बात उन दिनों की है जब हमारी नई नई शादी हुई थी,होता है न अक्सर ने नवेली दुल्हन को लापरवाह समझा जाता है मुझे भी समझा जाता था।
मेरे पति श्रावस्ती जिले में कार्यरत थे मैं भी उन्हीं के साथ रहती थी , कुछ कारणों से हमें अपने गांव चंदौली जिले आना पड़ा था , कुछ दिनों के बाद हमारी वापसी थी।
हमलोग अपने गांव से श्रावस्ती के लिए निकल चुके थे ,सारा पैसा इन्होंने अपने पास रखा था ,मैंने कहा कुछ मुझे दे दीजिए मैं रख लेती हूं
रास्ते की बात है अगर कुछ होनी अनहोनी होगी तो कुछ पैसे मेरे पास भी रहेंगे पर उन्होंने मुझे लापरवाह समझ कर मेरी बात नहीं मानी।
हमलोग मुग़ल सराय स्टेशन पर पहुंचे और ये टिकट लेने चले गए ,कुछ देर बाद हमारी ट्रेन आई और हम अयोध्या तक के लिए सफर पे निकल गए , उसके बाद हमें श्रावस्ती के लिए बस लेनी थी जो हम बहराइच पहुंचाती फिर हमें भिनगा के लिए बस लेनी थी यानी कुल मिला कर हमें आगे दो बस और पकड़नी थी।
लगभग हमलोग एक या दो घंटे का सफर तय किए होंगे कि एक स्टेशन आने पे मेरे पतिदेव कुछ खाने पीने का सामान लेने नीचे उतरे, वापस जब आए तो उनके चेहरे पे हवाइयां उड़ी थी , मेरा जी घबरा गया मैंने पूछा क्या हुआ तो उन्होंने कहा लगता है कोई मेरा जेब मार ले गया
अब मुझे काटो तो खून नहीं सारे पैसे चले गए ….., मेरे पास बस कुछ रेज़गारी ही थी अठन्नी और रुपए की….., हम लोग वापसी के लिए कोई ट्रेन या बस भी नहीं ले सकते थे , अब हम क्या करेंगे अभी रात भर का सफर था । हम दूसरे दिन एक या दो बजे अपने निवास स्थान पे पहुंचते जल्दी जल्दी में साथ में कुछ खाने को भी नहीं लाए थे …., मेरी हालत खराब हो गई मुझे इन पे बहुत गुस्सा आया कि क्यों नहीं इन्होंने कुछ पैसे मुझे रखने को दिए…., हम जान रहे थे कि ये जेब टिकट लेते वक्त ही कटी होगी ।
खैर बिना कुछ खाए पिए हमने अयोध्या तक का सफर तय किया , रात हो गई थी लगभग दस बज रहे थे हमलोग ट्रेन छोड़ बस स्टॉप पे बस का इंतजार करने लगे जो लगभग दो से चार बजे के बीच आती … , कोई और दिन रहता था तो बस के इंतजार से पहले हमलोग पास के ढाबे से कुछ कहा लेते … पर आज…
एक तो भूख उपर से दिसंबर का महीना और पैसा विहीन होने से में बुरी तरह कांप रही थी और रो भी रही थी । कुछ सहयात्रियों ने हम देखा तो जाएजा लेना चाहा …।
मेरे पति थोड़े स्वाभिमानी है, हूं तो मैं भी मगर मैंने पतिदेव से कहा इन लोगो से वस्तुस्थिति बताएं पतिदेव झिझक रहे थे पर उनलोगो की अजीब नज़रों को जवाब तो देना ही था जो मुझ नवविवाहिता को रोते देख उनके मन में आ रहा था । पति देव ने सारी स्थिति बताई अपना पद , अपना निवास स्थान … इस उम्मीद में कि बहुत से सहयात्री थे जो मदद कर सकते थे , उन्होंने मेरे कहने पे अपना सम्मान गिरा के खुल के मदद भी मांगी पर सब हमे अजीब नज़रों से घूरते ही रह गए ,किसी ने मदद नहीं की।
रात दो बजे लगभग बस आई , रास्ता सुनसान था , ठंड जोरों पे थी…, सिर्फ कुछ यात्रीगण ही बचे थे जो बहराइच तक या कुछ लोग भिनगा भी जाने वाले थे , यदि वे लोग भी चले जाते तो ठंड की रात में अनजान सुनसान जगह पे हम दोनों अकेले ही रह जाते तब खतरा और ज्यादा हो जाता … ।
