आज फिर वही हिमाचल की खूबसूरत वादी, दूर तक फैली हुई बर्फ के पहाड़ों की मनोरम छटा , चारों ओर हरियाली , ठंड का सुहाना मौसम।, बस फर्क इतना कि तब किसी के स्नेह व भावनाओं
से सराबोर प्रफुल्लित मन और आज उसकी स्मृतियों में डूबता उतरता अवसाद ग्रस्त हो चुका मन।
यहीं इन्हीं वादियों में पहली बार मिला था नीरज। मै क्षय ग्रस्त हो गई थी ।बीमारी से उबरने के बाद डाक्टर साहब ने कुछ समय पहाड़ पर रहने की सलाह दी । पापा ने धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में गेस्ट हाउस बुक कर लिया । सुबह शाम सामने पार्क मे बैठ प्राकृतिक सौंदर्य निहारना बहुत अच्छा लगता था मुझे । वहीं नीरज मिले थे मुझे । इतनी जल्दी वह मेरे करीब आते चले गए कि पता ही नही चला । उनकी नीली आंखो के गहरे स्नेह
समुद्र में मै डूबती चली गई ।
मै अक्सर उनसे कहती ‘ दूर बैठा करो न मुझसे ।जानते हो न कितनी भयंकर बीमारी हुई है मुझे ।’
वे और पास खिसक आते ‘ तेरी सारी बीमारी सारे कष्ट अपने मे
समाहित कर लेता हूँ मैं ।’ और कहकर लम्बी फूंक मारते ।’ छू हो गई देख सब। “
मै भाव विभोर हो जाती।
कहते’ कितनी सुन्दर गहरी आँखे है तेरी। जो एक बार देख ले वह इनका हो जाये ।’ मेरा तृषिता नाम
न लेकर कहते मै तेरा नीर तू मेरी
तृषा ।’ मै उन्हें नीर कहकर पुकारती थी ।बहुत सुन्दर चित्र बनाते थे ।कभी कभी कविता भी लिखते थे ।कहते’ मै और कुछ नही लिखता ।बस तुझे देख कर जो भाव उठते है वही कविता बन जाती है ।’ एक दिन मैने कहा ‘ मेरा
भी एक चित्र बनाओ न क्या आड़ी
तिरछी रेखायें खींचते रहते हो। ‘ बोले ‘ तेरी खूबसूरती कागज पर उतार सकूँ इतनी सामर्थ्य मुझमें कहाँ । तेरी तस्वीर तो मेरे दिल मे
उतरी हुई है अन्दर तक ।’ और मेरा हाथ अपने दिल पर रख दबा लेते ।
कहते’ तेरे पापा तो बहुत बडे
बिजनेस मैन है , तू कोठी मे रहने वाली। तुझको मुझे देगे न । छोटा सा विला है मेरा।’ अगले दिन अपना घर दिखाने ले गये ।
छोटा पर बहुत सुन्दर घर था उनका। मुझे अपने घर ले जाकर बहुत खुश हुए ।’ मेरा सपना तू हर समय साथ रहेगी मेरे, सुबह तेरे चेहरे के साथ होगी। रात को तेरे गेसुओ की छाँव में कितनी सुहानी नींद आयेगी मुझे ।’ भावावेश में मुझे गले लगा लिया ।
मैने कहा’ नीर, तुम्हारा सपना जल्दी ही पूरा होगा।पापा को हमारे रिश्ते से कोई एतराज़ नहीं है ।’
रिश्ता पक्का कर ने के लिए माँ को बुलाने चम्बा के लिये जो गये फिर नहीं आये। आई उसके मरने की खबर ।रास्ते में पहाड़ पर भयानक दुर्घटना हो गई थी।जाते समय का उनका चेहरा,उनका उत्साह उनकी खुशी मेरे दिल में समा गई थी।
कितनी मुश्किल से कितने समय में
संभाल पाई खुद को । पर दुबारा किसी के साथ जीवन शुरू करना संभव ही नहीं था। आकण्ठ समा चुकी थी उनके अथाह प्रेम में जिसको उनके बाद भी भूलना असम्भव था।
बहुत मुश्किल से मैने अपना तबादला यहाँ करवाया ।उनका घर खरीदने की मेरी इच्छा भी पापा ने पूरी की।उन्होंने जो अपने बनाये हुए चित्र दिये थे उन्हें पूरे घर में सजा दिया है।
उसकी यादों के सहारे शेष जीवन
यहीं बिताने की इच्छा रह गई है बस।वही जगह वही वादियां ।रात को आसमान में चमकते तारे से कहती हूँ ‘ नीर देखो मै तुम्हारे घर मै हूँ यही चाहते थे न तुम ।
नीर की यादें ही जीने का सहारा बन गई हैं ।
मौलिक स्वरचित
सुधा शर्मा