वो कामवाली इस घर की सदस्य भी हैं।- अर्चना खंडेलवाल : hindi Stories

hindi Stories : ये क्या आज कामवाली कांता नहीं आई, पूरा घर गंदा पड़ा था, झाड़ू-पोछा और बर्तन देखकर रेणु का सिर चकरा रहा था, ये सब उसे करना पड़ेगा, घर के बाकी काम करे या इन कामों में लगे, रेणु सोच ही रही थी कि तभी घंटी बजी, और ऐसी लगातार घंटी कांता ही बजाती है, वो समझ गई थी बाहर उसकी कामवाली ही है, उसने फटाफट दरवाजा खोला और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।

ओहहहह!! तू आ गई, आज तो  बड़ी देर लगा दी, मुझे तो लगा आज आयेगी ही नहीं।

अरे!! रेणु दीदी, कैसे नहीं आती? वो तो पांचवें मंजिल की मैमसाब ने रोक लिया था, उनके हाथ पैरों में बहुत दर्द था तो मैंने मालिश कर दी , अब तेल से सने हाथों से आपको फोन नहीं किया और ना ही आपका फोन उठा पाई।

तू तो मुफ्त में सबकी सेवा करती रहा कर, और भी तो है, हर काम के पैसे बना लेती है और तू  अलग से काम करके भी पैसा नही लेती है।

रेणु दीदी, पैसे तो मै भी कमा सकती हूं पर व्यवहार भी तो कोई चीज होती है, व्यवहार और रिशते भी जीवन की पूंजी होते हैं, बस वहीं कमाकर रखती हूं, और पैसे तो आप सब काम के बदले दे ही देते हो, फिर इतना पैसा लेकर रखूंगी भी कहां, मेरी झोपडी तो छोटी सी है और खुद ही खुद की बात पर हंसने लगती है।

अच्छा बहुत हो गया, अब जल्दी से चाय बनानी है तो तू पहले बर्तनों को साफ कर दें, आज रविवार अलग है, अभी तो सभी सोये पड़े हैं, उठते ही हाहाकार मचा देंगे।

सबको अपनी पसंद का नाश्ता चाहिए।

कांता रेणु की बात सुन रही थी, और अपना काम भी कर रही थी, फिर बोलती है, आपको पता है सातवें मंजिल वाली मैमसाब मां बनने वाली हैं।

मुझे तो नहीं पता, पर ये सब तुझे कैसे पता चल जाता है, रेणु ने पूछा।

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वो मै जगह-जगह काम करती हूं तो सब खबर रखती हूं, इसमें कौनसी बड़ी बात है, कांता से कोई बात छुप नहीं सकती है और वो अपना काम भी निपटाती रहती है।

अच्छा चल, ये बातें छोड़,पहले चाय पी ले और साथ में ये पकौड़े भी खाले,आज नाश्ते में यही बनाया है।

लेकिन दीदी आप मुझे सबसे पहले पकौड़े क्यों दे रही है? अभी तो किसी ने भी नहीं खायें, बाद में बचे तो दे देना।

देख, अभी कोई उठा ही नहीं है, गरमागरम बन रहे है तो हम दोनों तो खा लेते हैं, मुझसे तो पकौड़े बनने के बाद सब्र नहीं होता है और ये क्या कहा कि बाद में बचे तो दे देना, मैंने तो तेरे लिए भी बनाए हैं, और दोनों पकौड़े खाने लगी।

दीदी, अब चलती हूं, घर जाना है, छोटे बच्चे हैं, आज तो मरद भी घर पर है,जाकर खाना -पीना भी बनाना है।

ये बोलकर कांता चली गई। रेणु भी अपने बाकी काम करने में लग गई।

अगले दिन बच्चे स्कूल चले गए और सुमित ऑफिस चले गए, रोज की तरह रेणु कांता का इंतजार करने लगी पर कांता काफी देर तक नहीं आई, फिर उसने पांचवी मंजिल पर रहने वाली वर्मा आंटी और सातवीं मंजिल पर रहने वाली सीमा भाभी से पूछा तो दोनो ने मना कर दिया कि आज तो सुबह से कांता नहीं आई है।

हम फोन भी कर रहे हैं पर वो फोन नहीं उठा रही है, अचानक कांता के जाने से सबका काम रूक सा गया था, फोन की घंटी दोपहर तक तो गई थी, पर शाम होते-होते फोन स्विच ऑफ आने लगा था।

अब तो रेणु को और भी चिंता होने लगी, कम से कम कहकर जाना चाहिए था, कोई परेशानी हो तो बताना चाहिए था, ये क्या बात हुई कि फोन भी नहीं उठा रही है, रेणु की चिंता देखकर सुमित हंसने लगा।

अरे!! कामवाली बाई की इतनी फ्रिक क्यों हो रही है, दो तीन दिन देख लो, वो नहीं आये तो दूसरी लगा लेना, कामवाली ही तो है, पैसा दोगी तो दस आ जायेगी, अपनी सोसायटी में कामवाली बाईयों की कोई कमी तो नहीं है, बेकार ही इतना तनाव ले रही हो।

सुमित, तुमने कितनी आसानी से कह दिया कि वो कामवाली बाई ही तो है, पर वो अपने घर की सदस्य की तरह है, जब हम पर मुसीबतें और परेशानियां आई थी तो यही कांता हमारे साथ खड़ी थी, तब ना तुम्हारे घर से कोई आया था और ना ही मेरे घर से कोई आया था, तुम इतनी जल्दी सब कुछ कैसे भुल सकते हो।

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तुम्हें याद नहीं जब मेरे पेट में मायरा थी तो यही कांता मेरा एक बहन बनकर कितना ख्याल रखती थी, डिलेवरी पर तुम्हारी मम्मी ने भी आने से मना कर दिया था और मेरी तो मम्मी है ही नहीं, भाभी ने भी ना आने के बहाने बना दिये थे।

जब मै मायरा को अस्तपताल से लाई तो यही कांता थी, जिसने हमारी देखभाल की थी, दिन भर घर पर रहती थी और हमें कभी अकेला नहीं छोड़ा, बाद में बड़ी मुश्किल से पैसे लिये थे, पर इतनी देखभाल कोई अपना ही करता है। तुम तो ऑफिस चले जाते थे, मुझे तो बच्चे संभालना भी नहीं आता था, तब ये कांता ही मेरी मदद किया करती थी, उसमें कांता का कोई स्वार्थ नहीं था।

बच्चों को पालन में कांता ने कितनी मदद की थी, मै वो सब नहीं भुल सकती हूं।

और एक दिन जब तुम्हारी कार का एक्सीडेंट हो गया था, तुमको कितनी चोट आई थी, तब बच्चों को कांता ने संभाला था, मै तो तुम्हारे साथ अस्तपताल में थी, तुम्हारी देखभाल करने मे लगी हुई थी, ना मुझे खाने की सुध थी और ना ही जीने की। जब तक तुम होश में नहीं आ गये थे, मेरे प्राण सूख गये थे, ऐसे वक्त में मुझे कांता ने ही संभाला था, कांता तुम्हारे लिए कामवाली बाई होगी पर मेरे लिए तो घर की सदस्य जैसी है।

हां तो तुम भी तो उसे कितना देती रहती हो, कभी बच्चों के पुराने कपड़े, सूट, साड़ियां और जब भी चीजें रह जाती है, उसके घर ही तो जाती है, सुमित ने कहा।

हां, देती हूं, पर मै कोई अनोखा काम नहीं करती हूं, पुराने कपड़े तो कोई भी दे सकता है, उससे कांता का अहसान नहीं चुकाया जा सकता है।

तुम मुझे कल उसके घर पर ले चलना, आखिर मै भी तो पता करूं कि बात क्या है?

रात भर रेणु अच्छे से सो नहीं पाई, उसका मन घबरा रहा था, सवेरे बच्चों को स्कूल छोड़कर वो सुमित के साथ चली गई, उसका घर बहुत दूर है, वो रोज ऑटो से आती है, रेणु ने कहा।

काफी देर बाद एक गली में मुड़ना था तो सुमित नाक मुंह सिकोड़ने लगा, छी…छी … किस गंदगी में तुम मुझे ले आई हो, मै इससे आगे नहीं जाऊंगा, तुम्हें जाना हो तो जाओ, मै यही दुकान में खड़ा रहूंगा।

रेणु को पता याद था वो एक बार पहले भी यहां आ चुकी थी, थोडी दूर सकड़ी गलियां पार करने के बाद उसे कांता का घर दिखाई दिया, उसन जाकर कुंडी बजाई तो कांता की बेटी ने दरवाजा खोला, अरे!! दीदी आप और हमारे यहां कैसे आई हो? कुछ जरूरी काम था?

