—–सुमन का विवाह हुए अब 30 वर्ष हो गए थे उसके दादा-दादी का उसके विवाह के पहले स्वर्गवास हो गया था। उसकी एक बहुत ही स्नेहमयी चचेरी दादी, गिरजा दादी थी जो उसकी माँ तथा सभी भाई बहनों का बहुत दुलार करती थी । सुमन के पापा भी अपनें बच्चों पर जान लुटाते थे ।दादा दादी के असीम प्यार को बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास करते थे । सुमन के पापा अपनें बच्चों को लेकर गांव में रहते थे । मगर अपनें तीनों बच्चों को गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक छोटा सा शहर था वहाँ कभी-कभी घुमाने मेला दिखाने अवश्य ले जाते थे।
गांव में तो चना, मुरमुरा के अलावा कुछ खजेना मिलता नहीं था मगर सुमन के पापा ख़ासकर अपनें बच्चों के लिए दूर शहर जाते थे और मिठाई , फल वगैरह की ढेर लगा देते थे । कहना न होगा कि माता-पिता तो अपनें बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करनें में खुद की जिंदगी झोंक देते हैं। यह कोई अतिशयोक्ति नही होगी। ।इन सबसे अलग और अत्यधिक सुमन के पापा में वात्सल्य की पराकाष्ठा थी । उसी बात को याद कर आज 30 वर्ष बीत जाने के बाद सुमन बैठे बैठे सुबक-सुबक कर रोने लगी काश ! पापा हमें इतना प्यार न किए होते । तभी उसकी आँखों के सामने वो दृश्य किसी सिनेमा हाल के पर्दे में चल रहे सिनेमा की भांति चलने लगा जब उसकी सगाई होंने वाली थी घर आँगन को चारों तरफ से सजाया जा रहा था जिसे देख देख कर सुमन का दिल भर जा रहा था आंखें डबडबा जा रही थी। मन में आ रहा था कि अब मेरा विवाह हो जाएगा, अब इस घर आँगन में मैं मेहमान बन जाऊँगी। यहाँ की ताल तलैया , वो बरगद पीपल की छांव , वो आम की अमराई, वो मेहंदी का बूटा, वो सखियों संग हंसना खिलखिलाना सब के सब छूट जाएंगे । कुछ इसी तरह की भावनाओं में घिरी सुमन किचन में अपनें पापा के लिए रोटी बेल रही थी । उसकी याद दाश्त में बस इतनी ही बातें आई थी कि अचानक उसके कान में वो हृदयविदारक चीख गूंजने लगी ” किस जंगल में रह गए मेरे बघवा सीताराम ” और सुमन बिलख बिलख कर रोने लगी। घर के आस पास घरेलू काम काज में व्यस्त उसकी 25 वर्ष की बेटी दौड़ते हुए आ गई। क्या हुआ मम्मी!!! क्यों रो रही हो । मगर सुमन कुछ नहीं बताती बस इतना ही कह देती ” कुछ नहीं बेटी! तुम तो जानती हो मुझे रोने की बीमारी है ।” और वह बच्ची जब से होश संभाली इतना जानती थी कि उसकी मम्मी को रोने की बीमारी है। वो अचानक ही ऐसे ही बिलख बिलख कर रोने लग जाती है ।
सुमन के साथ हुआ ये था कि उसके सगाई के बाद विवाह का मुहूर्त भी निकाल दिया गया था उसके मात्र एक महीने पूर्व उसके पापा का सड़क दुर्घटना से दुर्घटना स्थल पर ही देहांत हो गया। घर में दोनों बहन और माँ सुबह-सुबह उठकर नहा धोकर नास्ता वगैरह बनाने में लगे हुए थे तभी घर में लोगों की भीड़ आ गई सभी की आँखों में अनवरत आंसू बह रहे थे और गिरजा दादी चीख चीख कर कह रही वही उपरोक्त वाक्य बोलते-बोलते रो रही थी ” किस जंगल में रह गए मेरे बघवा सीताराम!” फिर तो सुमन की दुनियाँ ही उजड़ गयी। घर में सब समझ गए उनके रौबदार ब्यक्तित्व के , भरे क्रोधाअवस्था में भी अपनें बेटियों को देख कर आग में पानी की तरह शान्त हो जाने वाले, संसार की खुशियाँ बटोर कर ला देने वाले उसके पापा अब उसे डोली में विदा करनें नहीं आएंगे।
फिर वक्त किसी के भी रहने न रहने से कहाँ ठहरता है !!! समय के साथ हर इंसानों को चलना ही पड़ता है । सुमन का विवाह हो गया मगर 30 वर्ष ब्यतीत होने के बाद भी उसके कानों में गिरजा दादी का चीख चीख कर रोना वक्त आनें पर गूंजने लगता है । तब वह ऐसे ही अचानक बिलख बिलख कर रोने लगती है जिसे उसकी बेटी के सामने रोने की बीमारी कह कर उसकी बेटी को बहलाया जाता है । फिर उसकी बेटी दुखित मन से अपनी मम्मी को संभालती है।
#वक्त
- गोमती सिंह
कोरबा,छत्तीसगढ़
स्वरचित मौलिक रचना।