वो दस मिनट – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ” मीनू देखो दरवाजे पर कौन है !” दरवाजे की घंटी बजने पर मानसी ने अपनी घरेलू सहायिका से कहा। 

” मैडम ये कोई लेटर आया है साहब के नाम !” आगंतुक जो कि एक डाकिया था से एक चिट्ठी ले मानसी से मीनू बोली ।

” अच्छा ला इधर और तू जा काम कर !” मीनू से चिट्ठी लेते हुए मानसी बोली ” देखिये तो क्या है इसमे !” मानसी मीनू के जाने के बाद पति तनुज से बोली। 

” दिमाग़ खराब हो गया है पापा का !” चिट्ठी खोलते ही तनुज चिल्लाया ।

” ऐसा क्या है इसमे और पापा का इससे क्या सम्बन्ध ?” मानसी हैरानी से बोली। 

” सम्बन्ध है तभी तो बोल रहा …हमारे पूज्य पिताजी ने हमारे खिलाफ कोर्ट मे केस कर दिया है क्योकि उन्हे हमसे बहुत सी शिकायते है । परसो तारीख है ये उसी का लेटर है !” गुस्से मे भरा तनुज बोला। 

” क्या….दिमाग़ खराब है पापा का और वो तो हरिद्वार जाने की बात बोल घर से निकले थे हमें तो लगा था कि शायद वो हमेशा को वही बसने जा रहे है पर नही वो हमारी जिंदगी की मुश्किलें आसान करने थोड़ी हमें और ज्यादा परेशान करने जा रहे थे। ” मानसी भी गुस्से मे बोली। 

” लो फोन भी बंद आ रहा है जनाब का हद है इनकी अब मैं अपने काम देखूँ की कोर्ट कचहरी । सब कुछ मिल रहा बुढ़ापे मे फिर भी शिकायत है इन्हे !” तनुज झुंझला कर बोला।

थोड़ी देर बाद तनुज अपने ऑफिस चला गया मानसी ने कई बार अपने ससुर का फोन मिलाया पर हर बार स्विच ऑफ आया।

दो दिन बाद दोनो पति पत्नी कोर्ट पहुंचे जहाँ पापा यानी कि विशंभर जी अपने वकील के साथ बैठे थे । तनुज और मानसी ने गुस्से मे उन्हे घूरा तो उन्होंने नज़र झुका ली। 

तभी कोर्ट की कार्यवाही शुरु हो गई और विशंभर जी को कटघरे मे बुलाया गया। 

” हाँ तो विशंभर जी आपको क्या शिकायत है विशंभर जी अपने बेटे बहू से !”  वकील ने पूछा। 

” नही बेटा मुझे बहू से कोई शिकायत नही क्योकि उसे तो हमारी जिंदगी मे आये महज दस साल हुए है शिकायत तो मुझे अपने बेटे से है जिसे जिंदगी मैने दी है । ना सिर्फ जिंदगी दी बल्कि उसकी माँ चार साल का छोड़ गई थी मेरी गोद मे उसे अपने खून पसीने से पाला है मैने !” विशंभर जी नम आँखों से बोले।

” कौन सा बड़ा काम किया सभी माँ बाप अपने बच्चो को पालते है पर आपकी तरह कोर्ट मे कोई नही घसीटता !” तनुज चिढ कर बोला। 

” सही कहा बेटा सभी माँ बाप पालते है अपने बच्चो को ये उनका फर्ज है पर बच्चो के फर्ज का क्या ? क्या उनका फर्ज नही माँ बाप के बुढ़ापे मे उनका ख्याल रखना ?” विशंभर जी ने बेटे से पूछा। 

” रख तो रहे है ख्याल , सब कुछ दे रखा है । घर मे सारी सुख सुविधाएं है अपने साथ आपको रखा हुआ है फिर भी शिकायत है आपको !” तनुज गुस्से मे बोला।

” जिन सुख सुविधाओं की तुम बात कर रहे हो वो मेरी कमाई की है वो घर मेरा है जिसमे मैं अब उपेक्षित हो गया हूँ !” विशंभर जी बोले।

” क्यो क्या आपका बेटा आपका ख्याल नही रखता , आपको समय से खाना नही देता ?” दोनो की बातचीत सुन जज साहब ने पूछा। 

