यह नाटक नहीं है – रश्मि झा मिश्रा  : Moral stories in hindi

अभी कुछ ही महीने हुए थे आद्या को ससुराल आए… बढ़िया पढ़ा लिखा परिवार था… आद्या ने भी बढ़िया डिग्री ली हुई थी… सब कुछ में होशियार लड़की… पर पता नहीं क्यों… जब से ससुराल में आई थी… उसे लगता हर वक्त सासू मां उससे चिढ़ी रहती हैं… वह चाहे उन्हें खुश करने के कितने भी जतन कर ले… पर वह कोई ना कोई कमी ढूंढ ही लेती थीं…!

 पति शिवेन तो सुबह अपने काम पर निकल जाते… ससुर जी घर की बातों से अक्सर दूरी बनाए रखते थे… छोटी ननद थी वह मां के पीछे-पीछे डोलती फिरती… मां जो कह दे सब ठीक…!

 एक तरह से घर में पूरा मां का ही शासन था… शादी से पहले ही यह बात आद्या के घर वालों को पता चली थी… कि सास बहुत कड़क है… तब आद्या की मां ने कहा था… कि वह कितनी भी कड़क क्यों ना हों… पर मेरी बेटी उनका दिल जरूर जीत लेगी…!

 आद्या इस बात की कोशिश भी… हर रोज कर रही थी… पर लगातार कोशिशें करते-करते अगर नतीजे में कोई अंतर ना आए… तो इंसान दुखी हो जाता है… या फिर थक कर कोशिश करना छोड़ भी देता है… आद्या भी अपनी सासू मां के ताने और कठोरता देख-देख कर बहुत निराश हो चुकी थी…!

 एक दिन सभी लोग खाने की थाली पर बैठ गए… तब सासू मां ने फरमाइश की… ” आजा खाने में कोई स्वाद नहीं आ रहा… बहुत फीका खाना है… जरा जल्दी में पकोड़े तो तलना…!”

बेचारी आद्या अपना खाना उठा… कौर मुंह में डालने वाली ही थी… यह फरमान सुनकर उसका मन विद्रोह कर उठा… उसने एक बार नजरें उठाकर सब की तरफ देखा… किसी ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी… लग रहा था जैसे सभी पकोड़े के इंतजार में.… खाने की रफ्तार कम कर बैठ गए… सासू मां ने फिर से कहा…” सुना नहीं तुमने… जल्दी करो… सबका खाना ठंडा हो रहा है…!”

” और मेरा… मेरा खाना ठंडा नहीं हो रहा…!”

 उसके इतना कहते ही सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे…” अरे वाह… तभी तो मैं कहती थी… कि अच्छा बनने का नाटक कितने दिन करती है… मैं भी देखती हूं… मैं नहीं जानती आजकल की बहू को… कितना काम में मन लगता है… बस पर्स लटकाए… यहां वहां डोलने को कह दो…!”

” मां जी ऐसा नहीं है… मैं सच्चे मन से घर के सारे काम… आपका परिवार का प्यार पाने के लिए करती हूं…!”

” बंद करो अपना यह नाटक… प्यार पाने के लिए… दिखा तो दिया अपना प्यार तूने… अरे एक हम थे… जो अपनी सास के एक आवाज पर… रात के 12:00 बजे पकौड़े क्या.… पूरा दस लोगों का खाना बना कर रख देते थे… और एक यह महारानी है… जिनको खाना खाते समय उठना पड़ेगा… तो इनका खाना ठंडा हो जाएगा…!”

 इतना सुनते आद्या की आंखों से आंसू बहने लगे… अब शिवेन से रहा ना गया… वह खाना छोड़ कर उठ गया बोला…” मां हर इंसान एक जैसा नहीं होता… अगर तुम पहले से ही किसी को… अपने तराजू पर कस कर देखोगी… तो उसका सही रूप कैसे देख पाओगी… वह बेचारी दिन रात तुम्हें खुश करने में लगी हुई है… और तुम उसकी मेहनतों को नाटक नाम दे रही हो…!”

 पिताजी भी जो इतने दिनों से सब कुछ चुपचाप देख रहे थे बोल पड़े…” देखो दमयंती… तुम्हारा जमाना और आज का जमाना एक सा नहीं है… आजकल जैसा माहौल है… तुम जानती ही हो… उसमें तुम्हें इतना सम्मान करने वाली… आज्ञाकारी बहू मिली है… तो तुम भी उसका सम्मान करो… कल जो तुम्हारे साथ हुआ… उसका बदला अगर तुम इसके साथ लेने की कोशिश करोगी… तो यह मत सोचो…. यह पढ़ी-लिखी कहीं भी कोई भी कार्य करने में सक्षम आत्मनिर्भर लड़की है…यह उतनी ज्यादती बर्दाश्त नहीं कर पाएगी… और करना भी नहीं चाहिए…!”

 मां ने अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया… और कहा…” वाह..… आज मेरे बहू के कारण पहली बार मेरे पति और मेरे बेटे दोनों ने मेरे खिलाफ बातें की… अच्छा है मेरी बहुरानी ने आते ही… मेरा सब कुछ अपने नाम कर लिया…!”

 आद्या उठकर सासू मां के पास आ गई… उनके घुटने पर हाथ रख… उनके पैरों के पास बैठ गई …बोली… “मां मैं कभी भी आपका स्थान नहीं ले सकती… जो आपका है आपका ही रहेगा… मुझे माफ कर दीजिए मां.… मैं अभी पकौड़े ले आती हूं… प्लीज मां आप दुखी ना हों…!”

 शिवेन भी मां के पास बैठ गया…” क्या मां तुम तुम हो… तुम्हारी जगह कोई ले सकता है भला… थोड़ी देर तक सब चुपचाप रहे… फिर मां ने अपने चेहरे से हाथ हटाया… और कहा…” शायद आप लोग ठीक ही कहते हैं… मुझे अपने हीरे की कदर नहीं समझ आ रही थी… बैठिए आप लोग खाना खाईए… चलो आद्या आज मिलकर पकौड़े बनाएंगे…!” 

सुनकर सबके चेहरे खिल गए… आद्या तो मां के कंधे से ही लिपट गई… “चल चल जल्दी कर… सबका खाना ठंडा हो गया.… तेरा भी… मेरा भी…!”

 शिवम हंसते हुए बोला.…” हमारा भी…!”

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

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