वो पराया पर अपना –  बालेश्वर गुप्ता

  अभी पिछले दिनो मैंने जगदीश भाई से वृद्धाश्रम में वीडियो कॉल पर बात की।उनके माथे पर पट्टी बंधी थी।मैंने चौंककर जगदीश भाई से उनको लगी चोट के बारे में पूछा।मैंने उनसे उनके पास आने की इच्छा भी जाहिर की।पर जगदीश भाई ने नम्रता से मना कर दिया और मुझे आश्वस्त किया कि वो ठीक हैं।

      85 वर्षीय जगदीश भाई अपने एकमात्र बेटे मुन्ना के उन्हें तन्हा छोड़ अमेरिका चले जाने पर अंदर से बिल्कुल टूट गये थे,विशेष रूप से तब तो उनके अंदरुनी दुःख की इंतहा ही हो गयी जब मुन्ना अपनी माँ के अंतिम संस्कार तक में भी शामिल होने नही आया था।तब जगदीश भाई अपने बंगले और फ्लैट को एक ट्रस्ट को दान कर वृद्धआश्रम में रहने आ गये थे। मेरी जब भी उनसे बात होती तो लगता कि उन्हें अकेलेपन से तो छुटकारा मिल गया है, पर बेटे की उपेक्षा का दर्द उन्हें कहीं अंदर कचोटता रहता है।

     उनके माथे पर बंधी पट्टी मुझे विचलित कर रही थी, मेरे द्वारा बार बार पूछने पर जगदीश भाई बोले ,जानते हो ईश्वर है जरूर।मुन्ना के अमेरिका जाने और पत्नी के स्वर्ग सिधारने पर मेरा तो ईश्वर से विश्वास ही उठ गया था।85-86 वर्ष में भगवान से मौत मांगता तो वो भी नही देता,जीवन के लिये सहारा मांगता तो दे दिया ये वृध्दाश्रम।निराश हो गया था मैं।एक दिन रात्रि में अचानक ही मुझे उल्टियां हुई और बाद में मैं बेहोश हो गया।अगले दिन शाम को होश आया तो मेरे पास उसी वृद्धाश्रम में रहने वाला रजनीश बैठा था।यूँ तो मेरी वहाँ सबसे ही बोलचाल थी पर रजनीश से घनिष्ठता हो गयी थी।वो ही रजनीश मेरे पास बैठा मेरे सिर को सहला रहा था।सच कहूं मुझे लग रहा था मैं एक बच्चा हूँ और मेरी माँ मुझे अपने आगोश में लिये है।मैंने भावातिरेक में रजनीश का हाथ दबा लिया।पूरे एक सप्ताह रजनीश ने ही मेरी देखभाल की।वो मुझे मोटा भाई बोलता था,पर मुझे तो लगता मुन्ना अमेरिका से अपने पप्पा के पास लौट आया है।

     जगदीश भाई को मैंने पहले कभी इतना बोलते नही सुना था,खास तौर पर वृद्धाश्रम जाने के बाद।मुझे लग रहा था बर्फ पिघल रही है।जगदीश भाई भी आज मानो अपना पूरा दिल खोल कर रख देना चाहते थे,मुझे इससे खुशी मिल रही थी मैं भी चाहता था वो बोले खूब बोले जिससे उनका मन हल्का हो जाये।

      जगदीश भाई आगे बोले परसो ही रात्रि में मैं लघुशंका को उठा और ब्लड प्रेशर लो हो जाने पर चक्कर आ गया और बाथरूम में गिर जाने के कारण ये माथे में चोट आ गयी।फिर रजनीश ही दौड़ा आया और मुझे उठाया और लगभग डांटते हुए बोला मोटा भाई कितना कहा है, मुझे आवाज दे दिया करो अकेले मत जाया करो, पर आप मानोगे नही तो आपसे बात करना बंद कर दूंगा।

   जगदीश भाई ने रजनीश को झपट कर गले से लगा लिया।रजनीश मेरे मुन्ना तुझे मैं नही खो सकता।

   वृद्धाश्रम में एक पराया रिश्ता अपने मे परिवर्तित हो गया था।85 वर्ष के जगदीश भाई 73-74 वर्ष के रजनीश में अपने मुन्ना को देख रहे थे।

    मैं वीडियो कॉल से बात करते करते इस पराये रिश्ते को नमन कर रहा था और आंखों में आंसू लिये ऊपर आकाश को देख ईश्वर को वंदन भी कर रहा था।

#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे 

           बालेश्वर गुप्ता

                       पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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