वो अनमोल खाना – ज्योति अप्रतिम

अरे सुरेश बात सुन !हेड ऑफिस से अभी अभी एक सर्कुलर आया है।हम दोनों को एक मीटिंग अटेंड करनी है भोपाल में।

मैंने अपने कलीग से कहा।

भोपाल में ! इतनी दूर ! कब जाना है?

सुरेश ने बहुत परेशान होते हुए कहा।

हाँ भाई ,तूने सही सुना है।भोपाल ही जाना है  वह भी कल दस बजे तक वहाँ पहुँचना है।

मैंने जितेंद्र भाई को फ़ोन करके बता दिया है।वो चलेंगे सुबह अपने साथ।

जल्द ही सुबह हो गई ।जितेंद्र भाई ने कार पर कपड़ा मारा और हम निकल पड़े

हम कार में लगे स्टीरियो के साथ म्यूजिक का मजा लेते हुए आगे बढ़ रहे थे तभी मुझे  जितेंद्र के खाने का ध्यान आया।

मैंने पूछा ,तुम्हारा टिफिन ?

उसने कहा,” मेरा टिफिन तो सुबह दस बजे मेरा भाई ले कर आएगा।”



हमने मज़ाक में कहा, “ठीक है तुम आज उपवास कर लेना ” जिसका उत्तर केवल एक स्मित मुस्कान थी।

बहरहाल हम मीटिंग प्लेस पर  पहुँचे ,जितेंद्र को नाश्ते के लिए पैसे दिए और हम तेजी से हॉल की ओर बढ़ गए।

करीब तीन घण्टे बाद मीटिंग खत्म हुई।भूख से बुरा हाल था। जल्द ही हम पास के रेस्टोरेंट में पहुँच गए।जितेंद्र को भी गाड़ी लगा कर अंदर आने को कह कर हम अंदर चले गए।

जितेंद्र का कहीं अता पता नहीं था।मैंने उसे फ़ोन किया लेकिन उसने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया।

अब तक खाना आ गया था।मैंने फिर जितेंद्र को कॉल किया और वह फिर टालमटोल कर गया।मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था उसकी इस हरकत पर।

अब तक हम आधा खाना खा चुके थे।तीसरी बार फ़ोन लगाने पर जितेंद्र आ गया और चुपचाप खाना खाने लगा।

आधे घण्टे बाद हम फिर यात्रा शुरू कर रहे थे।बाहर तेज़ हवा चल रही थी और उसी तेजी से मेरे दिमाग में विचार आ जा रहे थे।

आखिर मैंने पूछ ही लिया ,जितेंद्र ,तुमने दस बजे नाश्ता किया था। दोपहर दो के बाद भी तुम्हें भूख नही।क्या बात है? मुझे कितना फ़ोन लगाने पड़े।

जितेंद्र ने बताया ,दरअसल मेरी माँ ने सुबह पाँच बजे उठ कर मेरा टिफिन तैयार किया था।मैं अपना टिफिन भरा हुआ नहीं ले जा सकता।मैं पहुँचते ही उसे खाने की सोच रखे हुए था।

मेरे पास अब कोई शब्द नहीं थे।

सोच रही थी ,धन्य है वो माँ जिसने ऐसे बच्चे को जन्म दिया जो माँ के लिए इतना ध्यान रखता है।

ज्योति अप्रतिम

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