वंदना सुबह से ही जल्दी-जल्दी काम में लगी थी, आज दुर्गा नवमी है और उसे घर की साफ सफाई के साथ-साथ कन्या पूजन और कन्याओं के प्रसाद व भोजन की भी व्यवस्था जो करनी है।
वो अपने पति अजय से कहती है कि सुनिए आप भी जरा जल्दी तैयार हो जाइए,हमें चामुंडा मां के मंदिर जाना है, कन्याओं का प्रसाद लेकर , क्योंकि वहां अक्सर गरीब बच्चे मिल जाते हैं, आज के समय में कोविड के कारण कोई भी अपने बच्चों को घर नहीं भेजना चाहता, और हमें भी बहुत सावधानी रखते हुए मंदिर के बाहर मंदिर के बाहर बच्चों में बांटना है।
कहकर बंदना अपने काम में जुट जाती है, और उधर अजय भी नहाधो कर तैयार हो जाता है, फिर दोनों माता रानी की पूजा कर कन्याओं के लिए प्रसाद बनाकर उनके पैकेट, फल, बिस्कुटआदि पैक कर लेते है।
मंदिर के बाहर जाकर देखते हैं कि वहां तो बहुत-सारे गरीब बच्चों का जमावड़ा ही लगा है, वंदना ने जैसे ही प्रसाद बच्चों में बांटना चाहा,सभी बच्चों ने आगे बढ़कर वंदना को घेर लिया।
उन्हीं बच्चों में एक थोड़ी छोटी सी बच्ची बहुत देर से प्रसाद लेने की कोशिश करती है। वंदना ने भी कई बार उसे प्रसाद देना चाहा, लेकिन बड़े बच्चे हर बार उसके प्रसाद को उस तक पहुंचने से पहले ही लपक लेते हैं। ऐसा करते-करते कुछ ही देर में प्रसाद के सारे पैकेट और फल हो खत्म गए, और वंदना भी लौट कर घर जाने लगी, लेकिन तब भी उसे कुछ एहसास हुआ, कि उस छोटी बच्ची की बड़ी बड़ी आंखों में आंसू थे, जेसै ही वंदना ने उस बच्ची का चेहरा देखा उस बच्ची की आंखों से मोती झर पड़ें।
वंदना बेचैन हो गई पर उसके पास अब कुछ प्रसाद फल पैसे भी बाकी नहीं थे, उसने सोचा यदि उस रोती बच्ची को वो हंँसा ना पाई ……तो ये व्रत उपवास, मां का पूजन सब व्यर्थ है।
अचानक उसे कुछ सूझा और वो बच्ची का हाथ पकड़ कर थोड़ी दूर खड़े अपने पति के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर छोटी बच्ची को उसके मनपसंद फल और बिस्किट दिलवाये।
यकीन मानिए उसके बाद जो उस बच्ची के चेहरे की मुस्कान थी, वो दुनिया की सब दौलत से बड़ी थी और उसके चेहरे को देखकर लगा मानो माता रानी स्वयं मुस्कुरा रही हो।आज वंदना ने एक रोती छोटी बच्ची को हँसा कर सच्चे मायनों में माता रानी को को प्रसन्न कर लिया था।
वह मन ही मन सोचने लगी…
रोती बच्ची की मुस्कान में मैंने, मां के दर्शन कर लिए,
सही मायने में आज मैंने मां के व्रत पूरे कर लिए।
जय माता की।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश