं ।जब दो प्यार से बने जन्म से बने रिश्ते सामने हो तो सारी दीवारें गिर जाती है।
और आज सपना ने भी सभी दीवारों को गिराकर भाई से मिलने चली गई। और भाई ने भी सारी पुरानी बातें भुला दी। हाथ जोड़कर सपना से कह रहे थे आज तेरा हक मारने की सजा मिली है सपना ।मुझे माफ कर देना सपना और एक बार फिर से भाई बहन गले लग गए फिर कभी ना बिछड़ने के लिए।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश