वो निरीह सी आँखे – मंगला श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

 Moral Stories in Hindi : दीनानाथ जी अभी अपने ऑफिस पहुँचे ही थे, कि घर से उनकी पत्नी का फोन आ गया।। वह घबराई हुई आवाज में बोली सुनो जल्दी घर आओ, झुमकी को कुछ हो गया है। वह कुछ पूछ पाते इसके पहले ही फोन कट गया ।शायद उनकी पत्नी ने  जो रो रही थी, घबरा कर फोन काट दिया था ।

वह जल्दी से अपना बैग उठा कर बाहर निकले और ड्राइवर को कार निकालने को कहा। जैसे ही ड्रायवर कार लाया वो जल्दी से उसमे बैठे और उसको घर चलने का बोला।

महानगर में एक जगह से दूसरी जगह के फासले बहुत होते है ।

 दीनानाथ जी भी घबरा रहे थे वह आँखे मूंद कर झुमकी के बारे में सोचने लगे।

वह अतीत की गर्त में जा चुके थे।

झुमकी को वह ही लेकर आये थे। दीनानाथ जी दिल्ली के जाने माने ठेकेदार थे।और बड़े बड़े प्रोजेक्ट को ही हाथों में लेते थे। घर मे धन दौलत की कोई कमी नही।दिल्ली में आलीशान घर था।तीन बच्चें दो बेटें व एक बेटी थी। सुंदर छोटा सा परिवार पत्नी वह भी अच्छी समाज से जुड़ी हुई महिला थी ।तीनो बच्चें  पढ़ाई कर रहे थे।

  दो साल पहले जब उनको पटना के एक गाँव मे सड़क बनाने का बहुत बड़ा कॉन्टेक्ट मिला था ।

बड़ा प्रोजेक्ट था चार पांच महीने तक उनको पटना के गांव में ही गेस्ट हाऊस में रुकना पड़ा।एक दिन उनको गेस्ट हाउस में काम करने वाला उनका ध्यान रखने वाला सोहन  बोला साब आज आपको एक जगह ले चलता हूँ ।आपका दिल खुश हो जाएगां।पहले तो वह मना करने वाले थे पर फिर उनका आदमी मन बहक गया। और वह उसके साथ हो लिए।     

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 वैसे वह मन ही मन डर भी रहे थे ।आज तक उन्होंने ऐसा कोई काम नही किया था। जो उनकी अन्तरात्मा को गवारा नही था । गाड़ी गांव की गलियों से गुजरते हुए आखिर गाँव के बिल्कुल  बहारी छोर पर जाकर रुकी।

 चलिए साहब वह पहले थोड़ झिझकते हुए उतरे ,और चारों तरफ देखने लगे।

वह एक दो मंजिला बडा पुराना सा मकान था । बहार दो आदमी जो थोड़े गुंडे टाइप थे खड़े थे।

अरे सोहन तुम आज इतने दिनों बाद इधर कैसे, शायद वह उसको अच्छी तरह पहचानते थे।

अरे आज अपने बड़े साब को लाया हूँ।


अच्छा कौन है ये ? वह शंक की दृष्टि से उनको देखने लगे।

 अरे अपने गांव के बहार जो सड़क बन रही है ना हाइवे की वह काम इनके हाथों में ही है ।   

   अच्छा ठीक है ले जा अंदर।

चलो साब ,एक पल उनका मन वापस लौटने का भी हुआ।पर मन नही माना वो खीचें से अंदर चले गए। शायद उस जगह का प्रभाव या माहौल उनको अंदर ले ही गया।अंदर एक बड़े से  कमरे में एक भारी भरकम मेकअप से लिपी हुई महिला जो बड़ी ही रुआबदार और स्वभाव से ही तेज लग रही थी बैठी थी।

  उसके आसपास भी एक दो गुंडे टाइप आदमी खड़े थे। वह कई लड़कियाँ जिनकी उम्र कोई ज्याद नही लगभग सभी पंद्रह से तीस के बीच की होगी घूम रही थी । अरे सोहन किसको लाये हो इस बार तो बड़े दिनों बाद आये हो।वह उसको पहचानती थी ।

