वो गंवार सा – निभा राजीव “निर्वी” : hindi stories with moral

hindi stories with moral : भोली सी..प्यारी सी और थोड़ी नकचढ़ी सी शैलजा! सुंदरता और पढ़ाई में भी अव्वल ! सरकारी अधिकारी पिता की लाडली बिटिया! उससे बड़ा एक भाई और माता-पिता बस यही था उसका परिवार! भाई भी अपना एम बी ए पूरा कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर पदस्थापित हो चुका था। पिता को सरकारी आवास मिला हुआ था जहां पूरा परिवार रहता था।

        उनके आवास के बगल वाले घर में जो परिवार रहता था,उनकी भी एक बिटिया थी गीता, जो शैलजा की कक्षा में ही पढ़ती थी और जिससे शैलजा की दांत काटी रोटी की दोस्ती थी। पूरा दिन दोनों का लगभग एक साथ ही व्यतीत होता था। महाविद्यालय आना जाना और उसके बाद का समय भी दोनों साथ ही गुजारती थी।

दोनों परिवारों में भी आपस में बहुत मेलजोल था। महाविद्यालय के लिए निकलने पर गीता का घर शैलजा के घर के बाद पड़ता था इसीलिए शैलजा जब निकलती थी तो गीता को पुकार कर साथ लेती हुई निकलती थी।

                 उस दिन भी प्रतिदिन की भाँति गीता के घर के सामने खड़ी होकर शैलजा उसे आवाजें देने लगी।  मगर जब काफी देर तक गीता नहीं आई तो उसने स्वयं अंदर जाकर देखने का निश्चय किया। वह बरामदे तक पहुंची तो देखा कि बरामदे में कुर्सी पर एक ऊंचे कद बलशाली डील डॉल वाला लड़का बैठा था। शक्ल से ही देहाती और गंवार लग रहा था। शैलजा को देखकर वह बड़ी धृष्टता से मुस्कुरा दिया। उसका मुस्कुराना शैलजा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। वह उस पर ध्यान नहीं देते हुए घर के अंदर चली गई तो देखा गीता जल्दी-जल्दी अपनी किताबें लेकर बाहर निकलने का उपक्रम कर रही थी। 

उसने गीता से पूछा, “-यह कौन है जो बाहर तुम्हारे बरामदे में बैठा है?”

“- मेरे पापा की चचेरे भाई की बेटे हैं महादेव भैया! अभी तक की पढ़ाई इन्होंने गांव में रहकर की है पर अब इससे आगे की पढ़ाई वह यहां से करेंगे और हमारे साथ ही रहेंगे। आज ही सुबह वे यहां पहुंचे तो मैं उनके नाश्ते खाने के प्रबंध में मां के साथ लग गई इसीलिए मुझे भी देर हो गई। चल चल अब निकल जल्दी, वरना क्लास के लिए लेट हो जाएंगे।” गीता ने हड़बड़ाते हुए कहा। 

सहमति जताते हुए शैलजा भी तेजी से उसके साथ महाविद्यालय की ओर बढ़ गई।

            फिर तो यह रोज का ही काम हो गया। जब भी शैलजा गीता को बुलाने के लिए उसके घर तक पहुंचती तो यह महाशय बाहर ही दिख जाते…कभी फूलों में पानी देते हुए…..कभी बरामदे को बुहारते हुए…और कभी तो अपनी ढीली ढाली खिसकती हुई पैंट को बेल्ट के सहारे कसने का प्रयास करते हुए… 

शैलजा को देखते ही वह कहता, “- नमस्ते सेलजा जी, हम बुला लेते हैं गीता को”…. 

