वो बुला रही है मुझे” (भाग – 2 ) – अविनाश स आठल्ये : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मित्रों कल पोस्ट की हुई इस कहानी में आपने पढ़ा कि नन्हा बालक माधव अपने पिता की सीख “यह पेड़ हमारा साथी बनकर आजीवन साथ देगा” को मन में गाँठ बानकर रख लेता है, वह उस पेड़ की अच्छे से देखभाल करता है, 12-13 वर्षों में माधव युवा हो चुका होता है, उस आम के पेड़ को भी अब देखभाल की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अब वह आम के फल देकर अपनी मित्रता निभाने लगता है, इसी पेड़ की छांव तले गाँव के पुरोहित जी की बेटी माला से माधव की मुलाकात होती है …

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अब आगे..
अगले दिन दोपहर को जब माधव फ़िर उसी आम के नीचे लेटा हुआ था, तभी पीछे से माला की आवाज़ आई,
ऐ बाबू उठो, तो ज़रा ….
माधव बिना मुड़े ही गुस्से से बोला, मैंने तो तुझे मना किया था न… कि आज एक भी आम नहीं दूंगा, फ़िर क्यों आई आज?
माला ने आम के अचार का छोटा मर्तबान माधव को देते हुए कहा, मैं तुम्हें यह अचार देने आई थी..
माधव को माला से ऐसी कोई उम्मीद ही न थी, इसलिए वह अपलक नज़रों से माला की तरफ़ देखता रहा.. उसने माला से पूछा.. ये अचार तुम्हारी माँ ने भेजा क्या?
माला ने घबराहट में कहा, क्यों क्या तुम रिश्तेदार लगते हो हमारे? वो तो मैं खुद ही चोरी छुपे ले आई हूं तुम्हारे लिए..
पर क्यों? मैने तो नहीं मांगा था, फिर घर से चोरी छुपे क्यूँ लाई? माधव ने कहा।
माला चिढ़कर बोली- ताकि तुम यह न समझो कि मैंने तुमसे मुफ़्त में आम लिए थे..
वैसे तो माधव को भी माला का साथ अच्छा लगता था, पर पता नहीं… प्यार भरे शब्द तो शायद उसकी शब्दावली में थे ही नहीं, इसलिए वह बोलना कुछ चाहता था, और मुँह से शब्द कुछ और निकलते थे..
एक दिन जब माधव को माला नज़र नहीं आई, तो माधव बैचैन हो गया माला से मिलने को, कोई बहाना न सुझा तो उसने आम के पेड़ से कुछ आम तोड़कर उन्हें साथ लेकर माला के घर चला गया।
माला के घर के बाहर बड़ी सी गाड़ी खड़ी थी, शायद कोई शहर से आया था, माधव ने आवाज लगाई…
माला… माला…
माला तो नहीं आई, परंतु माला की माँ बाहर आई पूरी तरह सजी धजी… उसने माधव को देखकर पूछा क्या हुआ? क्यों माला को बुला रहे हो जोर जोर से?
माधव ने हड़बड़ी में कहा, जी…मैं….मैं यह आम लाया था उसके लिए…
ठीक है दे दो मैं उसे दे दूँगी… माला की माँ ने कहा..
माधव ने मन मारकर माला की माँ को आम देते हुए पूछा, आज माला कहीं बाहर गई है क्या? दिख नहीं रही है?
माला की माँ ने कहा, बुद्धू हो तुम पूरे, दिख नहीं रहा है, माला के लिये शहर से रिश्ता आया है, कलेक्ट्रेट में बाबू है मेरा होने वाला दामाद, अब वह सज धजकर उसके सामने चाय पानी देकर स्वागत करेगी या तुम्हारे इस आम के लिये भागी चली जायेगी? अब तुम भी बचपना छोड़ो और माला से दूर रहा करो..उसका ब्याह होने वाला है।
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माला की माँ से यह शब्द सुनकर माधव का दिल टूट गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, वह चुपचाप माला के घर से निकलकर वापस उसी आम के पेड़ के नीचे फुट-फूटकर रोने लगा। उस युवा माधव के आँसुओं को उस आम के पेड़ के अलावा कोई भी नहीं देख और समझ सकता था…रोते सुबकते माधव को उस पेड़ की ठंडी छांव में यूँ नींद आ गई, जैसे कोई बच्चा अपनी माँ की गोद में बेफिक्र होकर सोता है।
गहरी नींद में भी माधव माला के ही ख्वाब देख रहा था..वह घर पर पलंग पर सो रहा है, और माला कमर मटकाती हुई पनघट से पानी की घघरी लेकर अपनी सहेलियों संग हँसी ठिठोली करते हुऐ घर आती है, और माधव को सोते देखकर उस घघरी से पानी की कुछ बूंदें माधव के ऊपर छिड़ककर बोलती है, “दिन चढ़ आया है, कब तक सोते रहोगे?”
