Moral stories in hindi :
‘शेखर.. कहाँ चले गए तुम अचानक ‘… सुरभि चिल्ला उठी। पागलों की भांति दौड़ दौड़ के चारों तरफ़ खोजने लगी…. पर दूर दूर तक शेखर का कहीं नामोनिशान नहीं था…।
थक हार कर सुरभि वापस घर चली आयी। वह बहुत असमंजस में थी कि शेखर अचानक बिना बताए कहाँ चला गया…
अगले दिन वह उसी जगह पर गयी जहाँ दोनों ने प्यार के सपने सजाए थे, पर शेखर उस दिन वहाँ नहीं आया। उस दिन तो क्या उसके बाद फिर कभी नहीं आया… वह रोज उस जगह पर जाती और मायूस हो वापस लौट जाती।
वह समझ नहीं पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हुआ जो शेखर उससे नाराज़ हो गया।
तभी उसे उस कार्ड की याद आयी जो शेखर ने आखिरी मुलाकात में उसे दिया था। उसने जल्दी से अपना पर्स टटोला तो एक मुड़ा तुड़ा कार्ड मिला जिसपर… शेखर शर्मा, आर्किटेक्ट इंजीनियर, और राजस्थान के किसी शहर का पता लिखा हुआ था।
सुरभि ने राजस्थान के दिए हुए पते पर जाने का निर्णय लिया। दो दिनों के बाद वह राजस्थान के उस पते वाले घर के दरवाजे पर पहुंच गई।
एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला और सवालिया नज़रों
से सुरभि को देखा…
सुरभि ने वह कार्ड दिखाते हुए शेखर के बारे में पूछा…
तभी खांसते हुए एक वृद्ध की आवाज़ आई, ” कौन है कस्तूरी? इतने दिनों बाद हमारे दरवाजे पर कौन आया है? ”
‘ शायद ये वृद्ध दम्पति शेखर के माता पिता होंगे ‘… सोच कर सुरभि ने अंदर आ कर दोनों के पैर छुए।
” तुम कौन हो बेटी? और शेखर को कैसे जानती हो? ” इस बार वृद्धा ने सुरभि की आंखों में झाँकते हुए पूछा।
‘क्या शेखर ने आपको मेरे बारे में नहीं बताया?…वो मुंबई के पास जिस रिज़ॉर्ट का प्रोजेक्ट देख रहे हैं… छह महीने पहले हम वहीं मिले थे और हमारी मुलाकात धीरे धीरे प्यार में बदल गयी। फिर हमने शादी करने का फैसला किया। उन्होंने मुझे अपना कार्ड दिया और अचानक गायब हो गए। उस कार्ड के जरिए ही मैं यहाँ तक पहुंची हूँ। ”
” पिछले छह महीनों से तुमलोग मिल रहे हो… क्या बात करती हो बेटी? मेरे बेटे शेखर की मौत तो छह महीने पहले उसी रिज़ॉर्ट की डिज़ाइन बनाते वक़्त हुई थी… फिर तुमलोग कैसे कैसे मिल रहे हो? ” उस वृद्ध महिला जो यकीनन शेखर की माँ थी ने यह भी बताया कि शेखर कल रात उसके सपने में आया था और बोला, ” माँ मैंने आपको बहुत दुख दिए… बुढ़ापे में देखभाल करने का सौभाग्य नहीं मिल पाया मुझे… पर आप चिंता न करें… कोई है जिसे माँ-बाप का प्यार नसीब नहीं हो सका… आप उसे अपना प्यार देंगी न माँ…? ”
सुरभि के कान सुन्न हो गये थे और वह चकरा कर गिर पड़ी और उसके दिमाग में एक ही बात बार-बार गूंजने लगी…
” तो वो कौन था? ”
तंद्रा टूटने पर सुरभि ने स्वयं को हास्पिटल में पाया। शेखर की माँ उसके सिरहाने बैठी हुई उसका माथा सहला रही थी। उसे होश में आया देखकर नर्स को बुलाने के लिए घंटी बजा दी।
नर्स के साथ ही डॉक्टर भी आ गए। सुरभि की जाँच करने के बाद उन्होंने कहा,
“कांग्रेचुलेशन! यू आर फाइन नाउ। इट वाज अ सीवियर शाॅक! अब घबराने की कोई बात नहीं!…” फिर शेखर की माँ की तरफ इशारा करते हुए कहा,
“इन्होंने बड़े साहस और धैर्य का परिचय दिया और बिना एक पल गँवाए एम्बुलेंस के लिए हमारे हास्पिटल को काॅल कर दिया। तब से अब तक ये यहीं पर हैं। इनकी उम्र को देखते हुए नर्स ने जबर्दस्ती इनको जूस पिलाया। “
डाॅक्टर की बातें सुरभि मुँह फाड़े सुन रही थी और शेखर की माँ के प्रति मन-ही-मन कृतज्ञ भी हुई। शेखर की याद आते ही उसके जेहन में उसकी माँ के वे अंतिम शब्द फिर से गूँज उठे…
‘शेखर की मौत छह महीने पहले…’
उसने तत्काल डॉ से कहा,
” डॉ! क्या यह संभव है कि कोई मृत व्यक्ति किसी के साथ छह महीने तक जीवित मनुष्य की भाँति…”
डाॅ ने बीच में ही उसकी बात काटकर कहा,
“माँजी ने सारी बातें बताईं हमें। आपके साथ हुई घटना को विज्ञान हर्गिज नहीं मानता। पेशे से मैं एक डॉक्टर हूँ परंतु मैंने मनोविज्ञान भी पढ़ा है।
जिसमें कुछ लोग मन के अंतर्जाल में कल्पनाओं की एक ऐसी दुनिया बसा लेते हैं जहाँ वे अपनी कल्पना के साकार रूप को महसूस करने लगते हैं और उन्हें सबकुछ सजीव प्रतीत होने लगता है। आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हो।
उसने तत्काल डॉ से कहा,
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वो अब भी है दिल में! ! (भाग 4)- गीता चौबे “गूँज” : Moral stories in hindi
गीता चौबे “गूँज”
बेंगलुरु