वो गुज़रा ज़माना – गुरविंदर टूटेजा

#वक्त 

अप्रकाशित 

   नीतू आज बहुत खुश थी..अपने गुज़रें वक्त को याद करते हुए..हलवा कहानी बेटियां ग्रुप में पोस्ट की सबने पंसद की व सराहा भी तो उसने वो अपने पारिवारिक ग्रुप में शेयर की…सबकों पढ़कर मजा आ गया फिर तो सब अपना पुराना ज़माना याद किस्सें सुनानें लगें…!!!!

 सबसे पहले बुआ जी…नीतू अम्मा को पिताजी कहतें थें…भक्तों आज किसी का जन्मदिन नहीं हैं क्या आज तो हलवा खिला ही दो..और अम्मा सुबह-सुबह घी में तर कटोरी भरकर हलवा ले आतें तो जबरदस्ती खिला देतें थें..वाह जी अम्मा!!

  इतने में रिमझिम दी ने कहा…हाँ और वो पंडित जी की कुल्फी घंटी की आवाज आतें ही जग उठाकर भागतें  और सब अपनी-अपनी गिनती बता देतें थे सुनतें ही सबके मुँह में पानी आ गया…वैसी कुल्फी फिर कभी नहीं खायी!!!!

 अजय बोला…रिक्शें पर एक साथ स्कूल जाना…!!

नीतू बोली…हाँ और गुस्सें में तेरा किसी को कही पर भी धक्का दे देना..!!

ऐ अब रहने दे ना…वो सबका साथ में पिकनिक जाना और तेरा चलते-चलते कही भी गिर जाना..!!!!

सबके हँसते हुए ग्रुप में पुराना वक्त याद करके खुश हो रहे थें…!!

बुआ की बेटी तनु बोली…हम जब आतें थे तो आप सब गैलरी में लाईन में खड़े होतें थें..!!

रिम्पी दी बोली…और एक बार ऐसा हुआ कि बुआजी व सब ऊपर आ गयें..बुआ जी बोलें कि आज तो कमाल हो गया..कोई गैलरी में नहीं दिखा…सारे माफी माँगनें लगे कि पता नहीं ऐसा कैसे हो गया..!!!!

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  गर्मी की छुट्टियाँ और बुआ का आना…फिर छत पर शाम को पहले मटका ऊपर जाता था फिर खाने का सब सामान जाता था साथ में वही सब खाना खातें थें जब तक सब आतें तब तक हम बच्चों की ड्यूटी होती थी छत पर छिड़काव करना फिर जब ठंडा हो जाता था फिर लाईन से मंजियाँ व बिस्तर नीचें भी लगाना और अपनी जगह पर किसी को नहीं बैठनें देना..!!!!

सब सो जाते थें पर हम सब बच्चें बातें व मस्ती करना और ताश खेलते थे रात दो-तीन बजे तक और फिर बुआ का बेटा सनी डरावनी बातें कर डराता था…!!!!

अजय बोला परीक्षा खत्म हुई रिजल्ट आतें ही सभी कॉपियों के एरोप्लेन बन जातें थे रात को नीचें ट्रान्सपोर्ट एरिया था तो खूब एरोप्लेन नीचें उड़ातें और खूब शिकायत होती व डाँट खातें थे..पर उसका भी अलग ही मजा था…!!!! 

फिर ग्रुप में सब हँसते हुए…!!

जीजाजी बोलें हमारी शादी के बाद की पहली होली सही मजा आ गया था…पंचमी खेलतें थे पर मेरी होली की छुट्टी थी…होली तो खेली धमाकेदार साथ में सब ऐसे देख रहें थे कि हम अजूबें हों कि ये आज क्यूँ होली खेल रहे हैं…सही में यादगार था वो वक्त…कभी ना भूलनें वाला…!!!!

सही में सब एक साथ होतें थें तो तेज आवाज में गाने चलाकर डाँन्स करने लगते जो नया आता तो वो पूछता आज कुछ क्रार्यक्रम है क्या घर में…नहीं जी ये तो सब साथ हैं तो बस खुश हैं…!!!!

कोई खाना खानें आता तो बड़ें सत्कार के साथ खाना खिलातें…फिर सब बच्चों को बुलाकर…गानें…जोक…कविता…सब सुनातें थे जो आता वो भी याद करता था कि आपके यहाँ की तो बात ही अलग हैं…!!!!

  बातें तो खत्म ही नहीं हो रही थी उस वक्त की और भी बहुत सी प्यारी यादें थी पर आज भी रात के दो बज गयें थे  चलों अब सोया जायें…अब ऐसा लग रहा था कि वो गुज़रा ज़माना फिर लौट आयें….!!!!

#वक्त 

गुरविंदर टूटेजा

 उज्जैन (म.प्र.)

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