वारिस – के कामेश्वरी

मेरा नाम कुमार है और मेरी पत्नी का नाम रमा है हमारी शादी 1990में हुई । माता-पिता ने ही शादीतय की थी । घर का बड़ा बेटा होने के कारण शादी के एक साल के बाद से ही माँ कहने लगी किवारिस आ जाए तो अच्छा है । वारिस कहते ही लोगों की सोच में लड़के की छवि आ जाती है पर मुझेलड़की बहुत पसंद है ।

मेरी एक ही बहन है और जब मैं छोटा था तब ही उसकी शादी हो गई थी और वह ससुराल चली गई थी । इसलिए मुझे लड़की की कमी बहुत महसूस हुआ करती थी । जहाँ देखो वहीं पेंट शर्ट दिखाई देते थे । मुझे लगता था कि कहीं पर तो सलवार क़मीज़ दिखे । ईश्वर ने शायद माँ कीबात सुन ली और रमा के पैर भारी हो गए ।मुझे लगता था कि लड़की हो माँ सोचती थी कि लड़का होख़ैर सही समय पर रमा ने बहुत ही सुंदर लड़की को जन्म दिया ।

माँ पहली बच्ची है इसलिए खुश होगई कि कोई बात नहीं अगली बार लड़का ही होगा । मैं खुश था क्योंकि मेरी बेटी बहुत ही सुंदर थीछब्बी चिक्स की राइम की तरह !! उसका नाम मैंने परणिता रखा और उसे परी कहकर पुकारा करताथा । उसके साथ मैं ख़ूब खेलता था । दो साल बाद फिर रमा माँ बनने वाली थी इस बार माँ को लड़काही चाहिए था पर होनी को कौन टाल सकता था मेरी फिर लड़की हो गई । मैं तो खुश था कि दोनोंबहनें एक दूसरे के लिए सहारा बन जाएँगी ।

उसका नाम मैंने सुहासिनी रखा । मेरे लिए तो दोनों दोआँखें थीं । बेटियाँ होती ही ऐसी कि हमेशा मेरे आगे पीछे घूमती थीं । मैं भी उन्हें अपने कंधों परबिठाकर घुमाता था । माँ ने कहा कि देख कुमार तू कितना भी बेटियों के लिए कर ले पर बेटियाँ पराईही होती हैं । मेरी बात मान ले एक बार और प्रयास कर इस बार तुझे लड़का ही होगा मेरा मन कह रहाहै । हम दोनों की इच्छा तो नहीं थी पर माँ की बात टाल नहीं सके और रमा फिर माँ बनने वाली थी ।


इसी बीच एक दिन मेरी चचेरी बहन मेरे घर आई जिसके बच्चे नहीं थे । इसलिए उसने और मेरे चाचा नेमुझे समझाना शुरू किया कि तू प्राइवेट कंपनी में काम करता है तीन तीन बच्चों को कैसे पालेगाइसलिए अगर तेरी तीसरी भी बच्ची हुई तो मुझे दे दे मैं पाल लूँगी तेरी दोनों बेटियों की शादी में तेरीमदद भी कर दूँगी । चाचा ने जो बात कही उससे मेरा दिल बहुत दुखी हुआ कि अपने ऐसी बात कैसेकह सकते हैं । उन्होंने कहा क्या हो जाएगा के पापा के बदले में मामा बुलाएगी तुझे ।

मुझे ऐसा लगाजैसे वे मेरी धज्जियाँ उड़ा रहे हैं कि तू अपने बच्चों की परवरिश कर ही नहीं सकता है । मैंने फ़ैसलाकिया कि मेरी तीसरी बार भी लड़की हुई तो भी मैं अपने बच्चों को किसी को भी नहीं दूँगा क्योंकि मेरेख़याल से अपने बच्चे को किसी और के हाथों में सौंपना बहुत ही मुश्किल का काम है ।

