” मयंक मेरी ना का मतलब सिर्फ ना ही है । मैं यहां अफेयर्स के लिए नहीं आई हूं मुझे पढ़ लिख कर अपने मां बाप का नाम रोशन करना है अपने गांव के लोगों को बताना है कि बेटियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं!” श्रेया ने अपने कॉलेज के दोस्त मयंक से कहा जो उसे आज प्रपोज कर रहा था।
” श्रेया मेरा प्रपोजल स्वीकार करने का ये मतलब तो नहीं कि हम कुछ गलत करेंगे या मैं तुम्हें शादी करने को बोल रहा हूं!” मयंक जैसे हार नहीं मानना चाहता हो।
” मयंक मैने सिर्फ तुम्हे एक दोस्त की तरह देखा है इससे ज्यादा कुछ नहीं मैं बहुत ही पिछड़े इलाके से हूं मां पापा ने कैसे कैसे करके मुझे पढ़ने भेजा है!” श्रेया बोली।
” श्रेया तुम मुझे दोस्त मानती हो मैं बस दोस्त से थोड़ा आगे बढ़ रहा तो इसमें हर्ज क्या है!” मयंक बोला।
” हर्ज है मयंक ये दोस्त से ज्यादा का रिश्ता मुझे मेरे मकसद से भटका सकता और मेरे मकसद से भटकने का मतलब मेरे मां पापा के सपने उनका विश्वास टूटना है जो मेरे लिए मौत के बराबर है … तुम एक अमीर घर के लड़के हो तुम्हे बहुत सी लड़कियां मिलेंगी यहां प्लीज़ मुझे माफ़ करो!” श्रेया ने हाथ जोड़ कर कहा।
” श्रेया तुम मुझे गलत समझ रही हो मैं भी कोई गलत लड़का नहीं हूं तुम मुझे सबसे अलग लगी जहां सब लड़कियों को सजना संवरना मस्ती पसंद तुम सिर्फ पढ़ाई में जुटी रहती हो तुम्हारी सादगी तुम्हारा व्यवहार मुझे मजबूर कर रहा था तुम्हे प्रपोज करने को!” मयंक ने सफाई दी।
” शुक्रिया मयंक तुमने मेरी बात समझी पर ये सच है प्यार महोब्बत के चक्कर में मैं नहीं पड़ सकती!” श्रेया बोली।
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” श्रेया क्या हम अभी भी दोस्त बने रह सकते क्योंकि जबसे तुमसे मिला हूं मैं भी जिम्मेदार बन गया हूं पढ़ाई को ले सीरियस भी । रही दोस्ती से आगे की बात उसके लिए मैं इंतजार करूंगा!” मयंक बोला।
” दोस्त तो हम है ही मयंक बस अब इस दोस्ती को कायम रखना तुम्हारे हाथ है!” श्रेया ने कहा और वहां से चली गई।
श्रेया एक गरीब परिवार की महत्वकांक्षी लड़की है जिसका मकसद है पढ़ लिख कर अपने परिवार के दिन बदलना उसके गांव में जहां लड़कियों को गांव के बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी क्योकि वहाँ सबको लगता था बेटियों के बाहर जा पढ़ने पर घर की इज्जत पर आंच आती है । पर उसके पिता ने उसे शहर पढ़ने भेजा था क्योंकि उसने इंटर में अपने गांव के साथ साथ पूरे जिले में सबसे ज्यादा नंबर ला गांव का नाम रोशन किया था और उसकी इसी उपलब्धि को देखते हुए उसे आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिली थी।
“अरे वो तुझे टका सा जवाब देकर चली गई और तूने कुछ नहीं बोला!” श्रेया के जाने के बाद मयंक का दोस्त रजत बोला।
” क्या बोलता मैं उसे ये उसकी मर्जी है वो मेरा प्रपोज स्वीकारे या ना स्वीकारे।” मयंक बोला।
” तुझे पता नहीं हैं ये लड़कियां ना भाव खाती है इन्हे प्रपोज कर दो तो। इन्हे तो सबक सिखाना चाहिए!” रजत गुस्से में बोला।
” वो किसी के घर की इज्जत है राजत और किस किस को सबक सिखाएगा तू तुझे पैदा करने वाली भी कभी लड़की थी जो तुझे राखी बांधती है वो भी लड़की है जो तुझसे शादी करके आएगी वो भी लड़की होगी और कल को तू जिसका बाप बनेगा वो भी लड़की होगी। अरे श्रेया को इन सबमें नहीं पड़ना तो मैं उसे सबक सिखाऊं पर कैसे एसिड फेंकू या जलील करूं उसे ये है मर्दानगी… ऐसी मर्दानगी पर मैं थूकता हूं जिसमें मैं अपनी नजर में गिर जाऊं!” मयंक गुस्से में बोला।
“मुझे माफ़ कर दे यार मैने तो ये सोचा ही नही!” रजत शर्मिंदा हो बोला।
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” मेरे भाई लड़की कोई भी हो अपने घर की इज्ज़त होती और जैसे हमे हक है अपनी मर्जी से जीने का इन्हे भी हैं । मेरी नजर में तो आज श्रेया के लिए इज्ज़त और बढ़ गई है जो लड़की अपने मां बाप के सपनों को इतना महत्व देती वो लड़की सच में लाखों में एक है !” मयंक के यह बोलते ही वहां उपस्थित सभी छात्र छात्रा ताली बजाने लगे।
दोस्तों जैसे हर लड़की सही हो ये ज़रूरी नहीं वैसे ही हर लड़का गलत हो ये भी जरूरी नहीं । प्यार करना गलत नहीं पर एक तरफा प्यार में किसी लड़की के साथ गलत करना गलत है ।
एक औरत और एक बेटी की मां होने के नाते मैं मयंक जैसी सोच के लड़कों को सलाम करती हूँ ऐसे ही लड़के है जो अपने घर के साथ साथ दूसरों के घर की इज्जत को दागदार नही होने देते वरना तो आजकल प्यार भी एक छलावा बन चुका है ।
शुक्रिया
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल