वेस्टिंग मनी वाला सरप्राइज़ – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

दिवाली के चार पांच दिनो पहले 

” दीदी इस बार कितने कितने पैसे मिलाएंगे पटाखे लाने के लिए पॉकेट मनी से?” ईशान ने बड़ी बहन सिया से पूछा

“अरे उतने ही जितने हर बार मिलाते हैं 500तू और 500मैं” सिया बोली

पास ही बैठी उनकी मम्मी दिशा सारी बातें सुनकर बोली

” नही इस बार इतने पटाखे क्यों लाने, तुम्हे याद है ना पिछली दिवाली पर पटाखों के धुंए से दादाजी को कितनी दिक्कत हो गई थी सांस लेने में और कितने ही पटाखे बच गए थे जो बाद में फिकने में ही गए। 

 पैसों के साथ साथ सेहत का भी नुकसान हुआ”

 पर मम्मी बिना पटाखे कैसी दिवाली दोनो बोल पड़े

  मैं ये नही कह रही के पटाखे नही लायेंगे, लायेंगे पर जितनी जरूरत है उतने।

   पर तुम दोगे 500,500रुपए ही दिशा बोली

    ये क्या बात हुई ,पटाखे भी नही लाने और पैसे भी पूरे देने दोनो मुंह बनाते हुए बोले

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    हां ये एक सरप्राइज़ है जो मैं कल बताऊंगी दिशा बोली

    दोपहर को गुजिया का आटा गूंथते वक्त दिशा की सास बोली अरे बहु मैदा कम लग रही है, थोड़ी और डाल

    नही मम्मी जी बहुत है मुझे अंदाज है। कम नही पड़ेंगे

    पिछली बार पूरे 2 घंटे लगे बनाने में और किसी ने खाई भी नही आधी से ज्यादा बरताने और फैंकने में गई इससे अच्छा जब खाए तब बना ले । इतने रुपए का सामान खरीदो, मेहनत से बनाओ और खाओ भी न। इससे अच्छा है इन पैसों का कहीं और उपयोग करो दिशा बोली

     पर कहां? सास ने पूछा

     बताऊंगी , कल!!! सरप्राइज़ है। बोलकर दिशा अपने काम में लग गई और सासू मां को कुछ समझ नही आया पर वो कुछ नहीं बोली

     शाम को ससुर जी लाइट लगाने के लिए अपना पुराना कार्टून लेकर बैठे जिसमे पिछली साल की लाइट कुछ काम ली हुई कुछ कोरी रखी थी । काम ली हुई लाइट हटाते जा रहे थे और नई लाइट से घर को सजाने के लिए एक तरफ रखते जा रहे थे तभी दिशा आई और पुरानी लाइटों को इकठ्ठा करके दूसरे डिब्बे में रखने लगी

     ससुर जी ने पूछा बहु ये कबाड़ा क्यों इकट्ठा कर रही हो? ये लाइट पिछले साल लगा ली अब काम नही आएंगी

     दिशा_ पापाजी तभी तो इकट्ठा कर रही हूं

      सरप्राइज़ है कल बताऊंगी

       ससुर जी को समझ नही आया  वो अपने काम में व्यस्त थे तो सुना नही

       दिशा अपने काम में लग गई

       अगले दिन सुबह बच्चों ने उठते ही पूछा मम्मी सरप्राइज़ क्या है? बताओ ना

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       अरे बताती हूं पहले काम से फ्री हो जाऊं फिर बैठकर बात करते हैं दिशा बच्चों को दूध नाश्ता पकड़ाते हुए बोली

       दोपहर में दिशा के हाथ में बहुत सारे रुपए देखकर सब चौंक गए। 

       कोई कुछ पूछे उससे पहले दिशा बोली

       ये हमारी वेस्टिंग मनी है।

       वेस्टिंग मनी??? ये क्या होता है?सब एक साथ पूछने लगे( सास, ससुर, बच्चे)

