एक लड़की के लिए शादी के बाद यदि हमसफ़र उसकी हां में हां मिलाने वाला मिल जाए तो जिंदगी में मजे ही मजे
पर मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखती क्योंकि मेरे साथ बिलकुल उल्टा है
जहां मैं उत्तर तो मेरे हमसफर दक्षिण में जाना पसंद करते हैं।
और मेरी जिंदगी में सजा नही मजा ही मजा है
चलिए सुनाती हूं अपनी कहानी अपनी जुबानी
पहले अपने हमसफर की हर सलाह पर नाराज होती , सोचती थी पता नही क्या चाहते हैं मुझसे, और एक आज का दिन जब उनकी हर बात से इत्तेफाक रखती हूं कि वो हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है इसलिए मुझे सीखते रहने पर ज़ोर देते रहते हैं।
उन्ही की बदौलत मैं आज कुछ नया सीखते रहने के लिए प्रयासरत रहती हूं और असफल होने से नही घबराती।
कहां मैं डरी सहमी सी लड़की जो गिरने के डर से साइकिल तक चलाना नहीं सीख पाई और आज मेरा खुद का ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास वो भी टू व्हीलर और फोर व्हीलर दोनो का
कितनी खुशी होती है मुझे जब उस दिन से आज तक का सफर एक ही पल में जी लेती हूं और इसका श्रेय जाता है मेरे हमसफर को
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मैं हूं वाणी अपने हमसफर मधुर की वाणी
जी हां भगवान ने भी हमारी जोड़ी हट कर बनाई है क्योंकि हमारे नाम जैसे एक दूसरे के पूरक हैं (मधुर _वाणी)वहीं एक हमसफर के बिना दूसरा अधूरा है चाहे प्यार से ज्यादा हमारी तकरार होती हो पर एक के बिना दूसरे का सफ़र अधूरा है
बात मेरे बचपन से शुरू करती हूं जब मैं एक कम बोलने वाली डरपोक किस्म की लड़की हुआ करती थी। खून की एक बूंद देखकर भी घबरा जाती थी। गिरने से इतना डरती थी कि आज तक साइकिल चलाना नहीं सीख पाई क्योंकि सब बोलते थे जब तक साइकिल से गिरेगी नही तब तक सीखेगी नही इसलिए कभी कोशिश ही नहीं की
और सच बताऊं तो कभी जरूरत भी महसूस नहीं हुई। छोटे सा कस्बा था मेरा जहां पूरी दुनिया पैदल , ग्यारह नंबर की गाड़ी से ही नाप आते थे। स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सब मेरा साइकिल सीखे बिना ही पूरा हो गया तो फिर कभी सीखी ही नही। और फिर शादी हो गई तो ब्याह कर ससुराल आ गई और मेरे सीखने पर पूर्णविराम लग गया पर
शादी के दो साल बाद…..
अचानक पतिदेव बोले ” तुम्हे स्कूटी दिला रहा हूं, चलाना सीख जाओगी तो अच्छा रहेगा । तुम तो शुरू से छोटे गांव में पली बढ़ी हो लेकिन अब शहर में रहती हो तो जरूरत पड़ती है। मैने ऑर्डर करवा दी है एक दो दिनों में आ जाएगी। तुम तैयार रहना .. मैं डेली सुबह ऑफिस जाने से पहले और शाम को ऑफिस से आने के बाद तुम्हे सिखाऊंगा।(असल में मेरे पतिदेव को कुछ नया करते रहना अच्छा लगता है)
अरे पर मुझे तो साइकिल चलानी भी नही आती फिर स्कूटी कैसे? और अभी छः महीने ही तो हुए हैं सीजेरियन डिलीवरी के …… अभी तो दर्द भी बंद नहीं हुआ शरीर का
और फिर गुड़िया भी कितनी छोटी है…. उसकी देखभाल, घर का काम… कहां टाइम मिलेगा मुझे सीखने का
कितने ही कारण ढूंढ लिए मैने नही सीखने के…..
अरे ये बहाने तो तुम्हारे जिंदगी भर चलते ही रहेंगे , असल में तुम सीखना ही नहीं चाहती हो ये कहो ना…..