सही समय पर रमा ने लड़की को जन्म दिया जिसका नाम मैंने सौम्या रखा है । माँ सर पकड़ कर बैठगई कि मेरी ज़िद के कारण तुझे तीन तीन लड़कियों का बोझ उठाना पड़ेगा पर मैंने उन्हें कभी बोझसमझा ही नहीं ।

रमा के या मेरे घर के संस्कार ही समझें कि मेरी तीनों बच्चियाँ एकदम सुंदर और सुशील निकलीं ।कभी भी किसी भी वस्तु के लिए या कपड़ों के लिए ज़िद नहीं करतीं थी ।जो मिल जाता था ले लेती जोमिल जाता पहन लेती थीं । रमा भी स्कूल में पढ़ाती थी ।मैं भी नौकरी करता था धीरे-धीरे मेरी बच्चियाँबड़ी होने लगी परणिता ने इंजीनियरिंग किया और नौकरी करने लगी ।

सुहासिनी ने बी बी ए कियाऔर नौकरी पर लग गई ।सबसे छोटी बहन की देखभाल दोनों बड़ी बहनें कर लेती हैं । जिन लोगों नेहम पर छींटाकशी की थी । उनके मुँह थोड़ी बंद हुई पर बच्चों की शादी की चिंता हमें नहीं दूसरों कोज़्यादा सता रही थी ।इसलिए सब लोग चिंता में आलतू फ़ालतू रिश्ते ला रहे थे । मैं टस से मस नहींहुआ मुझे मालूम था कि मेरी बच्चियों की क़िस्मत ज़रूर अच्छी होगी ।

आप लोगों को विश्वास नहींहोगा एक दिन मेरी परी के लिए रिश्ता आया सी ए किया हुआ लड़का था । वे लोग दो भाई थे यह बड़ालड़का था । प्रवीण अच्छी कंपनी में काम कर रहा था और बिना दहेज लिए ही उसने मेरी परी से शादीकरने की माँग की ।मैंने ख़ुशी ख़ुशी उसकी शादी धूमधाम से कर दिया । दूसरे ही साल मेरी दूसरी बेटीसुहासिनी के लिए भी एम टेक करके इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर था सुहास उसके घर से रिश्ताआया और उसकी शादी भी मैंने धूमधाम से कर दिया ।


इस तरह मेरी दोनों बेटियों को अच्छा ससुरालऔर अच्छे पति मिले । तीसरी लड़की छोटी है दोनों बहनों और जीजाओं की लाड़ली बी काम अपनीबड़ी बहन के घर पर रहकर कर रही है । जिन लोगों ने मुझे तीन तीन लड़कियों का बेचारा पिता कहाआज उन सबके मुँह बंद हो गए । ईश्वर को मेरी ख़ुशी मंज़ूर नहीं थी इसलिए तीन साल पहले मेरीदोनों किडनी ख़राब हो गई हायली डायबिटीज़ के कारण अब मुझे डायलिसिस पर रहना पड़ रहा हैकंपनी से जॉब छूट गया ।

घर के ख़र्च डयालसिस का खर्च सब मेरे लिए मुश्किल हो रहा था और मैंगर्व के साथ कहूँगा कि मेरी बड़ी बेटी मेरा बड़ा बेटा बनकर मेरे खर्चे उठा रही है । मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरी बेटियाँ ही हैं  जो मेरी देखभाल एक लड़के से बढ़कर करती हैं । मैं अपने दोनों दामादोंऔर उनके परिवार वालों का भी शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने अपनी बहुओं को अपने माता-पिता कीदेखभाल करने पर नहीं रोका ।

अब बताइए दोस्तों वारिस लड़का हो या लड़की ? हर लड़की अपने सास ससुर की अच्छी देखभालकरे तो किसी के भी माता-पिता दुखी नहीं रहेंगे । इसलिए वारिस लड़का ही नहीं लड़की भी हो सकतीहै । सिर्फ़ हमारी सोच में बदलाव लाना है ।

#बेटी —हमारा —स्वाभिमान

के कामेश्वरी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!