वारिस – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : नजमा तेज बुखार में तप रही थी और छत पर बैठी चुपचाप स्नेह भरी नजरों से नूर को निहार रही थी, जो पास के ही छज्जे पर चढ़ कर पतंग उड़ा रहा था।नजमा नूर से कहना चाहती थी कि बेटा संभाल कर कहीं पतंग के चक्कर में चोट मत मार लेना,पर नूर की मां रुखसाना के डर से कुछ कह नहीं पाई। रुखसाना नजमा को अपनी औलाद नूर से दूर ही रखती है क्योंकि नजमा बै औलाद है। रूखसाना नजमा की छोटी बहन और अब उसकी सौतन भी है।

नजमा ने ही औलाद के मोह में अपने पति शादाब को जबरदस्ती मना कर अपनी छोटी बहन रुखसाना से निकाह के लिए राजी किया था।

शादाब तो रुखसाना से निकाह के लिए हमेशा से मना करता रहा, पर नजमा ही नहीं मानी। नजमा  ने शादाब से कहा कौन से किसी गैर से निकाह के लिए कह रही हूं, मेरी अपनी ही छोटी बहन है और मुझसे पूरे आठ बर्ष छोटी है। मुझे आपा कहते कहते नहीं थकती, देखना हम दोनों बड़े प्रेम से रह लेंगे।

तुम्हें अपना वारिस मिल जाएगा  और मेरी ममता को औलाद का सुख । लेकिन कहते हैं ना कि एक घर में वो भी एक ही आदमी से दो बहनों का निकाह ठीक उसी तरह है जिस तरह बबूल को बो कर इंसान मीठे फल की उम्मीद करता है।

रुखसाना से निकाह के बाद कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक रहा। लेकिन धीरे-धीरे रुखसाना का रवैया नजमा के प्रति बदलने लगा। वो उसे नौकर से अधिक न समझती।

आदमी जात का क्या है चाहे कितना भी अच्छा क्यूं ना हो, औरत के हुस्न के आगे हार ही जाता है,एक तो रुखसाना की खूबसूरती, उसकी बाली उमर, और यौवन शादाब को अपनी और खींचता ।

दूसरी तरफ नजमा गमों में घिर कर जल्द ही बुढ़ापे से घिरने लगी थी। कभी कभी नजमा  को अपनी बहन से जलन होने लगती,वो सोचने लगती कि उसने खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है।

पर फिर वो अपने होने वाले वारिस के लिए सोचती और अपने को संभालती।

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जैसे ही  ये पता चला कि रुखसाना पेट से है,शादाब उसकी ओर और अधिक ध्यान देने लगा। उधर रुखसाना के नखरो का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। लेकिन नजमा को तो सिर्फ उस बच्चे का इंतजार था जिसके आने पर वो अम्मी बनेगी वो भी बड़ी मम्मी।

थोड़े ही दिन में रुखसाना ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम नूर रखा गया। नूर के पैदा होने के बाद रुखसाना पड़ोसियों के सिखाए में आकर नजमा को उसे छूने भी ना देती। बच्चे को कुछ तकलीफ होती तो पड़ोसी से पूछती, बहन तो उसे अब दुश्मन नजर आने लगी थी। उसे लगता कि कहीं एक बांझ की नजर उसके नूर पर न पड़ जाए।

अचानक तभी बड़ी अम्मी, बड़ी अम्मी की चीख सुनकर नजमा को चेतना सी आई, क्योंकि बुखार के कारण वो छत पर अवचेतन की सी स्थिति में लेटी सोच विचार में लगी हुई थी। जैसे ही नूर की आवाज सुनी तो बेसुध सी भागी,देखा तो नूर पतंग उड़ाते उड़ाते छत से गिर गया है उसके सिर में गहरी चोट आई  थी, नजमा उसे अपने  गोद में लेकर, अपने दुपट्टे में लपेटकर अस्पताल की ओर भागी।

अस्पताल पहुंच कर डॉक्टर ने बताया कि काफी खून बह गया है,नूर को खून की जरूरत है, जल्दी ही खून का इंतजाम करना होगा। लेकिन किसी का भी खून नूर से मैच नहीं हुआ, नजमा रोते रोते कह रही थी, डॉक्टर साहब मेरा  खून मिला कर देखो जरूर मिल जाएगा, मैं उसकी बड़ी अम्मी हूं।और वही हुआ नजमा का खून नूर से मिल गया, धीरे-धीरे नूर की हालत में सुधार होने लगा।

उधर रुखसाना अपनी  गलत करनी की वजह से आत्मग्लानि से मरी जा रही थी। उसने रोते-रोते नजमा से माफी मांगी और कहा, आपा आप मुझे माफ कर दो,मैं है बहुत बुरी हूं, तुम्हें समझ ना सकी।

लेकिन नजमा ने उसे शांत कराते हुए गले से लगा कर कहा , तू क्या समझती है नूर तेरी ही औलाद है,अरी ये तो वो फूल है जो तेरी शाख से जन्मा जरूर है ,लेकिन इसकी खुशबू मेरे रोम रोम में समाई है ।इतना कहते हुए दोनों बहने गले मिल गई, क्योंकि दोनों का रिश्ता बहनों और सौतन से बढ़कर अब दर्द का रिश्ता बन चुका था।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलंदशहर

उत्तर प्रदेश

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