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हां सच कहूं तो मुझे गिरने से बहुत डर लगता है और खून देखने से तो उससे भी ज्यादा। और जरूरत ही क्या है सीखने की। आप हो तो साथ में मेरे …
और मैं गाना गाने लगती…
किसी राह में किसी मोड़ पर कहीं चल ना देना तू छोड़कर
मेरे हमसफर … मेरे हमसफ़र
तुम अब बटरिंग मत करो
मैं तुम्हारी रग रग से वाकिफ हूं । तुम्हे काम नहीं करने के दस बहाने आते होंगे पर मैं भी कोई कच्चा खिलाड़ी नही हूं ।
तुम्हे क्या कब करना है ये मुझे अच्छे से पता है इसलिए जो बोल रहा हूं वो ध्यान से सुनो
तुम्हे पता हैं न मेरा काम ऐसा है कि दो चार दिन बाहर रहना पड़े, घर में बूढ़े मां बाप हैं और बच्चों का साथ ….तो कम से कम इतना आत्मनिर्भर तो हो जाओ कि छोटे मोटे काम के लिए किसी का मुंह ताकना नही पड़े।
और अब मुझे कुछ नही सुनना, तुम चाहोगी तो सब सीख जाओगी।
मेरे लाख मना करने पर भी आखिरकार स्कूटी आ ही गई। पतिदेव ने चार दिन बैलेंस बनाना सिखा दिया और फिर छोड़ दिया ये कहकर कि अब अपने आप सीख लो
अपने आप …. ये क्या बोल रहे हैं आप। अपने आप भला कैसे सीख पाऊंगी मैं। पर वो तो कह कर कल्टी हो लिए और मैं मन ही मन उन्हे बुरा भला बोलती, कभी गुस्सा करती
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और मन ही मन बोलती (नाम तो मधुर जरूर है पर काम कितने कड़वे करते हैं)पर सीखना भी चाहती थी तो गिरते पड़ते सीख ही गई वो बात अलग थी कि कितने बार मेरे पैरो और हाथों में नील पड़ गई, चोट, खरोंच आई पर मैं डगमगाई नही और अपने हमसफ़र की उम्मीदों पर खरी उतरी।
कितनी खुश हुई थी जब मैने पति को पीछे बिठाकर पहली बार स्कूटी चलाई।और सच बताऊं तो मैने हनुमान जी का प्रसाद भी बोला था कि मैं सीख गई तो इक्यावन रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगी।(क्योंकि अपने हमसफ़र को दिखाना जो था)
पतिदेव को पीछे बिठाकर मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाया और बहुत आभार व्यक्त किया कि मेरे हाथ पैर बिना टूटे मैं चलाना सीख गई। और कुछ दिनो बाद मेरा खुद का ड्राइविंग लाइसेंस भी आ गया मेरे पास।
और हमसफ़र की जिद ने मेरी जिंदगी बहुत हद तक बदल दी। क्योंकि कुछ सालों बाद पति का ट्रांसफर जयपुर हो गया और फिर मेरा स्कूटी चलाना सीखना सार्थक हो गया क्योंकि बच्चों को स्कूल लाना, ले जाना, डॉक्टर, बाजार का काम कितना आसान हो गया मेरे लिए। मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ गया था और चलाते चलाते परफेक्शन भी आ गया ।पतिदेव को सबसे बड़ा सुख मिला कि मैने किसी काम के लिए उनके पीछे पड़ना छोड़ दिया।
अब वो भी खुश और मैं भी खुश
एक वह दिन था और एक यह दिन है जब मैने उनसे कभी मुझे सब्जी लाकर देने को नही बोला क्योंकि अब मैं ही अपनी स्कूटी उठाती हूं और चल देती हूं अपने काम निपटाने चाहे वो घर के काम हो या बच्चों से संबंधित कोई काम, चाहे मुझे पार्लर जाना हो या किसी दोस्त के घर….