       पिछली साल दिवाली पर पटाखों में, मिठाइयों में, लाइटों में जो फालतू खर्चा हुआ और फिर सब वेस्ट हुआ मतलब बेकार हुआ या फैंकने में गया , इस बार वो सब कुछ नही आयेगा मतलब जरूरत से ज्यादा नही आयेगा इसलिए मैने सब सामान खरीदने के बाद जो बचे पैसे हैं वो जरूरतमंदों के लिए रखे हैं । दिवाली के दिन हमारे घरों पर सामान फैंकने में जाए और कई ऐसे लोग हैं जिनके घरों में चूल्हा तक नही जलता, मिठाई, नए कपड़े भी नही होते तो फिर ऐसी दिवाली का क्या फायदा।

       इसलिए मैने तभी  सोच लिया कि अगली बार दिवाली नई खुशियों और नए अपनों के साथ मनाएंगे जहां हमारे द्वारा की गई उनकी थोड़ी सी सहायता उनके घर की दिवाली रोशनी वाली करेगी वहीं उनके द्वारा हमे दी गई दुआएं हमारी जिंदगी में खुशियों की रोशनी भर देगी। 

“दिवाली में जहां हमारे घर मिट्टी के दीप जलेंगे वही उन लोगों के घर खुशियों के दीप जलेंगे “

        सब लोग सुनकर दिशा के लिए तालियां बजाने लगे उसकी इस नई पहल के लिए और तभी दरवाजे से आते हुए उसके पति समीर ने जो अब तक की सारी बातें सुन रहा था बोला “और मेरी तरफ से क्या सहायता होगी ये भी बता दो मैडम”

         आप हम सब को गाड़ी से नाले के पास बनी कच्ची बस्ती लेकर जाएंगे जहां हम जरूरतमंदों की सहायता करेंगे

         जो हुकम मेरे आका

         जैसे ही समीर ने बोला सब हंसने लगे

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          और शाम को खाने के पैकेट, बची हुई लाइट, मिठाई और बच्चों के पुराने कपड़े जो छोटे हो गए या काम नही आए उनको लेकर सब लोग कच्ची बस्ती पहुंचे और जब उनके दिए सामान से लोगों के , बच्चों के मुरझाए चेहरे खिल उठे तब ईशान और सिया खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ये सोचकर कि उनके लिए जो वेस्टिंग मनी थी वो इन लोगों के  लिए कितनी यूजफुल मनी हो गई। अब उनके घर भी रोशनी वाली दिवाली मनेगी 

              दिवाली के दिन बच्चे इस बार धुआं रहित और कम ही पटाखे लाए जिससे पैसे बचा सके और प्रदूषण भी ज्यादा न हो उधर सासू मां ने भी खाना  इस बार जरूरत से बहुत  ज्यादा नही बनाकर कुछ ज्यादा बनाया ताकि बचा हुआ खाना बेकार न जाए और किसी भूखे के काम आ जाए। ससुर जी ने भी लाइट की जगह इस बार मिट्टी के दीप ज्यादा लगाए ताकि इस बहाने चौराहे पर बैठी कांता काकी जो दिया बेचती है ,  के घर भी दिवाली की रौनक आए। 

               दिशा और समीर उन लोगों की इस नई सोच के बारे में सोचकर बहुत खुश थे। 

               और अब तो हर दिवाली पर वो लोग सोसाइटी के और लोगों से भी उनके काम नही आने वाली चीजे इकट्ठा करके उनके सहयोग से जरूरतमंदों की सहायता करते हैं और हर  बार वेस्टिंग मनी के सरप्राइज़ के साथ खुशियों के दीप जलाते हैं ।

       दोस्तों दिवाली पर घर की साफ सफाई में कई ऐसी वस्तुएं मिल जाती है जिनका उपयोग या तो हम करते नही  बस खरीद कर रख लेते हैं  या खरीदकर कहीं रखकर भूल जाते हैं तो उन्हें फैंकने के बजाय किसी को दे देना ही बेहतर है 

     स्वरचित और मौलिक

     धन्यवाद

निशा जैन

# खुशियों के दीप

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