Moral stories in hindi :
जब से रोशनी का दिल्ली के कॉलेज में दाखिला हुआ था, तब से वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी | हालांकि रोशनी के माता पिता उसे दूसरे शहर में भेजने से चिंतित थे, पर फिर भी रोशनी के सुनहरे भविष्य के लिए उन्हें अपना दिल मज़बूत कर के अपने कलेजे के टुकड़े को दूर भेजना ही पड़ा | वैसे भी रोशनी के माता पिता के दांपत्य जीवन में पड़ चुकी दरार का रोशनी की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा था, सो अपनी इकलौती बेटी को दूर भेजना ही एक उचित निर्णय लगा उन दोनों को |
रोशनी भी उस दम घोंटने वाले माहौल से बाहर निकलना चाहती थी | नए दोस्त बनाना चाहती थी, क्यूंकि छोटे शहर की होने के कारण उसके पापा का अपने सेक्रेटरी से संबंध आग की तरह फैल चुके थे और रोशनी के दोस्त या जानने वाले भी बस मज़े लेने के लिए घुमा फिराकर बात उसके पापा तक ले आते थे, सो इन सब सवालों से भागने के लिए वो जल्द से जल्द होस्टल में जाना चाहती थी |
दिल्ली पहुँचते ही रोशनी को लगा मानो अब उसने नयी दुनिया में कदम रखा, पापा से संबन्धित अनेकों सवालों को वो पीछे छोड़ आयी थी | होस्टल में उसके साथ कमरा शेयर करने वाली अंजलि भी बहुत अच्छी थी | जल्द ही दोनों पक्की सहेलियाँ बन गयी | दो माह पंख लगाकर उड़ गए | एक हफ्ते की छुट्टी में जहाँ सब होस्टल में अपने अपने घर जाने के लिए उत्साहित थे, वहीं, रोशनी को पैकिंग ना करते देख आखिर अंजलि पूछ बैठी, “तू क्यूँ नहीं जा रही अपने घर?”
“मेरा मन नहीं है” रोशनी के इस अधूरे ज़वाब से अंजलि संतुष्ट नहीं हुई |
“बता ना क्या बात है? मुझे नहीं बताएगी?” अंजलि के मात्र इतना ज़ोर देने से ही रोशनी ने भावनाओ में बह कर अंजलि को अपने पापा के बारे में सब बता दिया |
अंजलि ने रोशनी को वादा किया, कि वह बात सिर्फ और सिर्फ उस तक सीमित रहेगी, अंजलि एक सप्ताह के लिए अपने घर चली गई |
य़ह सप्ताह रोशनी के लिए एक वरदान साबित हुआ, उसकी कक्षा का सहपाठी पार्थ से उसकी घनिष्ठता बढ़ती गयी और दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित हो गए | य़ह पूरा सप्ताह अक्सर दोनों कभी कैन्टीन में तो कभी लॉन में एक साथ बिताते और दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आने लगा |
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अंजलि को लौटने पर य़ह बात कुछ हजम नहीं हुई | पार्थ था ही ऐसा की उसकी दोस्ती के लिये हर कोई तरसता था, ईर्ष्या ने घर कर लिया था अंजलि के हृदय में | वह किसी ना किसी तरह बस पार्थ और रोशनी की दोस्ती तुड़वाना चाहती थी |
उधर रोशनी को पार्थ के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता था, यहाँ तक कि वह अपने साथ रहने वाली अंजलि के बदले स्वभाव को भी ना समझ पाई | हर रोज़ हर बात आकर अंजलि को बताती बिना य़ह जाने कि वह खुद अपने रास्ते में काँटे बो रही है |
जब अंजलि से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने रोशनी के पापा की बात कॉलेज में फैलाना शुरू की, जिस बात से रोशनी दूर भागकर आई थी, अब फिर से सबके सवालिया चेहरे प्रश्न पूछते या रोशनी की हँसी उड़ाते दिखाई देते | रोशनी की बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा था, पर फिर भी किसी हद तक पार्थ उसके साथ था |
पर कुछ दिनों से पार्थ भी खिंचा खिंचा रहने लगा था, आज रोशनी ने फैसला कर लिया था कि पार्थ से आज सब बातें पूछ कर रहेगी, “पार्थ! तुम मुझसे इतने उखड़े उखड़े क्यूँ रहते हो? क्या तुम भी मुझे मेरे पापा के कारण गुनहगार मानते हो?”
ज़वाब देने की बजाय उल्टा पार्थ ने ही रोशनी पर एक सवाल दाग दिया, ” तुम्हारे पर्स में पिंक रंग की दवाई हर समय क्यूँ रहती है? ” य़ह सुनते ही रोशनी के पैरों तले जमीन खिसक गयी | उसने कोई ज़वाब नहीं दिया |
” तुम डिप्रेशन की दवाई लेती हो? तुम्हें मानसिक तनाव है? तुम दिमागी रूप से बीमार हो और य़ह बताना तुमने जरूरी नहीं समझा?” पार्थ ने गुस्से में कहा |
” पार्थ! मेरे परिवार के रोज़ाना झगड़ों के कारण य़ह सच है कि मुझे पहले य़ह दिक्कत हुई थी, पर दिल्ली आने के बाद से मुझे बहुत कम इस दवाई की जरूरत पड़ती है और जब से तुम मेरी जिंदगी में आए हों तब से तो मैं सिर्फ और सिर्फ खुश हूँ, पर फिर भी दवाई पर्स में रहती है पर मुझे खाने की जरूरत नहीं पड़ती | चाहे तो तुम मेरे डॉक्टर से भी बात कर सकते हो |” गिड़गिड़ाते हुए रोशनी ने कहा, वह हर कीमत पर पार्थ को अपने जीवन से दूर नहीं जाने देना चाहती थी |
” आज से हम दोनों के रास्ते अलग है, मुझे तुम्हारी और भी आदतों का पता चल चुका है, मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना | “कहकर पार्थ वहाँ से चला गया |
रोशनी फिर से वापिस उसी स्थिति में आ गयी, जिस से बचने के लिए उसने अपना शहर बदला था उसको आज तक समझ नहीं आया कि आखिर उसकी गलती क्या थी….. अंजली के सामने आते ही रोशनी गुस्से से बोल पड़ी,
“तुम्हे मैने अपना करीबी मित्र समझकर भरोसा किया परंतु तुम पर विश्वास करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी।” आज रोशनी को जिंदगी का एक नया सबक मिल चुका था।
(स्वरचित, मौलिक)
पूजा अरोड़ा
दिल्ली
# दिल से दिल तक#