हां, तेरी मम्मी कहां है? काम पर नहीं आई।

मम्मी तो सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं, उन्हें फिर से चक्कर आया था और वो बेहोश होकर गिर गई थी, उनके हाथ में चोट आई है, पापा उन्हें डॉक्टर के पास ले गये है।

लेकिन वो फोन क्यों नहीं उठा रही है?

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दीदी, महीने के आखरी दिन है, पैसों की तंगी हो जाती है, पगार तो एक तारीख के बाद ही मिलेगी, इसलिए फोन कल सुबह तो चालू था, पर बाद में उसमें बैलेंस ही खत्म हो गया होगा, पापा तो कल रात से घर नहीं आये है।

अच्छा, घर पर कुछ राशन का सामान है या नहीं?

नहीं, दीदी थोड़े से चावल थे वो खत्म हो गये है, अब शाम को पकाने के लिए कुछ नहीं बचा है।

ठीक है, तू ये पैसे रख, राशन का सामान ले आना, और अस्तपताल का नाम बता।

रेणु वहां से जाकर आ गई और सुमित को कहा कि वो नुक्कड़ वाले सरकारी अस्पताल में लेकर चलें।

वहां जाकर उसने कांता को देखा तो वो एक पलंग पर लेटकर कराह रही थी, रेणु को देखते ही रोने लग गई।

आखिर इसे क्या हुआ है? डॉक्टर ने क्या बताया?

कांता का पति बोला, रेणु दीदी कांता को कमजोरी की वजह से चक्कर आया और ये गिर पड़ी तो इसके हाथ के ऊपर से  तेज रफ्तार कार निकल गई, दायां हाथ बुरी तरह से घायल हो गया है, तभी तो दर्द की वजह से कराह रही है, रात को डॉक्टर नहीं आया, और अब सुबह से भी इंतजार कर रहे हैं, अब सरकारी अस्पताल में इलाज तो मुफ्त होता है, पर इलाज समय पर नहीं होता है।

तो इसे किसी प्राइवेट अस्पताल में ले चलो, बेचारी का हाथ का इलाज नहीं हुआ तो मुश्किल हो जायेगी।

प्राइवेट अस्पताल की फीस बहुत होती है, हमारे पास इतना पैसा नहीं है, अब तो यही पर इलाज करायेंगे, कांता के पति ने कहा।

मै कांता का इलाज कराऊंगी, तुम इसे लेकर बाहर चलो, रेणु ने एक सेकेंड में निर्णय लिया और सुमित को साथ लेकर प्राइवेट अस्पताल में चली गई, वहां कांता का हाथ दिखाया, उसका एक्स-रे करवाया, हाथ में फ्रेक्चर था, पट्टा बंधवाया और दवाईयां देकर उसे उसके घर छोड़ आई, तुम अपनी पत्नी का ध्यान रखना और अभी दो महीने आराम करवाना, इसकी पगार इसको मिलती रहेगी।

रेणु दीदी, आपने मेरे लिए इतना किया, आपका अहसान रहंगा, मै इलाज में खर्च हुई पाई-पाई चुका दूंगी, कांता ने कहा।

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नहीं, कांता इसकी कोई जरूरत नहीं है, तू बस अपना ध्यान रखना और जल्दी से ठीक हो जा, हाथ को जितना आराम देगी, उतनी जल्दी ठीक हो जायेगी, रेणु वहां से वापस घर आ गई।

घर आकर सुमित चिल्लाकर बोला,  रेणु मैने तुम्हे कांता के सामने तो कुछ नहीं कहा पर मै इसलिए दिन-रात नहीं कमाता हूं कि तुम काम वाली बाईयों पर पैसा लुटाती रहो, अरे!! घर में काम करती है, थोड़ी बहुत मदद कर दी ठीक है, पर ये क्या तुमने तो इलाज का सारा खर्चा ही दे दिया, भला ऐसे कैसे घर चलेगा?