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“दिन उतर गया है, कब तक सोते रहोगे?” माला की आवाज के साथ सचमुच पानी की कुछ बूंदें माधव के चेहरे पर पड़ी…
सामने माला को देखकर माधव बुरी तरह चकित होकर आँखें मलने लगा..
तुम… तुम तो घर पर थी न..तुम्हें देखने कोई शहर के बाबूजी देखने आये थे, यहाँ कैसे? माधव ने एक सांस में माला से सारी बातें पूछ ली।
हाँ आये तो थे, मैंने उन्हें कह दिया है कि मैं सोचकर बताउंगी… बोलो क्या मैं कर लूँ उससे ब्याह?
माला ने माधव के जख्मों पर नमक छिड़कते हुये इठलाकर पूछा..
माधव ने चिढ़कर कहा, मुझसे क्यों पूछती है, तेरी अम्मा और बाबू को जैसा पसन्द होगा वैसा ही करेंगे वह…
अरे यह मेरा ब्याह है, मेरी अम्मा का नहीं जो उनकी पसंद के लड़के से करूँ..माला ने चिढ़कर कहा और गुस्से से पैर पटकते हुये वापस घर चली गई।
खैर मोहब्बत के इज़हार को शब्दों की जरूरत भी कहाँ पड़ती है.. माला और माधव ने कभी प्यार का इज़हार किया ही नहीं, पर उनका इस तरह छुप छुप कर मिलना, घण्टों उस आम के पेड़ के नीचे बातें करना घरवालों को सब कुछ समझा गया।
दोनों के पिता मित्र थे,सजातीय भी थे, और उनकी जोड़ी भी बहुत प्यारी थी, इसलिए दोनों परिवारों ने खुशी खुशी माला और माधव का विवाह करा दिया।
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विवाह के उपरांत भी माधव का उस आम के वृक्ष से लगाव कम नहीं हुआ, बल्कि अब तो माला भी माधव के साथ उसी आम के नीचे अपने नवविवाहित जीवन के सपने संजोने लगे थे.. पूनम की चाँदनी रात को जब माधव उस वृक्ष से छन छन कर आती रौशनी में माला को देखता तो उसे लगता मानों उसका चाँद ज़मीन पर आकर उसे आलिंगन कर रहा है।
अब वह आम का वृक्ष माधव और माला के जीवन की प्रत्येक घटना का साक्षी बनता गया…
जब माधव एवं माला ने अपने नवीन घर में गृह प्रवेश किया, तो आम के वृक्ष के पत्तों का तोरण, सत्यनारायण की पूजा में हवन के लिए लकड़ियां… बेटा मोहित हुआ तो उसके लिए खिलौना गाड़ी, घर के दरवाजे खिड़कियां…यहाँ तक कि पिताजी की मृत्यु पश्चात चिता लकड़ियां उन सभी में आम के वृक्ष ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
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माला और माधव के साथ साथ उनका बेटा मोहित भी पीछे पीछे उस आम के पेड़ के नीचे आने लगा, गर्मी की छुट्टियों में प्रतिदिन अपने मित्रों के साथ आम के सूखे पत्ते झाड़ू से बटोरकर नीचे सारी जगह साफ़ करता और फिर उन मित्रों के साथ कंचे खेलता या छुपा-छुपी खेलता.. गृहस्थी की व्यस्तता में माला और माधव का उस आम के पेड़ थ आना थोड़ा कम हो चुका था।
बेटा मोहित जब बड़ा हुआ, तो माला और माधव ने उसे अच्छी शिक्षा के लिये पढ़ने को शहर भेजा… पढ़ाई पूरी होते ही मोहित को अपने गाँव के पास में ही “ग्राम सचिव” की नौकरी लग गई।
कुछ वर्षों बाद माला ने मोहित को उसकी ही पसन्द की लड़की रागिनी से शादी करा दी।
मोहित और रागिनी की नई नई गृहस्थी से प्रसन्न माला और माधव को लगा कि बस जीवन में संघर्ष के दिन ख़त्म हो गए है, अब उनकी जिंदगी के बाकी दिन आराम से हँसी ख़ुशी ऐसे ही निकल जाएंगे…
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प्रथम भाग एवं द्वितीय पढ़ने व प्रशंसा करने हेतु आप सबका धन्यवाद 🙏💐😊
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित
✍️अविनाश स आठल्ये,
वो बुला रही है मुझे अंतिम भाग
वो बुला रही है मुझे” भाग 1

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