” जज साहब क्या सिर्फ खाना देना ही सब होता है । जब ये चार साल का था इतना बड़ा कारोबार होते हुए भी इसके लिए समय निकालता था मैं । ये मेरे हाथ से ही खाना खाता था तो अपनी जरूरी मीटिंग्स भी छोड़ भागा आता था। सबने मुझे इतना समझाया कि मैं दूसरी शादी कर लूँ पर अपने बेटे को मैं किसी ओर के हाथों नही सौंप सकता था इसलिए इसका पूरा ध्यान खुद रखता था यहां तक की अपनी फैक्ट्री तक मे इसके लिए कमरा बनवा रखा था जिससे स्कूल के बाद ये मेरे साथ रहे !” इतना बोल विशंभर जी हांफने लगे। यूँ तो विशंभर जी की उम्र ज्यादा नही थी पर बेटे की उपेक्षा ने शायद उन्हे वक्त से पहले बूढा बना दिया था।

” आप क्या चाहते है मैं सारे काम छोड़कर आपके पास बैठा रहूँ !” तनुज बोला।

” बेटा तू काम छोड़ कर क्या जब घर मे होता है तभी कब मिलता है मुझसे। जज साहब मैं अपने बेटे के घर मे एक पुराने सामान सा हो गया हूँ जिसे घर के पीछे के हिस्से मे डाल दिया जाता है। बहू को मेरा घर मे रहना पसंद नही , बेटे को ऑफिस आना गँवारा नही इसलिए मुझे घर के पीछे का हिस्सा दे दिया गया है जहाँ एक नौकर मुझे खाना पीना दे जाता है मैं अपने बच्चो से पोते पोती से बात करने को तरस जाता हूँ पर इस डर से अपने कमरे से बाहर नही आता कि कहीं घर का मालिक होने के बावजूद मै अपने बच्चो से ही जलील ना हो जाऊं। ” विशंभर जी रोते हुए बोले। 

” विशंभर नाथ जी आप अपने बेटे को सजा दिलाना चाहते है ? पर माफ़ कीजियेगा कानून मे इसकी कोई सजा नही है क्योकि ना तो आपके बेटे ने आपको घर से निकाला ना ही आपको पड़ताड़ित किया हाँ आप उससे अपना घर फैक्ट्री वापिस ले सकते है  ।” जज साहब बोले।

” ना ना बेटा मैं अपने बेटे को सजा दिलाना भी नही चाहता कैसे दिला सकता हूँ मैं उस बेटे को सजा जिसका चेहरा देख मैने जीवन के इतने साल काटे है रही घर फैक्ट्री की बात वो मुझ बूढ़े के किस काम की !” विशंभर जी बोले।

” तो आप क्या चाहते है ? आपने ये मुकदमा क्यो किया ?” जज असमंजस मे बोला।

” बेटा मैने अब तक जो भी अपने बेटे के लिए किया उसकी कीमत चाहता हूँ मैं !” विशंभर जी के इतना बोलते ही सारा कोर्ट सकते मे आ गया । एक पिता अपने बेटे से कीमत मांग रहा है सभी विशंभर जी की आलोचना करने लगे । 

” ओह्ह तो ये बात है ..बोलिये क्या कीमत है आपकी ? ये बात आप घर पर बोल देते तो मेरा इतना समय नही खराब होता !” तनुज बोला। 

” बेटा तू तो इतना पढ़ा लिखा है मेरा सारा कारोबार भी तू ही संभाल रहा बल्कि उसे ऊंचाइयों पर भी तू ही लेकर गया है हिसाब किताब का भी तू पक्का है तू बता एक पिता के त्याग की क्या कीमत होती है ?” विशंभर जी बोले। 

” विशंभर जी आप यूँ पहेलियाँ मत बुझाइये साफ साफ बोलिये आप क्या कीमत चाहते है ?” जज साहब थोड़ा झुंझलाते हुए बोले।

” जज साहब वो घर मेरे नाम है कारोबार मैने खुद से बेटे के नाम किया हुआ है । फिर भी क्या आप लोगो को लगता है मैं रूपए पैसे के लिए अपने बेटे पर मुकदमा करूंगा । मुझे ये भौतिक चीजे नही चाहिए जज साहब !” विशंभर जी बोले। 

” तो क्या चाहिए आपको ?” 

” जज साहब मैं चाहता हूँ मेरा बेटा ऑफिस से आकर दस मिनट के लिए ही सही मुझे मेरे कमरे से बाहर लेकर चले भले घर के पार्क मे ही सही ये दस मिनट मेरे साथ बिताये । जैसे बचपन मे मैं इसे अपने कंधे पर बैठा घूमाता था ये मुझे मेरा हाथ पकड़ कर घुमाये !” विशंभर जी बोले।

” ये कीमत चाहिए आपको !! पर इससे क्या हांसिल होगा आपको ?” जज हैरानी से बोला । हैरान तो वहाँ मौजूद सभी लोग थे। 