इन्होंने बस के ड्राईवर से बात की कि किसी तरह वह हमें बहराइच पहुंचा दे हमारे कुछ दोस्त वहां रहते हैं हम उनसे सहायता ले किराया दे देंगे । ड्राईवर तैयार तो ही गया पर बदले में उसने इनकी घड़ी और अंगूठी रख ली ये कह कर कि रास्ते में चेकिंग होगी तो मैं बिना टिकट यात्री बैठाने के जुर्म में पकड़ा न जाऊं , हमलोग मरते क्या न करते वाली स्थिति में थे।
सुबह चार से पांच के बीच बस हमें बहराइच ले आई हमने कुछ चैन कि सांस ली , सभी यात्री उतर रहे थे और हमारी हालत को एंजॉय कर रहे थे, मुझे लग रहा था जैसे इंसानियत खत्म हो गई हो …, हम दोनों का किराया मात्र ऐसी रुपए था जिसे चाहे तो कोई भी सहयात्री दे सकता था …, एक से एक मानिंद लोग थे …, यदि हमलोग उस स्थान पे रहते तो किसी को परेशान देख जरूर मदद कर बैठते बदले में हजारों की घड़ी अंगूठी गिरवी रखने नहीं देते …. बस यही बात दिमाग में आ रही थी
अब आगे तो और भी नीच मानव व्यवहार देखने को मिला… , ड्राईवर और कंडेक्टर के मन में पाप आने लगा , मेरे पतिदेव ने कहा कंडिक्टर मेरे साथ चले यहीं पास में मेरे मित्र का घर है में पैसे दिला देता हूं ( उस टाइम मोबाइल नहीं हुआ करता था कि झट से फोन गया और मित्र हाज़िर) पर दोनों के मन में बेईमानी थी वे घड़ी और अंगूठी हड़प जाना चाहते थे यदि वे चाहते तो हमें लौटा सकते थे क्योंकि रास्ते में कोई चेकिंग नहीं हुई थी।
ड्राईवर नहीं माना उसने कहा अपनी वाइफ को यहीं छोड़ दीजिए और आप जाइए ले आइए अभी दस मिनट में बस निकलेगी उस समय अंधेरे और ठंड के कारण कोई साधन नहीं दिख रहा था मित्र के यहां जाने के लिए …. सो साधन खोज के जाने आने में चालीस या पैंतालीस मिनट जरूर लगता …..
,हम निराश हो गए थे कि हमारे जेवर चले जाएंगे वो मेरे पापा की निशानी थी, मैं जोर जोर से रोने लगी और डरने लगी कि यदि ये इस बियाबान बस स्टैंड पर मुझे छोड़ कर दोस्त के यहां चले जाएंगे मदद लेने तो मेरे साथ कुछ भी हो सकता था वैसे भी ड्राईवर और खलासी कि नजर ठीक नहीं लग रही थी, हमारी बुद्धि काम ही नहीं कर रही थी अस्सी रुपए के बदले हज़ारों का जेवर…..। इन्होंने समझदारी का परिचय दिया और भले ही जेवर चल जाए ये मुझे छोड़ के नहीं गए।
ठंड और दुख से मेरी हालत खराब हो रही थी , पास कहीं थोड़ी सी आग जल रही थी इन्होंने मुझे वहीं बैठाया अब तक इनके आंख में भी आंसू आ गए थे कल से हमने कुछ भी नहीं खाया था भूख के मारे हमारी हालत और खराब थी….. ,मैं लगातार रोए जा रही थी इक्का दुक्का यात्री जो साथ आए थे और भिनगा भी जाने वाले थे हमारा तमाशा देख रहे थे …, बस ड्राईवर भी बस में सोया था अब बस दस मिनट में नहीं खुली वो भी झूठ ही बोल रहा था
मैंने उस वक्त अपने पति को बहुत ही लाचार पाया वो लगभग सबसे मिन्नते कर रहे थे कि कोई अस्सी रुपए दे दे तो वो गहने छुड़ा लें पर इंसानियत तो जैसे मर चुकी थी… ,
निराश हो के वो मेरे पास आए और मुझे देख मुंह फेर लिया .. अब भी मैं रोए जा रही थी , कहा गया है न कि जिसका कोई नहीं उसका ईश्वर है ऐसा ही कुछ हुआ हमारे साथ……, एक लड़का लगभग तीस बत्तीस साल का मोटर बाइक से वहां किसी यात्री को लेने आया अपने रिश्तेदार को न आया देख अगली बस का इंतजार करने के लिए और ठंड की वज़ह से हमारे पास आ कर आग सेंकने लगा,
