वो वाक़या जो भुला न सका – अनजान लेखक (मुकेश कुमार)

पैंतालीस साल से उपर गुजर गए थे जब मैंने ठान लिया था की जो भी हो अब इस जन्म में दोबारा हमलोग न ही भेंट-मुलाक़ात करेंगे और न ही बात करेंगे. एक शहर के हो कर भी हमलोग अजनबी बने रहे.

लेकिन वो बोलते हैं न की “कुछ चीज़ें आप करते हैं और कुछ चीज़ें आप से हो जाती हैं”.

हाँ मेरे से भी हो गयी, कुछ देर के लिए अफ़सोस भी हुआ लेकिन बाद में मैंने इसको भी भाग्य का खेल मान लिया.

लगभग सत्तर साल के हो जाने के बाद मैंने स्क्रीन टच का मोबाइल लिया, लिया क्या बड़े पोते ने गिफ़्ट किया, व्हाट्स ऐप्प और फ़ेसबुक भी डाउनलोड कर दिया, बोलता है “दादू मैं विदेश में रहता हूँ आपसे बात नहीं हो पाती” “जब आप सो जाते हैं तब हमारा दिन होता है”

इसी बहाने आप फ़ेसबुक में देखिएगा मैं कहाँ घुमने जाऊँगा, कितने दोस्तों के साथ रहूँगा, वग़ैरह… वग़ैरह.

आपको मैसेज करूँगा, जब आप सो कर उठेंगे तब जवाब दिजिएगा बाद में मैं पढ़ लूँगा.

और हाँ, दादू आप अपने पुराने दोस्तों को भी ढुँढ सकते हैं जिन्होंने पहले से ही फ़ेसबुक पर एकाउंट बना लिया होगा, मैंने आपके कॉलेज और ऑफिस दोनों का डीटेल दे दिया है इसलिए फ़ेसबुक खुद ही कॉलेज और ऑफिस के दोस्तों को दिखाएगा. मन करे तो ऐड कर लिजीए नहीं तो बीना ऐड किए भी मैसेंजर में बात कर सकते हैं.



आज पहला दिन ही है, फ़ेसबुक में पल्लवी का नाम आ रहा है, गालों पर झुर्रियों के वजह से पहचान पाना मुश्किल हो रहा था, उसकी आईडी में फ़ोटो देखा तब पहचान पाया. जवानी का फ़ोटो लगाई है, मुझे अच्छे से याद है, ए फ़ोटो भी मैंने ही खींचा था, कॉलेज का पिकनिक था, वो रील वाला कैमरा लेकर आई थी. बाद में वही एक फ़ोटो मैंने उससे माँग लिया था, अपने किताब में छुपा कर रखता था…

गहरे हरे रंग का सूट, ललाट पर छोटी काली बिंदिया, आँखों में गहरा काजल और होंठों पर पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक… बला की ख़ूबसूरत लग रही थी.

मैं एक-टक उसी को देखे जा रहा था.

वो पास आ कर बोली थी “ऐसे देखे जा रहे हो, मुझको खा जाओगे क्या?”

बंद करो ऐसे देखना, नहीं तो सभी दोस्तों को हमारे बारे में शक हो जाएगा.

दो दिन हो गए पल्लवी को हाल-चाल पुछ लिया मैसेंजर में, आज उसका जवाब आया:

योगेश हो न तुम? तुम्हारे बाल झड़ गए.

हाँ, तुम्हें भी झुर्रियाँ आ गई.

क्या किया इतने साल, कहाँ थे?

पन्द्रह साल बाहर रहा फिर इसी शहर में.

शादी कर ली?

अच्छा याद आया “मैंने बोला था, अगर पल्लवी से शादी नहीं हुई तो मैं किसी से शादी नहीं करुँगा”

लेकिन माँ ने क़सम दे कर शादी करा दिया… तुम छोड़ कर गई तो दो साल लग गए खुद को सँभालने में, शादी के बाद भी मैं अपनी पत्नी को प्यार नहीं कर पाया… धीरे-धीरे उसने मुझे अपना बना लिया, हमारे बच्चे हुए… आज हालत ए है की पत्नी अगर दो घंटे के लिए भी बाज़ार चली जाए तो अकेलापन लगने लगता है.



तुम्हें याद भी नहीं होगा पल्लवी, लेकिन तुमने मंदिर में भगवान को साक्षी मानकर मुझे अपना पती माना था.

कॉलेज ख़त्म होने से पहले ही तुम्हारे पिता ने तुम्हारा नाम रजिस्टर करा दिया था देश के जाने-माने कंपनी में जहाँ वो कार्यरत थे… कॉलेज ख़त्म होने से पहले ही तुमने मेरे से ज़्यादा कमाना शुरू कर दिया था.

मैं अपने घरवालों को मनाने में लगा था तब तक तुमने चुपके से सगाई कर ली. सगाई भी तुमने अपने स्कूल के दोस्त से की थी, मैंने पुछा था तो तुमने झुठ बताया था की तुम कभी नहीं मिली हो उससे.

वो लड़का भी तुम्हारे साथ देश की जानी-मानी कंपनी में काम करता था.

तुमने मुझसे कहा जरुर था की “तुम्हारी माँ को ज़्यादा कमाने वाला दामाद चाहिए”

मैंने तुम्हें मंदिर में दिए वचन को भी याद दिलाया लेकिन तुमने कहा “मुझे कुछ याद नहीं”

मैं चालीस-पचास साल से उस दर्द में अकेला तड़प रहा था, मैंने अपनी पत्नी को आज तक गुलाब के फूल नहीं दिए, गुलाब हमेशा मैं तुम्हें दिया करता था वो अब भी याद आ जाता है. हाँ मैंने पत्नी को गजरा बहुत बार दिया है. वो शान से गजरा बालों में लगा कर मेरे इर्द-गिर्द घुमा करती थी, तुम्हारी तरह बीच रास्ते में नहीं फेंकती.

और हाँ पल्लवी तुम्हारी माँ जीवित होती तो एक बार जरुर मिलता, उन्हें बताता “जीतना आपका दामाद और बेटी मिल कर कमाते थे न उससे कहीं ज़्यादा मैं अकेला कमाता था”

ख़ैर, छोड़ो तुम तब नहीं समझ पाई तो अब क्या समझोगी…. आज ढलती ज़िंदगी के पड़ाव में आने के बाद मन हल्का लग रहा है, तुमने मेरे मान-सम्मान को पैसों के आधार पर तौला था.

बस घबरा रहा हूँ की मेरे फ़ेसबुक का पासवर्ड मेरे पोते ने बनाया है इसलिए उसको पता है, मुझे ए सब डिलीट करना नहीं आता… ए सब वो भी पढ़ लेगा, लेकिन कोई बात नहीं, वो समझदार है… सब समझ जाएगा.

– अनजान लेखक (मुकेश कुमार)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!