शैलजा अंदर तक जल भुन जाती! ना तो उसको महादेव की शक्ल पसंद थी, ना पहनावा !और उस पर से उसका उसे “सेलजा” कह कर बुलाना तो जैसे जले पर नमक छिड़क देता था। मन ही मन शैलजा उसे बहुत कोसती, “- देहाती ! गंवार कहीं का!! इसे तपाक से बोलने की क्या जरूरत होती है बीच में..इल मैनर्ड डफर!!!… 

               पर उसके भोले भाले स्वभाव के कारण शैलजा के परिवार के लोग भी उसे बहुत पसंद करने लगे थे और उस पर बहुत विश्वास भी करने लगे थे।

           जल्दी ही छुट्टियां आ गई तो बीच में गीता अपने ननिहाल चली गई थी।  2 दिन बाद शैलजा को भी अपने परिवार के साथ किसी हिल स्टेशन घूमने जाने के लिए निकलना था। शैलजा भी बहुत उत्साहित थी और पूरे जोर शोर से तैयारियों में लगी हुई थी। उसे अपने लिए ढेर सारी शॉपिंग करनी थी

ताकि पूरे ट्रिप के दौरान वह बहुत खूबसूरत और सबसे अलग हटकर लग सके। और जब उसकी तस्वीरें आएं तो उसकी सारी सहेलियां उसे देखकर आहें भरती रह जाएं। बाहर भैया अपनी बाइक से ऑफिस के लिए निकलने ही वाला था, वह दौड़कर भैया के पास पहुंची और कहा, “-भैया, मुझे शॉपिंग करने जाना है!

भैया ने कहा,”-अभी तो नहीं चल पाऊंगा शैलजा, छुट्टियों पर जाना है तो बहुत सारा काम निपटा कर जाना है तो मुझे तो बिल्कुल ही फुर्सत नहीं है। तुम देख लो ना, ऑनलाइन मंगवा लो थोड़ा बहुत कुछ!”

चिढ़ कर शैलजा जब जिद करने लगी तो भैया ने थोड़े रोष से कहा, “- शैलजा, अब तुम बड़ी हो गई हो…. थोड़ा बातों को समझा करो।”

तभी चारदीवारी के उस तरफ से आवाज आई, “-सेलजा जीऽऽ” उसने आंख उठा कर देखा तो दांत निपोरते हुए महादेव चारदीवारी पकड़े उस तरफ खड़ा था। ..”-आप हमारे साथ चल लीजिए… हम आपको दुकान ले चलेंगे।”

इस पर भैया ने भी कहा, “- हां शैलजा, तुम महादेव के साथ चली जाओ.. वह तुम्हारे साथ रहेगा तो फिक्र की कोई बात ही नहीं है”….अपनी बाइक स्टार्ट करके निकल लिए।

अब जैसे पानी सर से ऊपर चला गया हो ..शैलजा के अंदर का ज्वालामुखी फट पड़ा… वह चीखती हुई महादेव से बोली, “- तुम मेरे साथ जाओगे ??? कभी आईने में शक्ल देखी है अपनी! गंवार कहीं के! सोचना भी मत मैं अकेली ही काफी हूं खुद के लिए…” 

इस अप्रत्याशित विस्फोट पर भौंचक्का रह गया महादेव और थोड़ा सहमते हुए उसने शैलजा से कहा, “- अगर आपको अकेले ही जाना है तो आप दिन में चले जाइए…शाम के बाद कॉलोनी तक का रास्ता सुनसान हो जाता है….” इस पर फिर शैलजा चीखी,”- तुम्हारी हर बात माननी जरूरी है क्या?? हो कौन तुम??

मेरे पीर हो जो मैं तुम्हारी तुम्हारी हर बात मानूं?? तुम अपना काम करो मुझे शाम को शॉपिंग करना पसंद है और मैं शाम को ही जाऊंगी और इस तरह से हर बात के बीच में अपनी टांग अड़ाना बंद करो… कुछ मैनर्स कुछ तमीज भी जानते हो जो तुम मेरे साथ चलने की सोच रहे हो!! ” महादेव को उसी तरह अचंभित और अपमानित छोड़कर शैलजा पांव पटकती हुई अंदर आ गई और उसने मन ही मन सोच लिया कि अब तो वह अकेले ही जाएगी शॉपिंग के लिए।