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सोहन खीसें निपोरता चापलूसी भरे अंदाज में बोला अरे शबनम बाई बस ऐसे ही काम ज्यादा था।

ये हमारे बड़े साब है ।जो बाहर सड़क का काम चल रहा है उसको ये ही करवा रहे है।शबनम बाई आज इनको खुश कर दो।

ठीक है तुम जाओ..!अच्छा साब में आता हूं थोड़ी देर में।

कहकर वह चला गया। अरे छोटे…, इन साब को चार नम्बर के कमरे में छोड़ कर आ।

   वह लड़का उनको एक कमरे में छोड़ कर चला गया। वह कमरे में नजर घुमा कर देखने लगे। उनको उस छोटे से कमरें  में एक लड़की डरी सहमी सी खड़ी नजर आयी।बमुश्किल वो पन्द्रह साल सोलह साल की होगी।उनका मन उसको देख एक बार अंदर से कांप सा गया ।अरे ये तो मेरी बेटी की उम्र की है।उनकी आँखों के आगे उनकी बेटी का चेहरा घूम गया।

 वह अपने आप से लज्जित हो गयें ।अरे मैं यह क्या पाप करने जा रहा हूँ। वह जैसे ही आगे बढ़ें वह लड़की और पीछे दुबक गयी…!

मानों अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही हो।

डरो मत में कुछ नही करूंगा। ये कह कर वह वही रुक गए थे ।शायद  उसको भी थोड़ा भरोसा हुआ तो वह आगे आयी।उसको देख वो दया से भर गए थे।उसके चेहरे व हाथ पर ख़रोंच व पिटाई  के निशान थे। शायद किसी की वहशीपन का शिकार हो चुकी थी ।

उसकी मासूम निरीह सी आँखों में एक अजीब सी कशिश थी ।तीखे नैन नक्श और सांवली पर सुंदर,वह बहुत ही मासूम सी लग रही थी।

क्या नाम है तुम्हारा ?

    जी झुमकी वह धीरे से बोली।

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कहाँ रहती हो?

तुम्हारे माता पिता कहाँ है ?

 पास के गाँव मे चाचा के यहाँ रहती थी। पिता नही है मर गए। मां वह छोड़ कर कही चली गयी किसी के साथ पता नही।


चाचा ने थोड़े दिन रखा चाची बहुत मारती थी काम करवाती थी,और एक दिन चाचा यहाँ छोड़ गये मुझकों।

ये लोग भी बहुत मारते है, साब गन्दा काम करवाते है। बोलते है तुम्हारे चाचा को बहुत सारे रुपये दिए है। हम जो कहेंगे वही करना होगा। वह रो रही थी।उनका मन द्रवित हो गया था।

तुम मेरे साथ चलोगी मेरे घर।

वह अविश्वास से उनको देखने लगी थी..। शायद उसको विश्वास नही था किसी पर, उनको देख अब उसको थोड़ा भरोसा होने लगा था ।

वह बोली सच साब आप ले चलोगें मैं आपके घर का सारा काम कर दूँगी।खाना भी बना दूँगी मुझको सब आता है।उन्होंने उसी वक्त एक निर्णय ले लिया था…, कुछ भी हो जाये वह झुमकी को इस दलदल से बाहर निकालेगें। उन्होंने बाहर आकर सोहन से बात की..,और शबनम बाई को दो लाख रुपये देकर झुमकी को अपने साथ दिल्ली ले कर आ गये थे । 

झुमकी उनके घर मे सभी को अच्छी लगी । उनकी पत्नी का तो मानो वो एक सहारा हो गयी थी। वह घर में इस तरह घुलमिल गई मानों वो बरसों से यहीं रह रही हों।

धीरे धीरे  वह घर की बेटी की तरह हो गयी थी।हर जिम्मेदारी को वह बहुत अच्छी तरह समझती थी ,घर के सारे काम वह कर ही लेती थी अब और अच्छी तरह सीख गई थी ।