तुमने तो उस कामवाली को सिर पर चढ़ा रखा है और उसके घर इस तरह गई, इस तरह तो कोई अपने रिश्तेदारों के भी नहीं जाता है, हद करती हो, इतनी महंगाई है, दो बच्चे हैं, घर की ईएमआई है, राशन-पानी स्कूल फीस, बहुत कुछ है, और तुम तो एक झटके में दस हजार रुपए पूरे कर दोगी, घर बैठे पगार देने की क्या जरूरत है?

सुमित, कांता ने जो हमारे लिए किया है, ये दस हजार रुपए तो उसके सामने कुछ भी नहीं है, उसने तो मुझे नई जिंदगी दी है, मै उसका अहसान कभी मन भुल सकती हूं।

क्या अहसान किया है उसने ? हर बार हमने पैसा भी तो दिया है, सुमित आवेश में बोला।

सुमित याद है जब तुम्हारा कार से भयंकर एक्सीडेंट हुआ था, मै एकदम अकेली पड़ गई थी, इस शहर में हमारा नाते -रिश्तेदार कोई भी नहीं था, कांता अपने बच्चों को छोड़कर अस्तपताल भागी आई थी, तुम्हारा बहुत खून बह चुका था, अस्तपताल में तुम्हारे मैंचिग का खून नहीं था, और तुम्हें खून चढ़ाना बहुत जरूरी था, अपने घर से कोई पहुंच नहीं पाया था, ऐसे में कांता का खून मैच हो गया, और उसे चढ़ाकर ही तुम्हारी जान बचाई जा सकी है, जिसने तुम्हें जीवन दिया, मेरे सुहाग की रक्षा की, मै उसे कैसे भुल सकती हूं।

ये सुनते ही सुमित सन्न रह गया, लेकिन तुमने मुझे बताया क्यों नहीं? और इतनी बड़ी बात दो सालों से छुपा रखी है, मैंने पूछा था पर तुमने कह दिया था कि अस्तपताल में ही खून मिल गया है।

मुझे माफ कर दो सुमित!! ये बात मै तुम्हे कभी बताना नहीं चाहती थी पर आज बतानी पड़ी, तुमने हमेशा छोटे लोगों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा है, तुमने इन लोगों को कभी इंसान ही नहीं समझा, और तुम्हें पता लग जाता कि तुम्हें खून कांता ने दिया है तो तुम ना जाने कैसी प्रतिक्रिया देते? इसलिए मैंने तुम्हें नहीं बताया।

तुम आज कांता की वजह से ही जिन्दा हो, और रेणु रोने लगी, सुमित भी चुप हो गया।

अगले दिन जब सुबह हुई तो रेणु ने देखा, सुमित कहीं नहीं थे, आखिर इतनी सुबह कहां चले गए ? मैंने क्यों कांता की खून देने वाली बात बताई, रेणु अपने आपको कोसने लगी।

उसने सुमित को फोन लगाया पर उसने फोन नहीं उठाया, वो चिंता कर ही रही थी कि कांता का फोन आया, रेणु दीदी सुमित भैया घर आये थे, फल और मिठाइयां देकर गये है, और मेरी तबीयत भी पूछी, आज तो बड़े अच्छे से बात की और दो महीने की पगार भी बढ़ाकर दे गये है।

रेणु ने फोन रखा तभी सामने से सुमित आते हुए दिखाई दिये, रेणु कांता को लेकर मैं हमेशा चिढ़ा करता था, पर तुमने मेरी आंखें खोल दी है, छोटे काम करने वालों का दिल बहुत बड़ा होता है, मेरे अपनों ने मुझे मरने के लिए छोड़ दिया पर अनजान, अजनबी ने मदद की, अब मै सभी का सम्मान करूंगा, सबसे प्यार से बात करूंगा, चाहें वो कामवाली हो, धोबी हो, माली हो, प्रेस वाला हो, कार साफ करने वाला हो।

दो महीने तक कांता ने आराम किया और उसका हाथ पूरी तरह से ठीक हो गया, वो अब काम पर आने लग गई, अब सुमित सही व्यवहार करने लगा, और रेणु भी खुश थी कि कांता वापस आ गई और सुमित का दृष्टिकोण बदल गया।

पाठकों, समाज में छोटे काम करने वालों को छोटा समझकर हीनभावना से देखा जाता है, लेकिन मुसीबत में कई बार ये छोटे लोग भी बड़ा दिल रखते हुए बड़ा काम कर जाते हैं, हमें सभी काम करने वालों का सम्मान करना चाहिए।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

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