” अरे बेटा तुम लोग क्या जानो एक पिता को इससे क्या हांसिल होगा । उस दस मिनट के इंतज़ार मे ये बूढा बाप अपना पूरा दिन काट देगा । बहू की चुभती हुई बाते हंस कर टाल देगा । वो दस मिनट दिन के 24 घंटो पर भारी होंगे क्योकि उन दस मिनटों मे एक पिता को उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी अपने बच्चे का साथ मिलेगा , उस दस मिनट मे एक पिता को ये एहसास मिलेगा कि उसका भी कोई है । उस दस मिनट मे एक पिता अपने बेटे के सिर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दे सकेगा । उस दस मिनट मे एक पिता अपने बेटे के सिर की सारी बलाएं अपने सिर ले सकेगा अपने पोते पोती को पास से देख सकेगा। उस दस मिनट से मेरे बेटे का भविष्य सुधर जायेगा क्योकि इसका बेटा अभी छोटा है जब वो अपने पिता को उसके पिता के लिए समय निकालते देखेगा तो वो भी तो इसके बुढ़ापे मे इसके लिए समय निकलेगा। और जज साहब समय का कुछ नही पता कब मेरे प्राण पखेरु उड़ जाये तो उस दस मिनटो मे मेरे बेटे को पता तो लग जायेगा कि मैं अब नही रहा । और जज साहब …वो दस मिनट जो मेरा बेटा मुझे देगा उसमे उसका सारा कर्जा चुक जायेगा !” विशंभर जी बोले।

विशंभर जी ये इतना बोलते ही सारी कोर्ट मे एक पल को तो सन्नाटा छा गया । और अगले ही पल सिसकियों की आवाजे आने लगी तभी सबकी निगाह उस तरफ गई जहाँ से जोर से आवाज़ आ रही थी। अपने कटघरे मे जमीन पर बैठा तनुज जोर जोर से सिसकियां ले रहा था। 

 

विशंभर जी अपने कटघरे से निकल बेटे के पास पहुंचे और उसका सिर सहला बोले ” क्या हुआ बेटा क्या ज्यादा कीमत मांग ली मैने ?” 

” नही पापा आपने कोई कीमत नही मांगी आपने तो एक बेटे को आइना दिखाया है । माँ बाप बेटे का भविष्य बनाते है पर आपने तो मेरा भविष्य बचाया है ।सारी उम्र मेरे बारे मे सोचा आपने और अब भी मेरे बुढ़ापे के बारे मे सोच रहे है मुझसे दस मिनट मांग मेरा सारा बुढ़ापा सुधार रहे है । मुझे माफ़ कर दो पापा अब आपका बेटा आपके साथ केवक दस मिनट ही नही बल्कि जितना हो सकेगा उतना समय बिताएगा । आप अपने पोते पोती को सिर्फ देख नही पाओगे उनके साथ खेलोगे क्योकि अब आप घर के मुख्य कमरे मे रहोगे पीछे के साधारण कमरे मे नही !” तनुज पिता से लिपट रोते हुए बोला। विशंभर जी बेटे को ऐसे प्यार करने लगे जैसे बचपन मे करते थे। 

अब इस मुक़दमे और विशंभर जी की शिकायतों का कोई औचित्य नही रह गया था क्योकि दोनो पक्षो मे समझौता हो गया था । सभी लोग अपनी आँखे पोंछते हुए उठ खड़े हुए क्योकि सबको जल्दी थी घर पहुँचने की क्योकि ज्यादातर लोग कहीं ना कहीं तनुज की तरह अपने बूढ़े माँ बाप को उपेक्षित कर रहे थे। जज साहब ने केस बंद कर फटाफट अपनी कार की तरफ दौड़ लगाई क्योकि उनके घर मे भी बूढी माँ बेटे के दस मिनट की बाट जोह रही थी। 

दोस्तों हम लोग जिंदगी की जद्दोजहद मे इतने उलझ जाते है कि अपनों के लिए समय नही निकाल पाते इसमे सबसे ज्यादा उपेक्षित हमारे माँ बाप होते है । तो आज से बल्कि अभी से आप भी अपने माता पिता के लिए दस मिनट निकालिये इससे पहले के देर हो जाए क्योकि ये दस मिनट ना केवल आपके जन्मदाताओं को खुशी दे सकते है बल्कि आपका बुढ़ापा भी संवार सकते है। अगर आपके माता पिता आपके साथ है तो आज बन जाइये बच्चा और जी लीजिये अपना बचपन फिर से और अगर साथ नही तो एक फोन करके उन्हे एहसास दिलाइये वो आपके लिए क्या है । यक़ीनन इससे आपको भी खुशी मिलेगी।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#शिकायत

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