वक्त कभी न कभी जरूर बदलेगा – किरन विश्वकर्मा

मैं काम खत्म करके बिस्तर पर कुछ देर के लिए आराम करने जा ही रही थी कि बेल बजी…..इस समय कौन आया होगा!!! मन में यही सोचते ही उसने दरवाजा खोला तो देखा एक गोरी सी महिला मास्क लगाए हुए कंधे पर भारी सा बैग टांगे हुए खड़ी थी………जैसे ही मुझे देखा तो बोल पड़ी……नमस्ते मैम आपको मेकअप से संबंधित कुछ भी सामान लेना है……यह देखिए कहते हुए अपने बैग से सामान निकाल- निकाल कर दिखाने लगी, उस महिला को देखते ही उसे पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था कि कहीं देखा है पर कहां देखा है उसे याद नहीं आ रहा था

और आवाज तो जानी पहचानी लग रही थी। वह महिला अपने प्रोडक्ट के बारे में खूबियां बताते हुए दिखाये जा रही थी…..तभी उसे याद आया……अरे सपना भाभी!!! आप यहां और इस हालत में तो वह महिला अपना नाम सुनकर चुपचाप मेरी ओर देखने लगी……फिर याद करते हुए बोली…..अरे वर्तिका तुम!!!! ….यहाँ रहती हो क्या…..सपना भाभी बोलीं।

हां भाभी मैं यहीं रहती हूं…और आप यह सब काम कब से करने लगीं….मैंने भाभी से पूछा।

जिंदगी का हर एक दिन अच्छा हो ये कोई जरूरी नहीं….. यह कहते ही उनकी आँखों में आँसू आ गए…… वक्त भी कैसे-कैसे दिन दिखाता है…. कभी तो हँसाता है तो कभी रुलाता है……यह कहते हुए अपनी आँखों से बह आये आँसू पोंछने लगी।

दरअसल सपना भाभी हमारे मायके में बस दो घर छोड़कर ही रहती थीं…..वह सीमा आंटी के यहाँ पर किरायेदार थीं….खूब सुंदर कमर तक लंबे बाल और गोल मटोल सी….. उस पर उनका हंसमुख स्वभाव……. चूंकि वह दोनों ही लोग मिलनसार स्वभाव के थे तो हम लोगों की……..अरे हम लोगों के साथ-साथ पूरे मोहल्ले की फेवरेट हो गयी थीं।

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उनका ससुराल और मायका बहुत दूर था तो वह बहुत कम ही जा पाती थीं और भैया के घर वाले तभी आते जब उन्हें पैसे की कोई जरूरत होती। भैया एक प्राइवेट कंपनी में सुपर वाइजर थे। कुछ समय बाद उन्हे जुडवां बेटे हुए। अब तो हम लोग भाभी के आगे-पीछे लगे रहते उन बच्चों को खिलाने के लिए। कभी- कभी उन बच्चों को घर भी ले आते।

दो वर्ष बाद भैया ने अपना मकान बनवा लिया था तो वह वहाँ रहने चले गए और हम लोगों का धीरे- धीरे संपर्क ही खत्म हो गया……. तब से आज मैं भाभी से मिल रही थी।

 

भाभी क्या हो गया ऐसा जो आपको यह कार्य करना पड़ा…… मैंने पूछा।




एक दिन तेरे भैया ऑफिस से घर आ रहे थे और बारिश हो रही थी अचानक से भैया की गाड़ी बारिश की वजह से फिसल गई और भैया का सर डिवाइडर से टकरा गया भैया सर में चोट लगी थी चोट लग गई थी दो-तीन दिन तक तो होश नहीं आया फिर जब होश आया तो किसी को पहचान नहीं रहे थे उनके इलाज में काफी पैसा लग गया था और जो मेरे पास जमा पूंजी थी सब खत्म हो गई थी जब इनके घर वालों को पता चला कि अब हमारे पास पैसे नहीं है और हमें पैसे की सख्त जरूरत है तो उन्होंने बहाने बनाते हुए कोई भी सहायता करने से हाथ खड़े कर दिये और हमारे घर

से जाने के बाद हम लोगों से कोई भी संपर्क नहीं रखा और मायके में सिर्फ माँ और छोटा भाई था उनसे मैं क्या उम्मीद करती वह तो खुद ही इतनी मुश्किल से अपना गुजारा कर रही थी, लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी। मैंने मां और भाई को घर से बुला लिया था अपने पास रहने के लिए मेरे पास जो जेवर थे उनको बेच- बेच कर तेरे भैया का इलाज करवा रही हूँ…….कुछ पैसा ऑफिस से भी मिल गया था……….कुछ पैसों से यह सामान खरीद लिया….. सुबह घर का सारा काम जल्दी- जल्दी खत्म करके फिर मै यह सामान बेचने निकल पड़ती हूँ। फिर चार बजे तक घर पहुँच जाती हूँ….

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दो तीन घण्टे सिलाई का काम करती हूँ… पास की फैक्ट्री में कपड़े कटिंग किये हुए मिलते हैं वो ले आती हूँ उनमें सिर्फ सिलाई करनी होती है तब वह काम करती हूँ बस एक उम्मीद पर जिये जा रही हूँ कि कभी तो यह स्वस्थ होंगे और सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जायेगा। यह तो अच्छा हुआ कि घर अपना है

नही तो बहुत मुश्किल हो जाती। कुछ देर बातें करने के बाद मैंने भी कुछ सामान खरीद लिया और मोहल्ले में काफी लोगों से परिचय करवा दिया अब तो उन्हे सब लोग मेरी भाभी के रूप में जानने लगे। लेकिन मैंने देखा कठिन हालातों का सामना करते हुए भाभी पहले की तरह ना रही थी भाभी का रंग काफी दब गया था…. आँखों के नीचे काले घेरे हो गए थे….. काफी दुबली भी हो गयी थीं। शायद यह सब परीस्थितियों का सामना करने के कारण हुआ था पर उन्होंने हार नही मानी थी। एक उम्मीद में जिए जा रही थी और लगातार संघर्ष किये जा रही थीं बस इस आशा में कि वक्त कभी तो बदलेगा।

कुछ समय पश्चात पश्चात भाभी भैया के साथ हमारे घर आईं………… आज भाभी बहुत खुश दिख रही थीं!!!!!!! भाभी ने बताया कि भैया अब ठीक हो गए हैं और हमने घर में ही कॉस्मेटिक सामान की शॉप खोल ली है और हम दोनों मिलकर चलाते हैं। सच में मुझे बहुत खुशी हुई यह जानकर की भाभी की उम्मीदें पूरी हो गई थी और आज भैया के ठीक होने से सबसे ज्यादा खुशी भाभी को हुई थी जो उनके चेहरे पर नजर आ रही थी। 

 

किरन विश्वकर्मा

#उम्मीद

 

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