“ आहहह” कहते हुए राशि कमर पकड़ कर बैठ गई
“ क्या हुआ माँ…. ये क्या तुम कपड़े का टब लिए यहाँ वहाँ से कपड़े इकट्ठे कर रही हो… पता है ना तुम्हें ज़्यादा झुकने पर कमर दर्द की समस्या हो जाती है।” दीया ने राशि से कहा
राशि वही पास में रखे काउच पर लेट गई…. दीया जल्दी से जाकर दवा लेकर आई और राशि को लगा कर आराम करने की हिदायत दे खुद कपड़ों का टब ले जाकर मशीन के पास रख आई
“ माँ ये सब क्या हाल बना रखा है सबने… तुम बोलती क्यों नहीं हो किसी को कुछ…बीमार पड़ने का शौक़ है क्या तुम्हें?” दीया प्यार वाला ग़ुस्सा कर माँ से कह रही थी
“ बेटा ये सब कम मेरे ही है ना… तो और कोई कैसे करेगा…?” राशि ने कहा
“ माँ ये सब आदत की बात है…जब तक मैं घर पर रही तुमने सब कुछ हाथ पर लाकर दिया… हमें भी आदत हो गई… पर छह साल से हॉस्टल में रह रही हूँ अपने काम खुद करने पड़ते है…. वहाँ कोई माँ नहीं आती करने।” दीया माँ को देखते हुए बोली
“ जानती हूँ बेटा…जब भी तुम हॉस्टल से घर आती हो मुझे सच में बहुत आराम मिलता….जैसे अभी तुमने मुझे परेशान देख झट से दवा लगाकर आराम करने कह दिया पर बाक़ी किसी को परवाह कभी नहीं होती ।” राशि उदास हो बोली
दीया बीस साल की हो गई…शुरू से हमेशा अपनी माँ को काम करते देखती… जब से हॉस्टल रहने गई बहुत काम अब वो खुद करने लगी थी….पर घर पर पापा के रवैये से वो हमेशा परेशान हो जाती…. माँ जितने सलीक़े से घर को समेट कर रखती पापा हमेशा सब कुछ फैला कर रखते…. कितनी बार इस बात पर तू तू मैं मैं भी हो जाती थी….
उसे अच्छी तरह से याद है वो छोटी सी थी तभी एक बार ऐसा ही कुछ हुआ था…. तब दादी उन लोगों के पास आई हुई थी वो माँ पर गरजते हुए बोली,“ मेरे बेटे को ये सब काम करने की आदत नहीं है… इतना पढ़ लिख कर अफसर बना है ये सब करने के लिए … इन सब के लिए तुम हो ना…उसका जैसे मन करेगा वो रखेगा तुम्हें समेटना पसंद तो समेटती रहो।”
माँ एक शब्द नहीं बोली थी बस रोती जा रही थी मुझे देख कर एक ही बात बार बार बोलती,” देख लाडो ज़िन्दगी में ज़िल्लत कभी ना सहना…और गाँठ बाँध ले अपने पैरों पर तो खड़ा होकर ही तुम्हें रहना है ।”
दीया देखती दादी हमेशा माँ को कुछ ना कुछ बिना बात सुना देती और पापा से शिकायत लगाया करती ,” दिनभर आराम करती है …. ये नहीं की मेरे बेटे के लिए हर दिन कुछ अच्छा बनाया करें…..उपर से दादी उसके भाई दिव्य को भी एक काम ना करने देती… उसे कह देती थी पर दिव्य को नहीं ये सब देख कर वो बड़ी हो रही थी
और जेहन में एक ही बात रहती जब सब कहते लड़का लड़की बराबर है तो ये भेद क्यों… हर काम सबको करना आना चाहिए पर दादी के रहते ऐसा संभव नहीं था…. दसवीं तक वो घर पर रही फिर बाहर हॉस्टल में पढ़ने चली गई…. वो हमेशा राशि से कहती ,“दिव्य को भी हॉस्टल भेजना … नहीं तो ये घर पर रहकर पापा के जैसा हो जाएगा ।”
पर संजोग ऐसा हुआ दिव्य हॉस्टल जाना ही नहीं चाहता था और बच्चे को ज़बरदस्ती भेज नहीं सकते थे तो उसकी आदतें भी पापा के जैसी होती जा रही थी….दादी के शह पर वो बिगड़ भी रहा था बस एक यही बात अच्छी होती जब दीया आती दिव्य को समझाने की कोशिश करते हुए एक लाइन ज़रूर कहती,“ दिव्य माँ की मदद किया करो… कभी जो वो बीमार पड़ी तुमसब पर भारी पड़ेगा ।” ऐसे में दिव्य बड़ी बहन की बात सुनता पर दादी देख लेती तो राशि को ही डांट लगा देती और राशि उससे फिर कुछ ना बोलती
“ माँ अब कैसा लग रहा है ।” दीया राशि से पूछी
राशि उठने की कोशिश की तो उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था ।