अब दीनानाथ जी उसका स्कूल में एडमिशन भी करवाने वाले थे।  वह चाहते थे की  वह भी पड़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाये।

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 उनकी तन्द्रा टूटी जब ड्राइवर बोला साब घर आ गया। घर के आगे बहुत भीड़ लगी थी पुलिस की गाड़ी भी खड़ी थी।वह घबरा कर जल्दी से उतरे और जल्दी से घर में चले गये ।हॉल में झुमकी का शव रखा हुआ था।

 पुलिस उनकी पत्नी और बच्चों से  पूछ ताछ कर रही थी ।उनकी पत्नी रो रही थी। उनको देख कर वह बदहवास सी उनके पास आ गई। पुलिस उनके पास आकर उनसे भी पूछताछ करने लगी।थोड़ी देर बाद शव वाहन भी आ गया था।झुमकी के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। दीनानाथ जी वह तो मानों सदमे में ही आ गए थे। पुलिस अनुसार यह आत्महत्या का केस था।आखिर झुमकी ने ऐसा क्यों किया उनको कुछ समझ नही आ रहा था।अगर उसको कुछ समस्या थी तो वह उनको या शोभाजी को बताती।

 झुमकी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गयी थी।  पुलिस ने उनको थाने में बुलाया तो वह और उनकी पत्नी थाने गए । इंस्पेक्टर ने उनको वह रिपोर्ट पढ़ने को दे दी ।

  जैसे ही उन्होंने वो रिपोर्ट पड़ी उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। उस रिपोर्ट के अनुसार झुमकी के साथ रेप हुआ था कई लोगें के द्वारा। अब फिर से जाँच शुरू हुई ।

तब पता चला यह घिनोनी करतूत उनके छोटे बेटे रमन और उसके दोस्तों ने मिलकर की थी। जो सभी बहुत बड़े घराने के लड़के थे ।

उनका गुस्से से बुरा हाल था।पर उनकी पत्नी ने अपने घर की इज्ज़त व मान मर्यादा की दुहाई देकर उनको चुप करवा दिया था। रमन के सारे दोस्तों के माता पिता और उनकी पत्नी ने बहुत से रुपये ले देकर केस वही बन्द करवा दिया था ।


वह कुछ भी नही बोल पाये घर की इज्जत की खातिर।

 आज झुमकी की मौत को एक महीना हो चुका था।घर मे सभी उस घटना को भूल भी चुके थे ।बस दीनानाथ जी को छोड़ कर। उनकी आँखों से मानो नींद ही उड़ चुकी थी।

अब उनको हर वक्त बस झुमकी की वह मासूम निरीह सी आँखे ही दिखाई देती थी ।वह जो मानो उनको देख रही हो औऱ पुकार रही हो।

उनसे कह रही हो देखो साब आपने उस दलदल से मुझको निकाल लिया था। वहाँ के हैवानों से तो मुझकों बचा लिया था…।

पर आपके अपने घर के हैवानों से मुझकों नही बचा पाएं।

और तो और आप अपनी व अपने घर की इज्जत बचाने की खातिर चुप बैठ गये मुझकों    इंसाफ तक नही दिला पाये।

 वह अक्सर चौक कर उठकर  बैठ जाते …!

उनको लगता कि झुमकी उनसे इंसाफ की मांग कर रही हैं…!  आज उन्होंने एक कड़ा निर्णय ले ही लिया.. ..कि अब चाहे कुछ भी हो जाएं वह ना,अपने घर की बदनामी से डरेंगे…और ना ही अपने बेटे व उसके दोस्तों के जेल जाने से डरेंगे।

कल ही थाने पर जाकर झुमकी के केस को री ओपन करवाएगें। व उसके सारें दोषियों को सजा दिलवाकर ही चेन की सांस लेंगे। वह मासूम झुमकी को न्याय दिलवाएंगे ।आज यह सोच कर उनका मन जैसे हल्का हो गया था। आज उनको इतने दिनों बाद नींद आ रही थी। सकुन भरी नींद ।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक कहानी

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