मेरी स्थिति देख कर वह मेरे पति से पूछ बैठा ” मैडम की तबीयत ठीक नहीं है क्या” ,मेरे पति जो सबसे मदद मांग कर थक चुके थे लड़के की बातों का जवाब नहीं दिए क्यूंकि वो मदद पाने की उम्मीद खो चुके थे । जब उसने पुनःजोर दे के पूछा तो मैंने चिढ़ के कहा जैसे सबको बताया हैं आपने इन्हें भी बता दीजिए…, बाकी यात्री मुंह ऐसे छुपा रहे थे कि उन्होंने कोई अपराध किया हो…, सब के सब वहीं आग ताप रहे थे ।
पतिदेव भी सोचे एकबार इसे भी बता कर देख लेते हैं उन्होंने जैसे ही बताया कि हमारी जेब कट चुकी है और हमें अभी भिनगा जाना ही है किसी तरह घड़ी अंगुठी गिरवी रख अयोध्या से बहराइच आएं हैं वह सब समझ गया तुरंत सौ का नोट आगे बढ़ा रिक्वेस्ट के साथ कहा भैया तुरंत अपनी घड़ी और अंगूठी ले आइए उसका किराया देकर बचे बीस रुपए रख लीजिएगा भिनगा के किराया के लिए …,
हमें तो जैसे भगवान मिल गए इन्होंने तुरंत खलासी और ड्राईवर के मुंह पे किराया दे मारा और अपना सामान वापस लिया…, वो देना नहीं चाह रहा था…, मेरे पति उससे लड़ गए यहां पे भी उस लड़के ने हमारी मदद की , लोकल होने के नाते ड्राईवर को धमकी दे हमारा सामान दिलाया , तब तक होटल खुल चुके थे
भोर की पहर आ चुकी थी ,फिर उसने होटल वाले से कहकर हमें जलपान भी कराया हम भूख से बेहाल थे हमारी जान में जान आई , इतना ही नहीं उसने यूं सहयात्रियों के इस नीच कृत्य के लिए खूब लताड़ा भी जो हमारी स्थिति दिखते हुए भी चैन से सफर कर रहे थे और खा – पी रहे थे ।
हमदोनों ने तहेदिल से उसे शुक्रिया कहा और जल्दी ही उसके पैसे लौटाने को भी कहा इस पर उसने कहा दरअसल वह ठंड की वजह से आना नहीं चाह रहा था फिर उसे लगा कि उसके आगंतुक संबंधी ठंड से बस स्टैंड पे परेशान होते होंगे उस चलना चाहिए उन्हें रिसीव करने और यहां आ के पता चला कि वे आखिरी बस से भी नहीं आए .. ये तो भगवान का शुक्रिया अदा कीजिए कि मुझे यहां उसने वास्तव में आपकी मदद के लिए हूं भेजा था।
तब हमें पता चला कि ये बस हूं आखिरी बस थी अब ये यहां से सुबह के दस बजे के लगभग खुलेगी …, और ड्राईवर के कमीनेपन का पता चला ।
हम आज भी महेश नाम के उस लड़के के शुक्रगुजार हैं जिसने हमें विपत्ति से निकाला वास्तव में इस तरह के लोगों की इंसानियत के दम पे ही धरती भी बची है….,हम उस टाइम उस्का पैसा दे नहीं पाए …, उसके बाद मेरे पति की नियुक्ति बनारस हों गई फिर हमारा मिलना नहीं हो पाया
पर मनीऑर्डर द्वारा हमने उनका पैसा वापस कर दिया लेकिन उन्होंने जो ऋण हम पर डाला है उसे हम कभी चुका नहीं पाएंगे ।उससे मुक्त होने का बस यही तरीका है कि हम हमेशा इंसानियत का परिचय दें बस…।
इस घटना के बाद मेरे पति देव भी सफर के दौरान मुझे भी कुछ पैसे रखने के लिए देने लगे ।
हर घटना बड़ी सीख दे जाती है।
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संस्मरण —– कीर्ति रश्मि नन्द (वाराणसी)०३/०८/२२
छायाचित्र:- आभार गुगल