मीनू बहुत शरारती थी बचपन होता ही ऐसा है ,दादा दादी नाना नानी सबकी लाडली धीरे धीरे बचपन से यौवन की ओर बढ़ी तो बंदिशें लगने लगी और सलाह दी जाने लगी ऐसा करो वैसा करो,
मम्मी पापा दोनो शादी की चिंता करने लगे और एक दिन वह भी आया जब मीनू को देखने लड़के पक्ष के लोग आ गये,
चाय नाश्ते को मीनू से ही करवाया गया उसकी सुंदरता को देख सभी मुग्ध हो गये,
और शादी के लिये हां कर दी,सूरज वह लड़का था जिसके साथ मीनू की शादी तय हुई ,मीनू को अलग लेकर गया और कहने लगा तुम बहुत सुंदर हो जीवन भर प्यार करेंगे कोई कष्ट न होने देंगे ,यह सुनकर मीनू बहुत खुश हुई कि उसका रिश्ता बहुत अच्छी जगह हो रहा है, जहां सब उसे प्यार से रखेंगे
शादी का दिन भी आ गया सारी रस्मे निभाने के बाद मीनू ससुराल विदा हो गई ,
सच मे स्वागतं के साथ बहुत प्यार मिला तो बहुत खुश हुई मीनू की सब सिर्फ कहते है ससुराल बुरी जगह है,सास का नाम आते ही वही गोल चश्मे बाली बूढ़ी महिला नजर आने लगती है,
जो बात बात में जली भुनी सुनाती है,
पर यहां सब परिवार की तरह ही था ,पति ने भी वादे के अनुसार बहुत प्यार से मीनू का ख्याल रख्खा,
धीरे धीरे मीनू एक और फिर दो बच्चों की माँ बन गई खूबसूरती अब ढलान की ओर होने लगी ,
काम काज बच्चो के बीच अब पति सूरज सिर्फ देखता था कि अब बच्चो में ही मस्त रहने लगी है मीनू तो उसे समय दिया जाना चाहिये पर प्रेम कम न हो यह ध्यान हमेशा रखता रहा,
मीनू भी थककर जल्द सो जाया करती थी तो सूरज उसे कभी जगाता नही था बस प्रेम से उसे देखकर बाल सहलाकर माथा चूम लेता था ,कि कितनी जिम्मेवारी से परिवार सम्भाल रही है मीनू,
एक दिन मीनू सोचने लगी कि सूरज आखिर दूर दूर क्यो रहने लगे है,
आज अवश्य पूंछेंगे की वायदा क्या रहा जिंदगी भर प्रेम करने का,
शाम को जब सूरज घर आया तो आज खाने की मेज पर मीनू ने पूंछ ही लिया,
शायद मैं खूबसूरत नही रही ,चेहरे पर झुर्रियों ने आना शुरू कर दिया है,उम्र भी ढलान पर है,इस कारण आप अपने वादे से दूर जा रहे हो ,
सुनकर सूरज की आंखे भर आईं और बोला शायद उससे भी ज्यादा प्यार करने लगा हूँ तुम्हे क्योकि अब तुम्हे पता नही चलता ,क्यो वह दिखावा था जो वायदा पूरा करने के लिये करता था असली प्रेम तो अब हुआ है जो तुम्हे देखकर ही मन तृप्त हो जाता है,
यह सुनकर मीनू की आंखों में झरझर आंसू बहने लगे और दोनो लिपट गये सूरज की प्यार भरी थपकी शायद उसी वायदे को याद दिला रही थी कि प्यार कम नही होगा कभी,,
लेखक -गोविन्द गुप्ता,