यादें तो मन में होती हैं – अर्चना कोहली “अर्चि”

शुभा की तेरहवीं का  कार्य  संपन्न हो जाने के बाद बेटे और बहू ने रमेश से कहा-

“पिताजी आप हमारे साथ चलिए। अकेले कैसे रहेंगे! पहले भी आपसे और माँ से बहुत बार कहा, पर आपने हर बार इनकार कर दिया।”

“नहीं बेटा। मैं नहीं चल पाऊँगा”। रमेश ने भरे गले से कहा।

“पर क्यों पिता जी”!

बेटा, यहां पर तेरी माँ की यादें बसी हुई हैं। उन्हें छोड़ने का मन नहीं करता”। 

“पिता जी चलिए न। मुझे भी सहारा हो जाएगा। मेरे पिता जी का तो बचपन में ही देहांत हो गया था। मैंने तो उनके प्यार को देखा ही नहीं। आपमें मुझे पिता की छवि नजर आती है। आपकी सेवा करके अपने आपको धन्य समझूंगी”। बहू वंदिता ने ज़ोर देकर कहा।

“हाँ दादा जी चलिए न। बड़ा मज़ा आएगा”। रोहित ने भी मनुहार करते हुए कहा।

“पिता जी, सब इतना कह रहे हैं तो  मान जाइए न”। समीर ने फिर कहा।

“बेटा मुझे अभी तेरी माँ की अंतिम इच्छा पूरी करनी है। अभी नहीं चल सकता”।

“अंतिम इच्छा”! बेटा-बहू एक साथ हैरानी से बोल पड़े।

” बेटा। तेरी माँ ने मरने से कुछ समय पहले कहा था, जो लोग कुछ मजबूरियों के कारण अपने बच्चों को नहीं पढा पाते हैं, उनके लिए वे इस घर की ऊपरी मंजिल में एक ऐसा विद्यालय खोलना चाहती हैं, जहाँ पर उन्हें नि:शुल्क पढ़ाया जा सके”।

“अरे वाह पिता जी! माँ ने बहुत अच्छा सोचा।  इसमें हम भी आपकी सहायता करेंगे। क्यों वंदिता”?

“जी बिलकुल। नेकी और पूछ पूछ”। वंदिता ने मुसकराते हुए कहा।



“पिताजी । माँ की अंतिम इच्छा पूरी करवाने का सारा जिम्मा मेरा । मैं अभी इस बारे में किसी से बात करता हूँ। भगवान ने चाहा तो कुछ ही समय में माँ की इच्छा पूरी हो जाएगी”। समीर ने कहा।

“पर बेटा। मैं अपनी आँखों से स्कूल को चलते देखना चाहता हूँ”।

“ठीक है, पिता जी। तब तक मैं आपके साथ ही रहूँगा।  मैं आज ही अपने बॉस से छुट्टी के लिए बात करता हूं, पर आपको साथ ही लेकर जाऊँगा”।

“यह ठीक रहेगा। मैं भी रहती, अगर रोहित का स्कूल न होता”।

समीर बेटा। बहू अकेले कैसे सब सँभालेगी।  मैं सब कर लूंगा”। अनुपम ने कहा।

“पिता जी चिंता मत कीजिए। आपकी बहू कमज़ोर नहीं है”। वंदिता ने मुस्कुराते हुए कहा।

“पर बहू•••”।

“पर वर कुछ नहीं। अब कोई बहाना नहीं चलेगा। आप तो बस आज से ही चलने की तैयारी शुरू कर दीजिए”। वंदिता ने कहा।

मैं बहुत ही खुशकिस्मत हूं जो मुझे बहू के रूप में बेटी मिली। पर यहाँ पर तेरी माँ की यादें हैं। उसके बिना कैसे रह पाऊंगा”!

“पर दादी जी तो कहती थी,  यादें तो मन में होती हैं। उन्हें कोई नहीं मिटा सकता”। बड़ी देर से सबकी बातें सुन रहे रोहित ने अचानक कहा।

“अच्छा भई, चलूँगा। तेरी दादी की बात को कैसे झुठला सकता हूँ। पर निचले हिस्से का क्या करें”।

“पिताजी इसे ऐसे ही रहने देंगे। किसी को मैं इसकी देखभाल के लिए नियुक्त कर दूंगा, ताकि हम भी कभी-कभी यहाँ आकर रह सकें। आखिर मेरा बचपन और आपकी और माँ की यादें इसी में तो हैं।  माँ की अंतिम इच्छा का प्रतीक स्कूल भी तो यहीं पर बनेगा न”!

अर्चना कोहली “अर्चि”

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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