            शाम होते ही शैलजा ने अपनी स्कूटी उठाई और निकाल पड़ी शॉपिंग के लिए। उसने जी भर का शॉपिंग की और घर की तरफ चल निकली…अंधेरा भी हो चला था… वह जल्द से जल्द घर पहुंच जाना चाहती थी तभी अचानक स्कूटी का टायर पंक्चर हो गया।शायद कहीं कोई कील  या ना कुछ नुकीली चीज चुभ गई थी।

उसने स्कूटी से उतरकर इधर-उधर नजर दौड़ाई कि कहीं से कुछ सहायता मिल जाए पर कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा था…दूर दूर तक कोई आदमी भी नज़र नहीं आ रहा था ।  अब तो उसे हाथों से ठेल कर ही स्कूटी को ले जाना पड़ेगा…मन ही मन कुढ़ते हुए वह स्कूटी को ठेलती हुई घर की ओर चल निकली।

अचानक उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है…उसने पलट पीछे देखा तो देखा चार आवारा किस्म के लड़के  उसी की ओर बढ़ते आ रहे हैं। उनकी गंदी नजरों को उसने पल में भांप लिया। उसने सड़क के किनारे स्कूटी खड़ी की और लॉक किया और पैदल ही तेज कदमों से घर की तरफ बढ़ने लगी। उन लड़कों के भी चलने की रफ्तार तेज हो गई। डर के मारे शैलजा का गला सूखने लगा।वह बेतहाशा तेजी से दौड़ने लगी और पीछे-पीछे वह चारों लड़के भी दौड़ते हुए आने लगे।

उसके पैर जगह-जगह से छिल गए और कट गए। ऐसा लग रहा था कि अब पैरों की शक्ति भी चूकती जा रही है। पर वह बदहवास सी दौड़ती जा रही थी, अचानक दो बलिष्ठ बांहों ने उसे कस कर थाम लिया। वह भय से चीख पड़ी। नजर उठा कर देखा तो सामने महादेव था। महादेव को देखकर उसकी सांस में सांस आई। तब तक वे चारों लड़के उसके पास पहुंच चुके थे। महादेव ने हाथ पकड़ कर उसे अपने पीछे कर लिया और अपनी कमर से खींच कर बेल्ट निकाली और अंधाधुंध चारों लड़कों पर बरसाने लगा।

कुछ देर तो लड़के सामना करने की कोशिश करते रहे लेकिन बेल्ट की उस अंधाधुंध वर्षा में टिक नहीं पाए दौड़कर भागते हुए चारों निकल गए। रूंधे गले से किसी प्रकार से शैलजा बोली, “- महादेव, अगर तुम ना होते तो आज क्या होता…”अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराते हुए महादेव ने कहा, “-अरे ऐसा काहे बोलती है सेलजा जी..

अंधेरा हो गया तो हमको भी कुछ अनिष्ट का डर सताने लगा इसीलिए हम आपको ढूंढने इधर निकल आए। पिलीज, नाराज मत होइएगा”…पता नहीं क्यों आज उसका “सेलजा” बोलना शैलजा को बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा। उसे अपना ये नया नाम बहुत ही प्यारा लगा। उसने भावुक होकर महादेव का हाथ पकड़ लिया और कहा, “- जीवन के हर मोड़ पर तुम इसी तरह साथ रहोगे ना महादेव???”

इस पर अचकचा कर दो कदम पीछे हटते हुए महादेव ने कहा, “-यह क्या कह रही हैं सेलजा जी? कहां आप इतनी सुंदर और पढ़ी लिखी और कहां मैं उजड्ड गंवार!!! ” शैलजा ने उसके मुंह पर अपनी उंगली रख दी। “- कुछ नहीं सुनना है मुझे महादेव! मुझे माफ कर दो और बस जीवन भर साथ रहने का वचन दे दो!” महादेव ने भावुक होकर अपने मुंह से उसका हाथ हटाकर उसकी हथेली थाम ली और दूर आसमान में चांद मुस्कुरा रहा था। दोनों हाथ पकड़ कर घर की ओर बढ़ चले।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी, धनबाद, झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

 

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