फिर पति की प्रेरणा से ही मैं रसोई में निपुण हो गई।
जिसको रसोई की एबीसी भी नही आती थी वो अब खाना बनाने में माहिर हो गई। एक वो दिन था जब लोग मेरे हाथों का बनाया खाना, मन से खाना नही चाहते थे और एक आज का दिन जब सब मेरे खाने की प्रशंसा करते थकते नहीं है। उस दिन पतिदेव पर बहुत नाराज हुई जब वो बोले
“क्या रोज़ वही सब्जियां खिला देती हो, कभी तो कुछ अलग ट्राइ किया करो। इतने चैनल है यू ट्यूब पर कुछ सीखा करो उनसे देखकर। पूरे दिन फोन पर टाइम पास करती हो पर ये नही कि कुछ ढंग का सीख ले”
तो क्या मैं ढंग का खाना नही बनाती? सुबह से शाम तक लगी रहती हूं सबकी देखभाल में फिर भी आपको मुझसे शिकायत रहती है। अब क्या ही करूं जो आप मेरी कीमत समझ लो और कहते कहते रोने लगी।
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अरे तुमको कुछ भी अच्छा बोलो तुम्हे उल्टा क्यों लगता है?मैं तो इसलिए कह रहा हूं ताकि तुम कुछ सीखती रहो और समय का सदुपयोग करो। पर तुम्हे हमेशा ऐसे ही रहना है तो ये सही…लगता है तुम कभी आगे बढ़ना चाहती ही नही हो
उस समय तो लगा जैसे पतिदेव मुझसे बस कमियां निकालते हैं, कभी मेरी तारीफ नही करते पर जब शांति से सोचा तो काफी हद तक मुझे उनकी बात सही लगी क्योंकि कुछ नया सीखते रहने से आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है साथ में जब कोई तारीफ करता है तो जो खुशी मिलती है वो महसूस करना कितना सुखदाई लगता है। है ना…
बस तब से अब तक नई नई रेसिपी बनाती रहती हूं और बाहर जाकर खाने का खर्चा बचाती हूं वो अलग
वो कहते हैं ना पति के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है तो बस अब मैं पतिदेव की हर फरमाइश पूरी करती हूं और उनके दिल पर राज़ करती हु ।
एक वह दिन था जब हम पति पत्नी एक दूसरे को रोकना टोकना पसंद नही करते थे कोई कुछ समझाना भी चाहता था तो उल्टा मतलब निकालते थे और एक यह दिन है जब हर काम में एक दूसरे की राय लेना जरूरी समझते है। नोंक झोंक और तकरार पहले भी होती थी और अब भी होती है पर एक दूसरे से प्यार बढ़ना भी तो इसी तकरार का परिणाम है। जितना लड़ते झगड़ते हैं उतना ही एक दूसरे के करीब आते है। और अब तो आलम ये है कि एक दूसरे की मन की बात बिना बताए ही समझ जाते है।
पहले खुद को प्राथमिकता देकर खुद के मूड के हिसाब से काम करते थे पर अब खुद से पहले अपने जीवन साथी, अपने हमसफर के बारे में सोचते हैं और उसके मूड के हिसाब से काम करते हैं ताकि वो खुश तो मैं भी खुश
अब मधुर चाहे कितनी भी कड़वी वाणी बोलें पर वो इस वाणी को मधुर ही लगती है(आप समझ ही गए होंगे ना मैं क्या कहना चाहती हूं )
दोस्तों मेरा ये ही कहना है कि किसी एक दिन की बात को लेकर बैठे रहने से कोई फायदा नही । अपने हमसफर के साथ नोंक झोंक चलते रहना तो गृहस्थी का हिस्सा है। किसी पुरानी बात को लेकर आरोप प्रत्यारोप करने से बेहतर है एक दूसरे की सलाह को जीवन में उतारना
हर दिन नया दिन होता है इसलिए हर रोज कुछ नया करते रहना चाहिए और समय और जरूरत के हिसाब से खुद में बदलाव लाते रहना चाहिए।
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परिवर्तन ही संसार का नियम है । जो नए अनुभवों का स्वागत नही करता वो अपनी ऊर्जा गवां देता है। इसलिए नए अनुभव लेते रहिए और उनसे कुछ सीखते रहिए फिर देखिए गृहस्थी हमसफर के साथ सजा नही मजा लगने लगेगी।
अपने हमसफर के साथ आपके अनुभव कैसे हैं बताना नही भूलें
धन्यवाद
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन
#हमसफर