शाम को जब निकुंज घर आया…. घर की हालत सुबह जैसी ही देख राशि पर ग़ुस्सा करने लगा
“ माँ के कमर में बहुत दर्द हो रहा है…. वो एक दवा लेकर सो रही है ।” दीया ने आकर कहा
“ ओहहहह… अब चाय कौन बनाएगा?” निकुंज बुदबुदाया
“ पापा आपसे कुछ बात करनी है … आप फ़्रेश होकर आइए चाय मैं बना कर लाती हूँ ।” कह दीया चाय बनाने चली गई
चाय के साथ पापा की पसंद का भूना चिवड़ा भी लेकर आई जो अक्सर वो अपनी माँ को करते देखी
“ क्या कहना है बेटा?” निकुंज ने पूछा
“ पापा आज बिखरे घर को समेटने में और इधर-उधर फैले कपड़े बटोरने में माँ क्या झुकी कमर दर्द बढ़ गया…. मुझे तो अच्छी तरह याद है ये तकलीफ़ उसकी पुरानी है फिर भी नज़रअंदाज़ कर काम करने में लगा रहती है …अभी दो दिन ही हुए हैं हॉस्टल से आए माँ को आराम करते हुए तो नहीं देखी…. कुछ ना कुछ करती ही रहती है…
आप ऑफिस चले जाते हैं दिव्य कॉलेज कोचिंग में लगा रहता…. अगर पीछे से माँ को कुछ हो गया तो…वैसे वो सबसे ज़्यादा आपके बिखरे सामान समेटती है….आपके कपड़े ही बिखरे रहते…. शर्ट यहाँ पैंट वहाँ तौलिया कही… रुमाल मोज़े सब इधर-उधर….. जब माँ ने लॉन्ड्री बैग रखा हुआ है तो उधर कपड़े रखने में क्या हर्ज है…
थोड़ा आपको भी समझना होगा पापा… वो आपकी बीबी है घर की नौकरानी नहीं…. आप सब तो उसके साथ ऐसे करते जैसे वो काम वाली बाई हो…दादी भी कभी अच्छे से बात नहीं करती…. जब पति इज़्ज़त ना करें तो किसी और से इज़्ज़त मिले ना मिले फ़र्क़ नहीं पड़ता…. बस मैं यही कहना चाहती हूँ मेरी माँ मुझे सही सलामत चाहिए….
वो बीमार भी पड़ती तो कराह लेगी पर बोलती कुछ नहीं…. उसके दर्द को महसूस कीजिए कहीं ऐसा ना हो वो घुट घुट कर ….।” दीया कहते कहते रो पड़ी
निकुंज बेटी की समझदारी भरी बातें सुन आश्चर्य में पड़ गए…..सच ही तो कह रही है दीया….. अगर राशि को कुछ हो गया तो हम सब का क्या होगा….. नहीं नहीं अब से उसकी तकलीफ़ को नज़रअंदाज़ नहीं करूँगा…..।वो दीया के कंधे पर हाथ रख आश्वासन देते हुए अपने कमरे की ओर चल दिया जहाँ राशि कमर में बेल्ट लगा सीधी लेटी हुई थी
” आ गए आप …. वो चाय..?” राशि ने कहा
“ तुम आराम करो राशि… दीया ने बना कर दे दिया…. हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है…… कई बार बच्चे भी माता-पिता को बहुत कुछ सीखा देते हैं … है ना?” निकुंज ने कहा
राशि समझ गई बेटी ने आज पापा की क्लास ले ली है
उस दिन के बाद निकुंज में बदलाव की शुरुआत हो गई थी ….दिव्य भी माँ की मदद करने लगा था… दीया एक महीने बाद हॉस्टल चली गई पर अपनी माँ के लिए वो पिता की नज़रें में सम्मान जगा गई….. दिव्य बता रहा था दादी जब आई पापा को काम करते देख कुछ बोली तो पापा ने कहा,“ ये मेरा काम है माँ ….।” उसके बाद दादी कुछ नहीं बोलती है
दोस्तों कई बार घर में बहुत ऐसी बातें होती है जिन्हें हम आप सामान्य समझ सकते हैं पर बच्चे नोटिस करते हैं…. घर में रहकर बच्चे घर की ही बातें ज़्यादा देखते सुनते है पर जब दीया हॉस्टल गई और वो वहीं पर अपनी दोस्तों की घर की बातें जानती सुनती तो उसे यही लगता ये हर घर घर की कहानी है
पर उसे घर घर की कहानी से ज़्यादा अपनी माँ की फिक्र होने लगी थी और इसके लिए ज़रूरी था अपने पापा से बात करना …. जब तक वो नहीं समझेंगे उसकी माँ को कोई भी नहीं समझ सकता।
आप इस बारे में क्या कहते हैं….आप भी मानते है कभी कभी बच्चे भी अहम भूमिका निभाते हैं घर की बिगड़ती हालते को सुधारने में….
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश