वो सोलह बरस की – नीरजा कृष्णा

वो बच्चों के पास अहमदाबाद आई हुई थी…आयुष ने दिन रात एक कर दिया था,”आपको आना पड़ेगा… बहुत दिन हो गए हैं।”बहुत सोच कर वो दस दिन के लिए आ गई थीं। सुबह सुबह वो गुनगुनाते हुए सबकी चाय बना रही थीं…मैं सोलह बरस की…तू सत्रह बरस का…तभी पीछे से जोरदार धमाका हुआ…हैपी बर्थडे दादी…वो तो निहाल ही हो गई… इतने वर्षों में अपना जन्मदिन उन्हें कहाँ याद रहा… वो तो बस कठपुतली की तरह ….आज तो खुशी आँचल में समा ही नही रही थी…तभी बेटा बहू ने आकर पैर छुए,”मम्मी, आज आपका स्पेशल डे है… आज चाय मैं आपके लिए बनाऊँगी… एक बात और…आज दस पंद्रह लोगों के लिए पार्टी रखी है… आप खूब बढ़िया साड़ी पहनियेगा।’

वो बहुत खुश हो गई… दौड़ कर अपनी साड़ियां दिखाने लगी…पोते विराट ने एक लाल साड़ी पर अँगुली रख दी,”आप इसे पहन कर बहुत सुंदर लगोगी… मेरे दोस्त भी कह रहे थे…तेरी दादी बहुत स्मार्ट लगती हैं।”

शाम को वो बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से तैयार हुई… ढीला सा जूड़ा तो उन पर बहुत ही फब रहा था…बहू ने आकर खूब बड़ी लाल बिंदी लगा दी…वो बहुत चौंक गई थी…उनके जाने के बाद उन्होंने बिंदी नही लगाई थी…पर आज बहू ने उनकी एक ना सुनी…बच्चों के सब मित्र आए और उनसे बहुत प्रभावित हुए…बहू की सहेली तो बोल ही दी,”हाय आंटी, आपके बाल तो अभी भी इतने घने और काले हैं…आप बालों को रंगती हैं क्या?”

जवाब आयुष ने दिया था,”मेरी मॉम इस उम्र में भी कितनी स्मार्ट हैं…बाल भी नेचुरल ही हैं।”वो फूली नहीं समा रही थी…केक कटवाया गया… सबने पूछा… आंटी की एज़ क्या है… सत्तर शब्द ने उन सबको नि:शब्द कर दिया था…सबने एक सुर में कहा,”आपने तो उम्र को भी मात दे दी।”

अभी हँसी मज़ाक और खाना पीना चल ही रहा था…वो उस खुशनुमा माहौल को आत्मसात कर ही रही थीं…तभी आयुष बोल पड़ा,”मम्मी, दस बज रहे हैं…अब आप अंदर जाकर आराम करिए।”

वो हैरान हो गई… वो तो उन सबके साथ बच्चा ही बन गई थीं…उन्होनें अनसुना कर दिया… पर दस मिनट बाद ही बहू बोली,”चलिए मम्मी जी, विराट को नींद आ रही है… वो बुला रहा है।”

वो सन्न रह गई और बिना बोले अंदर कमरे में चली गईं…देर रात तक सबके कहकहे उनके दिमाग पर हथौड़े चलाते रह गए… सुबह वाली षोडशी एकाएक सत्तर बरस की हो गई थी।

नीरजा कृष्णा पटना

 

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